छुट्टियों के इस मौसम में भारत के एक-तिहाई उपभोक्ता इन दिनों विमान से यात्रा कर रहे हैं। संभव है कि 10 यात्रियों में से सात इंडिगो विमान से ही उड़ान भर रहे हों। यह स्तंभ एक नामी भारतीय ब्रांड पर केंद्रित है जिसका प्रदर्शन कई स्तरों पर काफी बेहतर रहा है।
इंडिगो गैर-अनुशासित लोगों को अनुशासित बनाने, बहस करने वाले, कतार तोड़ कर आगे बढ़ने वाले लोगों को नियमों का पालन करने वाली भीड़ में बदलने में कामयाब रही है। इसने किसी ताकत या बलपूर्वक तरीके से नहीं बल्कि विनम्र, युवा कर्मचारियों के बलबूते यह सब करने में सफलता पाई है जिनमें महिला कर्मचारियों की अहम भूमिका है।
अब कतारें व्यवस्थित होती हैं और लोग नियमों को मानते हैं। अगर आप ज्यादा सामान ले जा रहे हैं तो इसके लिए लगने वाले अतिरिक्त शुल्क को माफ करने के लिए कोई भी विनती काम नहीं आ सकती है। अब इस तरह की बातों की परवाह कोई भी नहीं करता है कि ‘जानते हैं, हम कौन हैं।’
आपातकालीन निकास वाली जगह पर बैठने वाले यात्रियों को युवा चालक दल के एक सदस्य बड़े धैर्य से नियमों को समझाते हैं और इस दौरान उन्हें अपने गैजेट देखने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति में मदद देने की बात भी कही जाती है और कोई बात न समझ आए तो विस्तार से समझाया जाता है।
आखिर इंडिगो को इतनी ताकत किस तरह हासिल हुई है? इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि यह एक तरह का यात्रियों द्वारा इंडिगो के साथ किया गया एक ‘सक्षमता करार’ जिसके तहत उपयोगकर्ता अपनी मर्जी से अच्छा बरताव कराने की ताकत सौंप देते हैं और बदले में इंडिगो उन्हें बेहतर सेवाएं समय पर देती है। इन दिनों जब लॉजिस्टिक से जुड़ी चुनौतियां बेहद थकाने लायक होती हैं, ऐसे दौर में भी इंडिगो कुशलता के साथ इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए हुए हैं।
यातायात भीड़ को झेलते हुए हवाईअड्डे तक पहुंचना, प्रवेश और सुरक्षा जांच की कतारों में लगना, यह सब थका देने वाली प्रक्रिया है। हालांकि इस लिहाज से डिजियात्रा तभी तक बेहतर साबित होता है जब तक कि यह अचानक आपको पहचानने से इनकार न करे। हालांकि इंडिगो की जिस कुशलता और बेहतर प्रबंधन के हम कायल हैं क्या यह भरोसा तब भी बरकरार रहेगा जब कंपनी के विमान उड़ान भरने में देरी करने लगेंगे या आधे घंटे के स्लॉट (जैसा कि हाल ही में अनुभव किया गया) में अंतहीन देरी की घोषणा करने लगेंगे और यह संकेत देंगे जैसे उन्हें कुछ नहीं पता है? ऐसे में पूरी संभावना यह है कि हम इससे आजिज आने लगेंगे।
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इंडिगो भी भारतीयों के मनोविज्ञान को अच्छी तरह से समझती है और इसने दिखाया है कि चंद पैसे में चांद पाने की चाहत रखने वाली भारतीय मानसिकता से किस तरह निपटा जा सकता है। इंडिगो और भारतीय उपभोक्ता दोनों के ही रग-रग में, किसी तरह सौदा निपटाने का माद्दा कूट-कूट कर भरा है।
हम सौदा निपटाने के लिए मोलतोल की ताकत दिखाते हैं। अतिरिक्त सामान के लिए पहले से की गई बुकिंग की दर चेक-इन काउंटर की तुलना में बहुत कम होती है। वे मूल्य-लाभ (प्रदर्शन) से जुड़े कई विकल्प देते हैं और हम इन विकल्पों के साथ अच्छा और खराब दोनों ही महसूस कर सकते हैं।
पैर रखने की बड़ी जगह, छोटी कतारें, अलग से बोर्डिंग और गारंटी के साथ भोजन पाने जैसे विकल्पों के लिए अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है। यह एक किफायती विमानन कंपनी है लेकिन जो लोग अपने लिए अतिरिक्त सेवाएं या सुविधाएं चाहते हैं वे अतिरिक्त शुल्क देकर अधिक सामान, भोजन, सीट चयन जैसे विकल्प अपने मनमुताबिक जोड़ सकते हैं।
लेकिन इंडिगो की विशेषता यही है कि उसे पता है कि इस तरह के तामझाम का क्या मतलब है और इसका प्रबंधन किस तरह किया जा सकता है जबकि इसके उलट कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इसके चक्कर में काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
हाल ही में हमने देखा कि एक यात्री ने अपने बैग पर एक स्टिकर लगाने की गुजारिश की जिसका मतलब था कि उनके बैग में कोई नाजुक सामान है जिसे पूरी एहतियात के साथ रखा जाना चाहिए। काउंटर के पीछे बैठी युवती ने उन्हें देखा और पूरी गंभीरता से समझाया कि कंपनी अब इस तरह के स्टिकर का इस्तेमाल नहीं करती है क्योंकि ‘कंपनी हर बैग को नाजुक मानती है और उसे अच्छी तरह संभालकर रखती है।’
हालांकि एक सहयात्री ने व्यंग्य के अंदाज में बताने की कोशिश की कि इस तरह के स्टिकर प्रिंट नहीं करना वास्तव में कंपनी की लागत-बचत करने की नई तरकीब है। यह सच भी हो सकता है लेकिन कंपनी को अपने कर्मचारियों को इन बातों को बेहद चतुराई से कहने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए बड़ा खिताब मिलना चाहिए।
इंडिगो हर समय प्रयोग करती रहती है और इसने अनूठी सेवाओं की पेशकश करने की हमेशा कोशिश की है जैसे कि यह सब एक विशाल प्रयोगशाला के प्रयोग का हिस्सा हो।
उदाहरण के तौर पर हाल तक, ‘फास्ट फॉरवर्ड’ शुल्क देने पर आपका सामान सबसे पहले आने की सुविधा मिल जाती थी। लेकिन विभिन्न हवाईअड्डों पर कई तरह के कुप्रबंधन के चलते इसे ‘किसी भी समय बोर्डिंग करने’ जैसे लाभ में बदल दिया गया।
पुराने दिनों में उपभोक्ता किसी कंपनी के संदर्भ में स्थिरता की सराहना करते थे और लगातार बदलाव को एक बाधा के रूप में देखा जाता था लेकिन अब हम एक ऐसे दौर में हैं जब सक्रियता दिखाने के चलन को ही सराहा जाता है और इसे आगे बढ़ने के बेहतर प्रयास के रूप में देखा जाता है।
हाल के दिनों में उड़ान में देरी हुई तब इंडिगो ने प्रत्येक यात्री को उस जगह भोजन की थाली परोस कर प्रयोग किया जहां वे बैठे थे। इंडिगो ने मुफ्त भोजन की पेशकश पहली बार की थी। जब इसके कर्मचारियों से पूछा गया कि ऐसा क्यों हुआ तब इसके कर्मचारियों ने कहा, ‘मुंबई हवाई यातायात के कारण आपको बहुत देरी हुई, ऐसे में हमें आपको यह सेवा देनी ही थी।’ इसे क्रिसमस के दौर में ब्रांड छवि को बेहतर बनाने की रणनीति भी कहा जा सकता है।
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हम एमबीए के छात्रों को ब्रांड लैडरिंग फ्रेमवर्क के बारे में सिखाते हैं, जिसमें ‘विशेषता से परिणाम तक और फिर इससे तैयार होने वाले ब्रांड मूल्य’ के बारे में बताते हुए ब्रांड का विश्लेषण किया जाता है। निचले क्रम वाले ब्रांड विशेषताओं या परिणामों तक ही सिमट जाते हैं।
इसका एक पुराना उदाहरण निरमा ब्रांड से लिया जा सकता है जो किफायती होने के साथ ही कपड़े की अच्छी सफाई का दावा करता (विशेषता) था और इससे लोगों का बजट भी संतुलित रहता था और इसका इस्तेमाल करने वाली गृहिणी के समझदार होने (परिणाम) की बात कही जाती थी। इसने खुद को आम जनता के एक मसीहा ब्रांड (मूल्य) के तौर पर खुद को स्थापित किया था।
इस संदर्भ में आज इंडिगो का उदाहरण लिया जा सकता है। आप किसी छोटी जगह से भी इस कंपनी की किफायती विमानन सेवाएं (विशेषता) ले सकते हैं। इसके किफायती होने की वजह से ही उपभोक्ता अधिक कमाने के मकसद से कई जगहों पर जाने के लिए अधिक उड़ान भरने का फैसला करते हैं (संबंधित परिणाम) और यह भारत के महत्त्वाकांक्षी लोगों के लिए मसीहा ब्रांड (मूल्य) के तौर पर खुद को स्थापित कर चुका है। उम्मीद है कि कई भारतीय ब्रांडों की तरह इंडिगो अपने दायरे को बढ़ाने की जटिलता और जिस रफ्तार से इसे किया जाना है उसको पूरा करते हुए अपने ब्रांड के बुनियादी उद्देश्य को नहीं खोएगा।
(लेखिका ग्राहकों से जुड़ी व्यापार रणनीति के क्षेत्र में कारोबार सलाहकार और भारत की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था विषय की शोधकर्ता हैं)