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वैश्विक मानकीकरण में भारत की भूमिका…

विश्व व्यापार संगठन की उरुग्वे दौर की वार्ता के बाद जब आयात टैरिफ कम कर दिए गए तो मानकीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अहम हो गया।

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Ajay Kumar   
Last Updated- May 21, 2024 | 10:58 PM IST

वर्तमान विश्व में मानक न केवल तकनीकी बल्कि रणनीतिक महत्त्व भी रखते हैं। विस्तार से बता रहे हैं अजय कुमार

तेज तकनीकी प्रगति द्वारा आर्थिक वृद्धि को गति प्रदान करने के इस दौर में मानक निर्माण के परिदृश्य तथा संचालन में आमूलचूल बदलाव आया है। हर नए तकनीकी नवाचार को वैश्विक रूप से अपनाने के लिए मानकीकरण की आवश्यकता होती है।

बहरहाल अपनाने की गति, खासकर नवाचारी डिजिटल तकनीक के मामलों में अक्सर पारंपरिक मानक विकास प्रक्रिया पीछे रह जाती है। इससे कुछ मानक स्वत: निर्मित होने लगते हैं। उदाहरण के लिए विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम अथवा इंटेल सीपीयू प्रणाली।

तेज तकनीकी विकास ने वैश्विक मानकीकरण संस्थाओं के परिदृश्य को नया आकार दिया है। पारंपरिक संस्थाएं मसलन इंटरनैशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन (ISO), इंटरनैशनल इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन (आईईसी) और इंटरनैशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) देशों की सरकारों से बहुत अधिक प्रभावित थीं और उनकी जगह उद्योग जगत द्वारा संचालित संगठनों ने ले लिया जो विशिष्ट क्षेत्रों द्वारा संचालित थे।

उदाहरण के लिए इंटरनेट से संबंधित मानक अब प्रमुख तौर पर उद्योग जगत के नेतृत्व वाली इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स (आईईटीएफ), वर्ल्ड वाइड वेब कंर्सोसे (डब्लयू3सी) तथा गैर लाभकारी आईकैन तथा अन्य संस्थाओं द्वारा तय किए जाते हैं।

इसी तरह थर्ड जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3जीपीपी) दूरसंचार मानकों में प्रमुख स्थिति में है। विशेष संस्थाओं की ओर यह बदलाव तेजी से बदलते उद्योगों की खास मांगों को लेकर प्रतिक्रिया देने में सक्षम है। तकनीकी विकास में अग्रणी कंपनियां इन मानक तैयार करने वाली संस्थाओं में दबदबा रखती हैं।

स्टैंडर्ड एसेंशियल पेटेंट्स (एसईपी) के मामले में पेटेंट नवाचारों के मानकीकरण से अच्छी खासी संपत्ति बनती है और अकेले 3जी तकनीक ने 23,000 एसईपी तैयार किए और राजस्व् में हजारों अरब डॉलर की राशि तैयार हुई।

विश्व व्यापार संगठन की उरुग्वे दौर की वार्ता के बाद जब आयात टैरिफ कम कर दिए गए तो मानकीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अहम हो गया।

कुछ सरकारें आयात को नियंत्रित करने के लिए मानकीकरण या तकनीकी नियमन करती हैं। इसके तहत स्थानीय स्तर पर परीक्षण और प्रमाणन किया जाता है। लागत बढ़ती है और बाजार पहुंच सीमित होती है।

विश्व व्यापार संगठन के तकनीकी व्यापार अवरोध (टीबीटी) का दूर करने के लिए समझौतों के बावजूद कमजोर प्रवर्तन इनके असर को सीमित करता है। परिणामस्वरूप मानक न केवल तकनीकी रूप से प्रासांगिक हैं बल्कि उनका भूराजनैतिक और सामरिक मूल्य भी है। इससे देश वैश्विक मानक निर्माण प्रक्रिया की होड़ में शामिल होते हैं।
मानक प्रबंधन में भारत का प्रदर्शन मिलाजुला रहा है।

भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 1986 से आशा की गई थी कि वह देश में विश्वस्तरीय मानक व्यवस्था कायम करेगा तथा सभी क्षेत्रों में मानक तैयार करने के लिए केंद्रीय सांविधिक ढांचा तैयार करेगा।

बहरहाल मानक निर्माण और प्रवर्तन दोनों में कमियां नजर आईं। भारत एक ऐसी व्यवस्था कायम करने में नाकाम रहा जहां घरेलू नवाचारों से घरेलू मानक तैयार किए जा सकें, वैश्विक मानक तो छोड़ ही दें। इसने 20,000 से अधिक भारतीय मानक तैयार किए लेकिन प्राय: वैश्विक मानकों का अनुकरण थे।

वह तकनीकी नवाचारों के मानक नहीं तैयार कर सका। मसलन टाटा टी के लेमिनेट पॉली पैक्स, टैली या फिनैकल जैसे सॉफ्टवेयर या जल संरक्षण अथवा समुद्र की सतह के नीचे खेती जैसे पारंपरिक व्यवहार। ये बताते हैं कि हम मानकीकरण के जरिए भारतीय नवाचारों को प्रोत्साहित करने का अवसर गंवा चुके हैं। भारतीय मानक ब्यूरो भारतीय मानकों को उद्योग जगत और सरकार द्वारा अपनाए जाने को लेकर भी संघर्ष करता रहा।

तमाम उपलब्धता के बावजूद कई सरकारी निविदाएं अभी भी वैश्विक मानकों से संदर्भित होते। भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम के मुताबिक भारतीय मानक तैयार करने के लिए लाइसेंस लेना होता है, उन पर नियामकीय नियंत्रण होता है और इंसपेक्टर राज से जुड़े मामले भी हैं।

इसके चलते उद्योग जगत ने विरोध किया। 2013 तक कुछ ही भारतीय मानक तैयार हुए जबकि वैश्विक मानक भारत में भी लोकप्रिय बने रहे। इससे भारतीय विनिर्माताओं को नुकसान हुआ जबकि विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय बाजारों में पहुंच आसान बनी रही।

सन 2013 में भारत में खराब गुणवत्ता वाली और असुरक्षित चीनी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की बाढ़ आ गई। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ने एक अनिवार्य पंजीयन ऑर्डर जारी किया जिसके तहत लैपटॉप, डेस्कटॉप, मोबाइल फोन, माइक्रोवेव ओवन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के सुरक्षा मानक तय होने थे। तब पहली बार भारतीय मानक अधिनियम के तहत तकनीकी नियमन को पहली बार व्यापक तौर पर अपनाया गया।

उसने एक स्वनियमन योजना पेश की जो लाइसेंस आधारित प्रणाली की स्थानापन्न थी। विनिर्माताओं को मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाओं से जांच और प्रमाणन कराना होता उसके बाद ही उन्हें भारत में बिक्री की इजाजत मिलती। उल्लेखनीय बात यह है कि कुछ महीनों के भीतर ही इसे 90 फीसदी लोगों ने अपना लिया। इसकी शुरुआत कई के लिए अविश्वसनीय थी क्योंकि तत्कालीन बीआईएस अधिनियम केवल लाइसेंस आधारित तकनीकी नियमन करता था।

इसके बावजूद मंत्रालय ने एक स्वपंजीयन योजना उसी अधिनियम के तहत आरंभ की। इस योजना ने परीक्षण अधोसंरचना में निवेश को बढ़ावा दिया और विश्वस्तरीय परीक्षण आकर्षित किया ताकि उद्योग जगत की मांग पूरी हो सके।

योजना देश के मानक संचालन में निर्णायक बदलाव लाने वाली साबित हुई। इसकी कामयाबी के बाद बीआईएस ने 2016 में अधिनियम में बदलाव किया ताकि स्वनियमन और स्वप्रमाणन को प्रमुखता दी जा सके। तमाम उद्योगों में भारतीय मानकों को अपनाने को गति दी गई। यही वजह है कि अनिवार्य मानक वाले उत्पादों की संख्या 2023 तक 500 से अधिक हो गई और निकट भविष्य में यह 1500 से 2000 तक पहुंच सकती है।

बीआईएस को आगे चलकर मानक अपनाने की प्रक्रिया को सहज बनाना चाहिए। कड़ी निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए और पालन न करने वालों पर कड़ा जुर्माना लगाया जाना चाहिए। यह पारंपरिक रुख से अलग है जहां कठोर, जटिल और अधिक लागत के साथ शिथिल निगरानी होती थी। बीआईएस को मानकीकरण में सुधार लाने की जरूरत है।

देश का नवाचार परिदृश्य बीते दशक में नाटकीय ढंग से बदला है और करीब दो लाख से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप सामने आई हैं। 2013-14 से 2022-23 के बीच पेटेंट आवेदन चार गुना बढ़े हैं। देश को स्वदेशी मानक विकसित करने की संस्कृति अपनानी चाहिए।

देश के मानकों को विश्वस्तरीय बनाने के लिए देश की 1.4 अरब की आबादी और कई लाख करोड़ रुपये के बाजार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके लिए पहले हमें उद्योग जगत के नेतृत्व वाली और समुचित प्रतिकिया देने वाली मानक निर्माण संस्थाओं की जरूरत होगी। इसके लिए बीआईएस अधिनियम में संशोधन करने होंगे और उसे इनकी निगरानी करने वाला बनाना होगा।

सरकार को वैश्विक मानक निर्माण संस्थाओं में भारत की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा। तीसरा, विदेश मंत्रालय भी भारतीय विशेषज्ञों को वैश्विक मानक निर्माण संस्थाओं में जगह दिलाने में मदद कर सकता है। खासतौर पर सॉफ्टवेयर और फिनटेक के क्षेत्र में ऐसा किया जा सकता है जहां भारतीय कंपनियों और स्टार्टअप का प्रदर्शन बेहतर है।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट’ का नारा दिया था। क्या भारत अपनी मेक इन इंडिया पहल को इस नए मानक से नहीं जोड़ सकता ताकि इसे वैश्विक मानक बनाया जाए? जरूरत है मानसिकता में बदलाव की।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : May 21, 2024 | 10:09 PM IST