भारत सरकार द्वारा पेश की गई उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं (पीएलआई) को लेकर अंतिम तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन एक सत्य निर्विवाद है और वह है स्मार्टफोन उत्पादन के मामले में इसकी जबरदस्त कामयाबी। ऐपल और कुछ हद तक सैमसंग ने इस योजना का फायदा उठाया और इसने वित्त वर्ष 25 में भारत को 24 अरब डॉलर मूल्य के स्मार्टफोन निर्यात करने का अवसर दिया। वर्ष 2018 में हम शायद ही ऐसा निर्यात करते थे। आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्यातक है और उसका नंबर चीन और वियतनाम के बाद आता है। ऐपल अपने कुल आईफोन का 20 फीसदी भारत में असेंबल करता है और यह प्रतिशत बढ़ने वाला ही है। स्थानीय मूल्यवर्धन सीमित है लेकिन इसके बावजूद यह दो अंकों में है। समय के साथ इसमें इजाफा होगा क्योंकि कलपुर्जों की पूरी व्यवस्था धीरे-धीरे ऑनलाइन होगी।
ऐपल को आकर्षित करने की कामयाबी बहुत अहम है। अब यह बात स्पष्ट रूप से दर्ज हो चुकी है कि ऐपल ने अपने प्रशिक्षण, गुणवत्ता पर ध्यान और पैमाने के जरिये चीन में विश्वस्तरीय विनिर्माण व्यवस्था निर्मित की। उम्मीद है कि वह भारत के लिए भी ऐसा ही करेगी। ऐपल एक ऐसी शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिस पर सबकी करीबी नजर रहती है। अगर ऐपल जैसी गुणवत्ता पर ध्यान देने वाली कंपनी 50 अरब डॉलर मूल्य के 5 से 7.5 करोड़ स्मार्टफोन भारत में बनवा सकती है तो किसी अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनी के पास भला क्या बहाना रह जाएगा? अगर ऐपल इतने बड़े पैमाने पर भारत से विश्वस्तरीय उत्पाद तैयार कर सकती है तो क्या श्रम, लॉजिस्टिक्स या नियमन के मामले में भारत पर कोई सवाल उठा सकता है?
स्मार्टफोन के लिए पीएलआई को कुछ इस तरह तैयार किया गया जो सबके लिए लाभदायक हो। सरकार ने यकीनन ऐपल या सैमसंग से मशविरा करके ही इस योजना का डिजाइन तैयार किया होगा। अन्य कंपनियों तक पहुंच बनाने और उन्हें बातचीत में शामिल करने की योजना जरूर होनी चाहिए। ऐपल के लिए सोर्सिंग हब बनने की वैश्विक प्रतिस्पर्धा और इस क्षेत्र में हमारी क्षमताओं की सीमा को देखते हुए हम उनकी आशंकाओं का समाधान करने और उन्हें नीतिगत प्रत्युत्तर का आश्वासन देने में सक्षम होंगे। ऐपल ने जिस तेजी से अपना विस्तार किया है उसे देखते हुए सरकार में जरूर किसी ने यह सुनिश्चित करने की पहल की होगी कि उत्पादन बढ़ाने में आने वाली सभी बाधाओं को संयुक्त रूप से दूर किया जाएगा। भारत को स्मार्टफोन के क्षेत्र में विश्वस्तरीय बनाने और 7 लाख से अधिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार तैयार करने में मदद के लिए वे श्रेय और आभार के पात्र हैं। अब हम इससे एक व्यापक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण केंद्र के रूप में विकसति करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
हमें ऐपल के उदाहरण को सामने रखते हुए इसका विस्तार करना चाहिए। हमें शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा उन सभी क्षेत्रों में होना चाहिए जहां भारत को प्रतिस्पर्धी बढ़त हासिल है। पीएलआई योजना को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि अधिक से अधिक मूल सामग्री भारत से ली जाए। आज चीन से अमेरिका करीब 450 अरब डॉलर की सामग्री लेता है। इसमें से 50 फीसदी मांग केवल 50 ब्रांडों और अनुबंधित आपूर्तिकर्ताओं से आती है। हमें इन कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए।
हम इसे दो हिस्सों में बांट सकते हैं। पहला नाइकी जैसे ब्रांड जो 50 अरब डॉलर के राजस्व के साथ अपने उद्योग में वैश्विक स्तर पर शीर्ष पर है। नाइकी खुद बहुत कुछ नहीं बनाता फिर भी वह भारत से बहुत कम चीजें लेता है। हमें यह समझना होगा कि भारत आखिर कपड़ा और जूते-चप्पल के क्षेत्र में अच्छी मजबूती के बावजूद नाइकी के उत्पादों का स्रोत क्यों नहीं बना पा रहा? अगर हम नाइकी को साथ जोड़ सके तो हम उसके वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं को भारत आने को विवश कर सकेंगे। यह बात इस क्षेत्र की अन्य कंपनियों को प्रेरित करेगी। शुरुआती लागत अंतर को पाटने के लिए नीतिगत ढांचा तैयार किया जा सकता है, ठीक स्मार्टफोन के तर्ज पर।
हकीकत यह है कि सभी कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखला का जोखिम कम करने की जरूरत है। कारोबार के मामले में यथास्थिति उचित नहीं है। कंपनियों को एक वैकल्पिक भूराजनीतिक रूप से स्थिर जगह की जरूरत है। इस श्रेणी के अन्य उदाहरण हार्डवेयर के लिए डेल, खिलौनों के लिए मटेल और अंत:वस्त्रों के लिए विक्टोरिया सीक्रेट हो सकते हैं। ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के अग्रणी हैं। भारत से इन सभी को बहुत सीमित आपूर्ति होती है। यही ऐपल मॉडल है।
एक अन्य मॉडल यह होगा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चीन की तरह बड़ी विनिर्माण क्षमता के साथ आकर्षित किया जाए। चीन के 3.6 लाख करोड़ डॉलर के निर्यात में विदेशी निवेश वाले उपक्रमों का योगदान करीब 1 लाख करोड़ डॉलर है और उनमें करीब 4 करोड़ लोग काम करते हैं। इनमें से अधिकांश कंपनियां चीन में और विस्तार नहीं करना चाहती हैं। उन्हें किफायती विकल्प चाहिए।
हमारे विशाल घरेलू बाजार, तकनीकी कर्मचारियों, बढ़ती कामकाजी आयु वाली आबादी और विकसित पूंजी बाजारों के बावजूद भारत के लिए इन कंपनियों को आकर्षित करना मुश्किल रहा है। हो सकता है कि हमारी बुनियादी ढांचे की कमी, नियामकीय अड़चनें या व्यापार के लिए एक कठिन जगह होने की धारणा के कारण हम पर्याप्त प्रतिस्पर्धी न हों। तो सरकार की तरफ से इन 50 कंपनियों को आकर्षित करने के लिए केंद्रित रूप से प्रयास करने होंगे। अब समय आ गया है कि एक ऐसा कार्यबल बनाया जाए जो शीर्ष कंपनियों को आकर्षित करने का लक्ष्य बनाए और उन्हें ठोस तरीके से भारत बुलाने का रास्ता बताए। इस कार्यबल का काम होगा लक्षित कंपनियों को सरकार के उच्चतम स्तर से जोड़ना, अंतर मंत्रिस्तरीय मुद्दों को हल करना और केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय करना। उसे नीतिगत अंतर को समझकर हल भी सुझाने होंगे।
इस संस्था को सरकार के सर्वोच्च स्तर को रिपोर्ट करना चाहिए और इसके लिए लक्षित कंपनियां और समयसीमा तय होनी चाहिए। इसमें सभी प्रमुख मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए और यह जरूरी पहलों और सुधारों की मदद से वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने लायक होनी चाहिए। इसकी प्रगति की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। आदर्श स्थिति में तो खुद प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा किया जाना चाहिए।
ऐपल द्वारा भारत से आपूर्ति की शुरुआत संयोग से नहीं हुई। मुझे यकीन है कि इस राह में बाधाएं रही होंगी जिन्हें मिलकर दूर किया गया होगा। अब भारत को कम से कम 50 अन्य बड़ी कंपनियों के साथ उस सिलसिले को दोहराना होगा। भारत को ऐसा नीतिगत ढांचा तैयार करना होगा जो हर लक्षित उद्योग की खास चिंताओं को दूर करे। एक बार उनके प्रतिबद्धता जताने के बाद उनके आपूर्तिकर्ता भी अनुसरण करेंगे और छोटे उद्योग भी पीछे रहना नहीं चाहेंगे।
अन्य देश चाहे वह सिंगापुर हो, मलेशिया या वियतनाम, सभी ने यही किया है। उनके लोगों ने पूरी दुनिया की यात्रा करके निवेश जुटाया। तो अब पूरा ध्यान विनिर्माण पर होना चाहिए क्योंकि सेवा के मामले में तो हम पहले ही स्थापित हैं।
कंपनियों को जोखिम कम करने की जरूरत के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को नए सिरे से निर्देशित करने पर विवश होना पड़ रहा है। वैश्विक विनिर्माण में 32 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चीन अपने उच्चतम स्तर पर है। इससे दुनिया असहज है। अगले 25 साल में चीन कामकाजी आयु की आबादी में 22.5 करोड़ की कमी आएगी। पश्चिमी देश सभी उद्योगों में प्रतिस्पर्धा से परे होते जा रहे हैं और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सभी लोगों और लागत संबंधी चिंताओं का समाधान नहीं कर सकती है। जैसे-जैसे चीन मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ रहा है, और पश्चिमी प्रतिस्पर्धियों को चुनौती दे रहा है, भारतीय और वैश्विक कंपनियों के बीच साझेदारी की संभावनाएं मजबूत हुई हैं। भारत में सटीक विनिर्माण और बड़े पैमाने पर असेंबलिंग दोनों ही क्षेत्रों में अवसर मौजूद हैं।
हमारे पास अवसर है कि हम वैश्विक मूल्य श्रृंखला में शामिल हों। इसके लिए सरकार के उच्चतम स्तर पर के लोगों को पहल करने और ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। बीते 50 साल में हमने कई अवसर गंवाए हैं। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए।
(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)