राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 2024-25 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.5 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया है। यह 6.4 फीसदी वृद्धि के उसके पिछले अनुमान से अधिक है मगर भारतीय रिजर्व बैंक तथा अन्य के अनुमान से कम है।
एनएसओ का अनुमान बताता है कि 2021-22 तथा 2023-24 के बीच औसत वृद्धि दर 8.8 फीसदी रहने के बाद एक बार फिर महामारी से पहले वाले दशक की सामान्य औसत वृद्धि दर लौट रही है। इसकी वजह ऊंची ब्याज दर तथा कम राजकोषीय प्रोत्साहन है। साथ ही जीडीपी की तुलना में निवेश का अनुपात भी ठहर रहा है। भारत कोविड-19 महामारी से उबरा तो वृद्धि अनुमान तेजी से बढ़ा दिए गए मगर इनका आधार कम था क्योंकि 2020-21 में वृद्धि दर घटकर 5.8 फीसदी ही रह गई थी। बुनियादी ढांचा विकास पर सरकार के जोर, तेज डिजिटलीकरण और बैंकों की मजबूत बैलेंस शीट ने भी स्थिति सुधारने में मदद की।
टैरिफ की जंग शुरू होने पर भी हमें देश के भीतर के कारणों से 2025-26 में 6.5 फीसदी जीडीपी वृद्धि का अनुमान है। एसऐंडपी ग्लोबल ने हाल में कहा कि चीन को छोड़कर एशिया प्रशांत की बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाएं देश के भीतर मांग के दम पर आगे बढ़ेंगी और वृद्धि के अनुमान मामूली कम हो सकते हैं।
कम अंतराल पर आने वाले आंकड़े भी वैश्विक वृद्धि में सुस्ती की बात कह रहे हैं। आर्थिक वृद्धि एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने चालू वित्त वर्ष के लिए वैश्विक वृद्धि का अपना पूर्वानुमान हाल में 3.3 फीसदी से घटाकर 3.1 फीसदी कर दिया। बढ़ते संरक्षणवाद और उसी तरह की औद्योगिक नीतियों के कारण विश्व व्यापार भी सुस्त हो सकता है। एसऐंडपी-जीईपी सप्लाई चेन इंडेक्स भी बता रहा है कि दुनिया भर में क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा।
विकसित अर्थव्यवस्थाओं में खास तौर पर मुद्रास्फीति बढ़ने के अनुमान हैं यानी मौद्रिक नीति अधिक सख्त हो सकती हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दर कटौती टाल दी है। अनिश्चितता देखकर कई अन्य विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी तात्कालिक आंकड़ों पर ध्यान देंगे।
भारत के देसी कारक तीन मामलों में आश्वस्त करते हैं। पहला, देश के कुल निर्यात में सेवा की बढ़ती हिस्सेदारी विश्व व्यापार में उथल-पुथल से कुछ हद तक बचाती है। 2011-12 में 31 फीसदी हिस्सेदारी 2024-25 में 47 फीसदी हो चुकी है। हमारा विश्लेषण बताता है कि देश का वस्तु व्यापार पूरी दुनिया की तर्ज पर रहा है मगर सेवा व्यापार मजबूती से बढ़ता रहा है। चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 11 महीनों में वस्तु निर्यात पिछले साल की तरह 396 अरब ही रहा मगर सेवा निर्यात तेजी से बढ़ा। यकीनन अमेरिका से भारत जितना आयात करता है, उससे ज्यादा वहां निर्यात करता है। मगर ज्यादातर वस्तु व्यापार होता है और अमेरिका से आयात पर तगड़ा शुल्क लगाया जाता है। ऐसे में शुल्कों की चोट एमएसएमई पर पड़ेगी।
दूसरा, भारत के बाहरी जोखिम के संकेतक मजबूत हैं क्योंकि चालू खाते का घाटा संभाला जा सकता है, विदेशी कर्ज कम चुकाना है, विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा तेज वृद्धि हो रही है। विदेशी बफर ज्यादा होने के कारण भारत वैश्विक अनिश्चितताओं और पूंजी निकलने की समस्या का सामना कर पाया है। अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय बाजार से 22.7 अरब डॉलर निकाल लिए, जबकि इससे पहले के छह महीनों में 22 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश किया था। फिर भी रुपया पहले की तरह एकाएक नहीं गिरा।
तीसरा, हमें खाद्य मुद्रास्फीति घटने की उम्मीद है। कर्ज की लागत कम होने और मध्य वर्ग को कर लाभ मिलने से खपत तथा कुल वृद्धि बढ़ने की उम्मीद है। तीन साल बाद खाद्य मुद्रास्फीति घटने से खर्च की गुंजाइश बनेगी। कम आय वाले शहरी और ग्रामीण परिवार खाद्यान्न पर अधिक खर्च कर सकेंगे। मॉनसून सामान्य रहा और मौसम में बड़ा उतार-चढ़ाव नहीं हुआ तो कृषि अच्छी रहेगी और वित्त वर्ष 26 में खाद्य महंगाई घट सकती है।
रिजर्व बैंक ने फरवरी में रीपो दर घटाई है। 2025-26 में 75 आधार अंकों की कटौती और हो सकती है। इससे वृद्धि को थोड़ी मदद मिलेगी क्योंकि मौद्रिक उपायों का असर धीमे होता है। नकदी की किल्लत इसे और धीमा बना देती है।
अगले वित्त वर्ष में कच्चे तेल के दाम अनुमान के मुताबिक 70 डॉलर प्रति बैरल रहे तो चालू खाते का घाटा और महंगाई काबू में रहेंगे। इससे कच्चा माल सस्ता होगा और जीडीपी वृद्धि तेज होगी। खाद्य मुद्रास्फीति और कच्चे तेल के भाव घटने से मुख्य मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब आएगी। किंतु कम आधार प्रभाव और चढ़ते सोने के कारण समग्र मुद्रास्फीति 3.5 फीसदी से बढ़कर 4.5 फीसदी हो सकती है।
जीडीपी में निवेश की हिस्सेदारी 2025-26 में बनी रहेगी। सरकार और परिवारों के निवेश ने ही महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है। बेहतर वित्तीय गुंजाइश के बाद भी निजी कंपनियां निवेश कम कर रही हैं। फरवरी में एनएसओ के क्षेत्रवार आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 24 और वित्त वर्ष 25 में हालात ज्यादा नहीं बदले। वित्त वर्ष 26 में भी कंपनियां निवेश बढ़ाती नहीं लगतीं। वैश्विक अनिश्चितताएं भी निवेश को ठंडे बस्ते में धकेल रही हैं।
अमेरिका ने चीन पर शुल्क बढ़ाया और उसका आयात रोका तो ज्यादा क्षमता और मंदी से परेशान चीन दूसरे देशों में अपना माल पाटेगा। इसका शिकार भारत भी बनेगा, जो पहले ही चीन से भारी आयात के कारण परेशान है। इससे देसी उत्पादक भी नहीं समझ पाते कि कितनी मांग आएगी।
केंद्र सरकार ने पूंजीगत व्यय में 10.1 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया है, वित्त वर्ष 26 में वृद्धि को बहुत सहारा देगा। लागत और समय बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को तैयार परियोजनाओं पर जोर देना होगा।
जीडीपी में 6.5 फीसदी वृद्धि के साथ भारत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी रहेगा। संरक्षणवादी रवैया बढ़ा तो देश के भीतर के कारक आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के लिए अहम हो जाएंगे। भारत को कारोबारी गठजोड़ तैयार करते हुए आपूर्ति श्रृंखला में हो रहे अहम बदलावों से निपटना होगा और देश के भीतर गतिरोध दूर करने के लिए आर्थिक सुधार भी अपनाने होंगे। इसके लिए कारोबारी सुगमता बढ़ाने की जरूरत है ताकि अनुपालन का बोझ कम हो सके तथा नियम-कायदे सरल बन सकें। इससे हम बेहतर वृद्धि हासिल करते हुए 2047 तक विकसित भारत की दिशा में कोशिश कर पाएंगे।
(लेखक क्रिसिल में मुख्य अर्थशाास्त्री हैं)