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डेरिवेटिव्स का भ्रम: जेन स्ट्रीट केस ने उजागर की भारत के F&O बाजार की खामियां

इंडेक्स डेरिवेटिव्स में विशाल मात्रा केवल दो सूचकांकों तक सीमित है: निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी, और कुछ हद तक फिननिफ्टी।

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देवाशिष बसु   
Last Updated- August 03, 2025 | 10:47 PM IST

गत माह देश के नियामकों ने एक हाई फ्रीक्वेंसी वाली ट्रेडिंग फर्म, जेन स्ट्रीट, को कथित तौर पर बाजार में हेराफेरी करते हुए पकड़ा था। यह एक नियामकीय कामयाबी प्रतीत हो सकती है, लेकिन सच तो यह है कि इसने वर्षों की तेज वृद्धि के बाद भारत के डेरिवेटिव बाजार के मूल में मौजूद गहरी संरचनात्मक खामियों को उजागर कर दिया। एक तो, वायदा और विकल्प यानी एफऐंडओ कारोबार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सूचकांक त्रुटिपूर्ण हैं। दूसरा, नीति निर्माताओं का यह दावा पूरी तरह सही नहीं है कि डेरिवेटिव बाजार कुशल मूल्य निर्धारण को सक्षम बनाता है, बाजार में नकदी की स्थिति में सुधार करता है और निवेशकों को जोखिम प्रबंधन की अनुमति देता है। इंडेक्स डेरिवेटिव्स में विशाल मात्रा केवल दो सूचकांकों तक सीमित है: निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी, और कुछ हद तक फिननिफ्टी। आइए दो कारकों पर नजर डालें: सूचकांक संरचना और एफऐंडओ बाजार की दक्षता।

असंतुलित सूचकांक

सूचकांक निर्माण को अक्सर एक अजीबोगरीब अभ्यास माना जाता है। इसमें भार, नकदी, मुक्त प्रवाह, क्षेत्रवार प्रतिनिधित्व जैसे कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों पर बहस होती है और फिर सूचकांकों में शेयरों को जोड़ने और हटाने के लिए समय-समय पर इन सबकी समीक्षा शामिल होती है। ऐसे तकनीकी निर्णय ट्रेडिंग और सट्टेबाजी के लिए गौण लग सकते हैं, लेकिन इनके गहरे निहितार्थ होते हैं। इंडेक्स एफऐंडओ बाजार पर लगभग काबिज दो सूचकांकों में से, बैंक निफ्टी और भी अधिक विषम है। इसके दो घटक यानी एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक इसके भार का आश्चर्यजनक रूप से 53 फीसदी हिस्सा रखते हैं। सूचकांक के शीर्ष पांच शेयरों का कुल भार 82 फीसदी है।

यदि यह सूचकांक एक ऐसा उत्पाद होता जो केवल बैंकिंग शेयरों की दिशा का संकेत देता, तो यह हानिरहित होता। लेकिन यदि कोई म्युचुअल फंड बैंकिंग क्षेत्र का फंड प्रस्तुत करना चाहता है, तो वह बैंक निफ्टी को मानक सूचकांक के रूप में उपयोग करेगा। समस्या की शुरुआत यहीं से होती है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) चाहता है कि निवेश प्रबंधक मानक सूचकांक को गंभीरता से लें। लेकिन एक ऐसा सूचकांक कितना सार्थक हो सकता है जहां 53 फीसदी भार दो शेयरों में है? यदि एक बैंकिंग क्षेत्र के फंड ने 25-30 शेयरों में निवेश किया है, जिसमें से 10 फीसदी एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक को आवंटित हैं, तो ऐसे फंड के लिए मानक सूचकांक कितना सार्थक होगा? इसके विपरीत, क्या एक बैंकिंग फंड को दो शेयरों में 53 फीसदी निवेश करना चाहिए और क्या वे सूचकांक की प्रतिकृति करेंगे?

इससे भी बुरी बात यह है कि सेबी ने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) को इस अस्थिर सूचकांक पर बैंक निफ्टी वायदा, मासिक विकल्प और फिर भयावह रूप से साप्ताहिक विकल्प लॉन्च करने की अनुमति दे दी। सबसे अधिक नकदीकृत बैंकिंग शेयर एचडीएफसी बैंक है। पिछले गुरुवार को, एक कारोबारी समापन वाले दिन, नकदी बाजार में लगभग 1,900 करोड़ रुपये के शेयरों का कारोबार हुआ। इस बीच केवल 57,000 के एक स्ट्राइक मूल्य पर बैंक निफ्टी कॉल ऑप्शन के कारोबार का कुल आकार 3.98 लाख अनुबंधों का था। इनकी अनुमानित कीमत उस दिन करीब 79,898 करोड़ रुपये थी।

जेन स्ट्रीट के चतुर लोगों ने हालात की विचित्रता को भांपा। 12 शेयरों का हानिरहित बैंक निफ्टी सूचकांक साप्ताहिक विकल्प में उनके हाथों का हथियार बन गया। विकल्प में कारोबार बैंक निफ्टी के कम नकदीकृत दिग्गजों की तुलना में 10-12 गुना था। इसका वित्तीय समकक्ष, निफ्टी वित्तीय सेवा सूचकांक (फिननिफ्टी), भी यही कमियां दर्शाता है। एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक का संयुक्त योगदान इसके भारांश में 54.5 फीसदी है। सेबी ने इस सूचकांक पर भी डेरिवेटिव्स की अनुमति दी है, हालांकि यहां साप्ताहिक विकल्प की अनुमति नहीं है।

कुशलता का प्रश्न

बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत का एफऐंडओ बाजार कोई वास्तविक उद्देश्य पूरा करता है? वित्त वर्ष 2017-18 (वित्त वर्ष 18) और 24 के बीच, डेरिवेटिव्स का अनुमानित या परिक​ल्पित कारोबार 1,650 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 80,000 लाख करोड़ रुपये हो गया। भारत अब वैश्विक एक्सचेंज-ट्रेडेड डेरिवेटिव्स कारोबार का आधा हिस्सा रखता है, जिसमें शेयर सूचकांक विकल्प का दबदबा है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत मूल्य निर्धारण, नकदी और हेजिंग के मुक्त बाजार के स्वप्नलोक में पहुंच गया है। यद्यपि यह एक गलत धारणा होगी। इस गतिविधि का बड़ा हिस्सा दो सूचकांकों में केंद्रित है: निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी। उनके अस्थिर आकार के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। भले ही एनएसई ने एक दर्जन से अधिक अन्य सूचकांक लॉन्च किए हैं लेकिन उनमें से अधिकांश सक्रिय नहीं हैं।

उन दावों का क्या कि एफएंडओ वॉल्यूम हेजिंग के माध्यम से जोखिम प्रबंधन में मदद करते हैं? म्यूचुअल फंड, पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाएं और व्यक्तिगत निवेशक अपने पोर्टफोलियो का 60-80 फीसदी हिस्सा स्मॉल और मिड-कैप शेयरों में रखते हैं। वे इसे किससे बचाएंगे? निश्चित रूप से निफ्टी (50 बड़ी कंपनियों से मिलकर) या बैंक निफ्टी (एक क्षेत्रीय सूचकांक) से नहीं। फिर भी स्मॉलकैप 50 या मिडकैप 50 जैसे सूचकांकों के लिए कोई व्यवहार्य विकल्प बाजार नहीं है। डेरिवेटिव ट्रेडिंग में निफ्टी नेक्स्ट 50 भी एक भुतहा शहर जैसा है। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि अस्थिर एफऐंडओ बाजार में जो कुछ भी होता है उसका नकदी बाजार से कोई लेना-देना नहीं है। मूल्य निर्धारण भ्रामक है। नकदी की स्थिति सतही है। तो हेजिंग यानी जोखिम से बचाव एक सिद्धांत है, व्यवहार नहीं।

आखिर यह स्थिति कैसे बनी? सेबी ने सूचकांक निर्माण में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। इससे विषम मानक के इस्तेमाल की इजाजत मिल गई। इसने एनएसई के सटोरिया प्रस्तावों को हरी झंडी दे दी है। इन उत्पादों को इजाजत देकर नियामक उनके ‘उपयोग के मामलों’ की निगरानी करने में विफल रहे हैं और इस प्रकार बाजार वाइड पोजिशन लिमिट तय करने और इंट्रा डे ट्रेड निगरानी करने में नाकाम रहा है। कुछ डेरिवेटिव्स में सटोरिया कारोबार गलत स्तर तक बढ़ गया है। जबकि अन्य डेरिवेटिव्स जो अधिक उपयोगी होने चाहिए थे, वे नकदी की कमी से जूझ रहे हैं। जेन स्ट्रीट ने भले ही एक गलत सिस्टम में घोटाला किया हो लेकिन इसका निर्माण उसने नहीं किया है।

First Published : August 3, 2025 | 10:47 PM IST