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विकसित भारत की कैसी होगी राह?

समावेशी विकास और मजबूत संस्थानों के बिना भारत को मध्यम आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत होने का जोखिम उठाना पड़ता है। बता रहे हैं अजय छिब्बर

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अजय छिब्बर   
Last Updated- June 20, 2023 | 6:35 PM IST

भारत सरकार ने 2022 में खुद को ‘विकसित भारत’ (उन्नत भारत) बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया। प्रधानमंत्री ने हाल ही में नई संसद के उद्घाटन के दौरान और नीति आयोग की ताजा बैठक में इसका उल्लेख फिर से किया। मैं इस लक्ष्य को लेकर खासा उत्साहित हूं क्योंकि मेरे सह-लेखक और मैंने अपनी पुस्तक ‘अनशैकलिंग इंडिया: क्लियर चॉइसेज ऐंड हार्ड ट्रुथ्स फॉर इकनॉमिक रिवाइवल’ में ‘समृद्ध और समावेशी भारत’ के समान दृष्टिकोण का सुझाव दिया है।

लेकिन ‘विकसित भारत’ बनने का क्या मतलब है? अर्थव्यवस्था का आकार कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह मानदंड अकेले ही विकसित देश का दर्जा पाने की पात्रता नहीं रखता है। उदाहरण के तौर पर चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसे एक महाशक्ति माना जाता है जो अंततः अमेरिका से आगे निकल जाएगा, लेकिन इसे विकसित नहीं माना जाता है क्योंकि इस देश के औसत नागरिक औसत अंग्रेजों की तुलना में चार गुना गरीब है और औसत अमेरिकी नागरिकों की तुलना में छह गुना गरीब हैं।

इसी तरह, भारत अब ब्रिटेन से आगे निकलकर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है लेकिन औसत भारतीय औसत अंग्रेजों की तुलना में 20 गुना गरीब हैं। ऐसे में हमें विकसित और प्रगतिशील देश वाले वाले मानदंड पर एक लंबी राह तय करनी है।

वर्ष 2022 में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 41 देशों को विकसित अर्थव्यवस्थाओं के तौर पर वर्गीकृत किया लेकिन इसकी परिभाषा स्पष्ट या समय के साथ सुसंगत नहीं दिखती है। विश्व बैंक 2022 की कीमतों के आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के लिए 13,205 डॉलर की सीमा का उपयोग करते हुए लगभग 80 देशों को ‘उच्च आय’ वाली श्रेणी में वर्गीकृत करता है।

UNDP में मानव विकास सूचकांक (HDI) प्रति व्यक्ति GNI में मानव जीवन के अहम आयामों (जीवन प्रत्याशा, शिक्षा आदि) को जोड़ता है और यह 66 देशों को ‘उच्च मानव विकास’ श्रेणी में वर्गीकृत करता है जो एक विकसित अर्थव्यवस्था की मोटी परिभाषा के अनुरूप है।

यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि 2047 में एक विकसित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं क्या होंगी, लेकिन विश्व बैंक और UNDP के पास विकसित अर्थव्यवस्था की परिभाषा के लिए स्पष्ट मानदंड हैं और आइए उनका उपयोग करके देखते हैं।

मौजूदा स्तर पर विकसित देश के 13,205 डॉलर के प्रति व्यक्ति GNI स्तर तक पहुंचने में प्रति व्यक्ति GNI में सालाना 7 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ भी 25 साल लगेंगे। इसका मतलब है कि जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए अगले 25 वर्षों तक GNI में प्रति वर्ष लगभग 8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होनी चाहिए। हाल के वर्षों में चीन को छोड़कर कुछ देशों ने यह वृद्धि निरंतर हासिल की है।

वर्ष 2021 में भारत का HDI स्कोर 0.633 था और 0.8 के उच्च मानव विकास की सीमा तक पहुंचने के लिए प्रति वर्ष लगभग 0.9 प्रतिशत की HDI वार्षिक वृद्धि की आवश्यकता होगी। वर्ष 1990 और 2021 के बीच HDI में भारत की वृद्धि लगभग 1.25 प्रतिशत सालाना थी।

लेकिन यह याद रखे कि जैसे-जैसे आप HDI के पैमाने पर ऊपर जाते हैं, यह और अधिक कठिन हो जाता है क्योंकि जीवन प्रत्याशा और स्कूली शिक्षा ऊपरी सीमा के स्तर पर पहुंच जाती है और बेहतर HDI अंक हासिल करने के लिए आमदनी वृद्धि में भी अच्छी वृद्धि लाजिमी होगी।

भारत का मानव विकास सूचकांक वर्ष 2010-21 से केवल 0.88 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा। इसलिए, बहुत उच्च मानव विकास श्रेणी की सीमा तक पहुंचने के लिए हमें अगले 25 वर्षों के लिए इस दर को बनाए रखने की आवश्यकता होगी हालांकि ऐसा करना इतना आसान नहीं है।
भारत का HDI स्कोर 2018 में 0.647 से गिरकर 2021 में 0.633 हो गया। महामारी के कारण आमदनी को नुकसान पहुंचा लेकिन स्कूली शिक्षा और जीवन प्रत्याशा भी प्रभावित हुई क्योंकि हजारों (कुछ का अनुमान है कि लाखों) की मौत हो गई।

तुलनात्मक रूप से, महामारी के बावजूद बांग्लादेश और थाईलैंड के HDI स्कोर में वृद्धि हुई। भारत को इसलिए भी अधिक नुकसान हुआ कि विकास के अपने स्तर पर, इसके हिस्से में 77 प्रतिशत अस्थायी रोजगार (कोई निश्चित अनुबंध नहीं) का असंतुलित अनुपात में एक बड़ा हिस्सा है।

बांग्लादेश में यह 55 प्रतिशत है जहां मोटे तौर पर भारत की हिस्सेदारी होनी चाहिए। ऐसे में यह वित्तीय संकट या महामारी के झटकों के लिए अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है। वर्ष 2022 में 23.2 प्रतिशत पर युवा बेरोजगारी भी बहुत अधिक है। महिला श्रम बल की भागीदारी बहुत कम है और यह लगातार घट रही है। भारत को अपनी कामकाजी आबादी का उपयोग अब तक की तुलना में बेहतर तरीके से करना चाहिए। बढ़ती असमानता ने भी नुकसान पहुंचाया है।

UNDP का अनुमान है कि असमानता के कारण भारत के HDI स्कोर में 24 प्रतिशत की गिरावट है। असमानता को आधा करने से भारत का HDI स्कोर 0.7 से ऊपर बढ़ जाएगा और भारत को उच्च HDI श्रेणी में वर्गीकृत किया जाएगा। ‘विकसित बनने के लिए हमें न केवल अधिक ‘समृद्ध भारत’ आवश्यकता है, बल्कि एक और ‘समावेशी भारत’ बनाने की भी आवश्यकता है।

विश्व बैंक के वर्गीकरण में 80 देशों को विकसित देश का दर्जा प्राप्त है, 104 और देश, विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं। इन्हें 51 निम्न-मध्यम आय और 53 उच्च-मध्यम आय वाले देशों में विभाजित किया गया है। अर्जेंटीना और ब्राजील जैसे कई उच्च मध्यम आय वाले देश की स्थिति भी खस्ता है और वे तथाकथित रूप से मध्यम आय के जाल में फंस गए हैं। उन्होंने एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए सफल प्रयास करने के मकसद से आवश्यक संस्थागत साधनों का निर्माण नहीं किया।

भारत, अब एक निम्न मध्यम आय वाला देश है जिसे सबसे पहले उच्च मध्यम आमदनी वाली स्थिति तक पहुंचने के प्रयास करने चाहिए जिसके लिए वर्ष 2022 की कीमतों के लिहाज से प्रति व्यक्ति 4,255 डॉलर GNI की आवश्यकता होती है। यदि भारत, प्रति व्यक्ति GNI में 7 प्रतिशत सालाना दर से वृद्धि करता है तब यह 2032 तक उच्च आमदनी वाली स्थिति में पहुंच जाएगा। यह 2022 की कीमतों के आधार पर 6-7 लाख करोड़ रुपये वाली अर्थव्यवस्था होगी जो आसानी से तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है लेकिन अब भी यह एक विकसित अर्थव्यवस्था की स्थिति से बहुत दूर है।

इसी तरह, UNDP में 0.7 और 0.8 के बीच के स्कोर के साथ ‘उच्च’ मानव विकास की श्रेणी है। इंडोनेशिया और वियतनाम में HDI 0.7 से ऊपर है। वहीं 0.633 के HDI स्कोर के साथ भारत लगभग 2032 तक उस श्रेणी में पहुंच सकता है। अगर हमने महामारी के दौरान अपने HDI में गिरावट नहीं देखी होती तब हम पहले ही उच्च मानव विकास श्रेणी में पहुंच सकते थे और ऐसा संभवतः 2030 तक हो सकता था।

अगर हम इस मध्यवर्ती चरण तक पहुंचने पर विचार करें तब मजबूत संस्थानों, बुनियादी ढांचे और मानव पूंजी के साथ शीर्ष की तरफ बढ़ना एवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुंचने की बेहतर तैयारी के माफिक है। अगर हम बेस कैंप तक पहुंचते हैं लेकिन हमारे पास आखिरी कोशिश के लिए संसाधन नहीं होंगे तब हम फिर से मध्यम आय के जाल में फंस सकते हैं। एक बार मजबूत मानव पूंजी और संस्थानों के साथ भारत 100 वें स्थान पर ‘विकसित भारत’ की योजना बना सकता है।

लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि उचित योजनाओं की रूपरेखा और सावधानीपूर्वक चयनित मध्यवर्ती लक्ष्यों के बिना बड़े लक्ष्य तय करना महज एक इच्छा साबित होगी।

(लेखक इक्रियर और जॉर्ज वॉ​शिंगटन यूनिव​र्सिटी के अति​थि प्राध्यापक हैं)

First Published : June 20, 2023 | 6:35 PM IST