पिछले सप्ताह के अंत में बाजार नियामक सेबी ने दो छोटे चर्चा पत्र जारी किए जिनका मकसद वित्तीय इन्फ्लुएंसरों या फिनफ्लुएंसरों के अवैध तौर तरीकों पर लगाम लगाना है। सेबी के अनुसार ‘फिनइनफ्लुएंसर आमतौर पर ऐसे अपंजीकृत लोग या कंपनियां होते हैं जो अपने फॉलोअरों को विभिन्न वित्तीय मसलों पर लुभावनी सामग्री, जानकारी और सलाह उपलब्ध कराते हैं।’ सेबी उन पर लगाम क्यों लगाना चाहता है?
जो कोई भी इस तरफ ध्यान दे रहा है वह देख रहा है कि कैसे इनफ्लुएंसर आग की तेजी से फैलते जा रहे हैं और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, लिंक्डइन और ट्विटर (अब एक्स) पर अपने फॉलोअरों को मोहने वाली स्टोरियां चला रहे हैं, मेसेज दे रहे हैं, रील और वीडियो बना रहे हैं। इस तरह निवेशकों को शिक्षित करने के नाम पर शेयरों और डेरिवेटिव की तरफ मोड़ रहे हैं। जाहिर है, इससे उन लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
कंपनियों, उत्पादों और सेवाओं के बारे में गलत या फेक, विकृत या खुशनुमा पोस्ट व्यापक होती जा रही हैं। इनमें से न केवल ज्यादातर सलाह नुकसानदेह साबित हुई हैं बल्कि सेबी के नजरिये से यह गैर कानूनी भी है क्योंकि ज्यादातर इनफ्लुएंसर अपंजीकृत है। ये लोग पंजीकृत निवेश सलाहकार (आईए) या शोध विश्लेषक (आरए) नहीं हैं जो नियमन वाले शेयरों और म्युचुअल फंडों की योजनाओं के बारे में निवेश सलाह दे सकें। वे अक्सर धोखे वाली क्रिप्टो योजनाओं, गेमिंग साइटों या पोंजी और मल्टी लेवल मार्केटिंग योजनाओं को बढ़ावा देते हैं जिनमें नुकसान होना ही होता है।
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इनफ्लुएंसर एक पोस्ट के लिए कम से कम 10,000 रुपये से लेकर साढ़े सात लाख रुपये तक वसूलते हैं जिस पर कर अलग से होता है। इनफ्लुएंसर मार्केटिंग एजेंसियां अपने फॉलोअरों को लुभाने के लिए एक अभियान के 20 लाख रुपये और साथ में कर मांगती हैं। इस करतूत का असर न केवल वित्तीय योजनाओं बल्कि स्वास्थ्य, खाद्य पोषण, टिकाऊ सामान और कई अन्य लोकप्रिय श्रेणियों में पड़ता है। यही कारण है कि भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (आस्की ) अनैतिक प्रभाव को रोकने के लिए डिजिटल मीडिया में एडवरटाइजिंग इनफ्लुएंसर के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
आस्की के अनुसार ‘एक इनफ्लुएंसर वह है जिसकी श्रोताओं तक पहुंच होती है और जो अपने श्रोताओं के खरीद निर्णय या राय को प्रभावित करने की ताकत रखता है। यह राय किसी उत्पाद, सेवा, ब्रांड या अनुभव के बारे में हो सकती है और वजह है इनफ्लुएंसर की अथॉरिटी, जानकारी, पोजीशन और अपने श्रोताओं से उसके संबंध।’
बहरहाल, जितने भी उत्पाद गलत तरीके से बेचे जाते हैं उनमें वित्तीय योजनाएं ऐसी हैं जो सबसे ज्यादा हानि पहुंचा सकती हैं। जोरदार तरीके से प्रचारित ऑप्शन सेलिंग रणनीति, जिसके साथ भारी मुनाफे के फर्जी दावे किए जाते हैं, वह भीषण नुकसान भी पहुंचा सकती है। या किसी एक शेयर को हॉट आइडिया के रूप में प्रचारित किया जा सकता है और कारोबार बढ़ाकर लालची निवेशकों को उसमें खींचकर उनको शेयर टिकाए जा सकते हैं।
एक मामले में तो यह पता चला कि कंपनी ही जालसाजी और धोखाधड़ी में शामिल है और उसने अपने खाते-बही में हेराफेरी की है। इस तरह के वीडियो और पोस्ट में हमेशा ही डिस्क्लेमर के रूप में लिखा जाता है कि ‘यह निवेश सलाह नहीं है’ और इसका मकसद सिर्फ ‘आप को शिक्षित करना’ है। लेकिन इस तरह के प्रचार इतने मासूम तो नहीं होते।
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सेबी को पता चला है कि अपंजीकृत या बिना नियम वाले फिनफ्लुएंसर इसी व्यवस्था के तहत काम करते हैं। कई लोग तो रेफरल फीस या किसी उत्पाद, चैनल, प्लेटफॉर्म या सेवाओं के प्रचार में मुनाफे की हिस्सेदारी से पैसा कमाते हैं या फिर उनको सोशल मीडिया या अन्य प्लेटफॉर्म से सीधा भुगतान मिल जाता है।
एक ट्रेडर जो यह दावा करता है कि इंट्राडे कारोबार में वह एक साल में करोड़ों रुपये कमा लेता है, लेकिन फिर भी उसे रेफरल फीस से पैसा कमाने की जरूरत पड़ रही है। वह सांस भी नहीं लेता और रोजाना निफ्टी और बैंक निफ्टी पर यूट्यूब वीडियो बनाए जाता है जहां वह अपने 14.4 करोड़ से अधिक सदस्यों को प्रोत्साहित करता है कि वे उन तीन ब्रोकिंग फर्म के साथ ब्रोकरेज अकाउंट खोलें जो उसे पैसा देती हैं।
इस साल मई में सेबी ने एक लोकप्रिय इनफ्लुएंसर पी आर सुंदर पर शिक्षा की आड़ में अप्रत्यक्ष रूप से निवेश सलाह देने पर 6.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। अपनी ट्रेडिंग टेक्नीक की सफलता बताते हुए वह रोल्स रॉयस खरीदने और दुबई में शानदार जीवन बिताने जैसी तस्वीरें भी साथ लगाता था। इससे हजारों लोग उसके कोर्स की तरफ आकर्षित हुए।
फॉलोअरों को यह कभी पता नहीं चलता कि ‘शिक्षा’ की आड़ में वे लोग गुप्त रूप से भुगतान प्राप्त कर रहे हैं जो उन्हें सीधे या अन्य वित्तीय मध्यस्थ के माध्यम से मिल रहा है। फिनफ्लुएंसरों को किसी संभावित हितों के टकराव का खुलासा नहीं करना होता है।
इस पर अंकुश की सेबी की योजना क्या है? चर्चा पत्रों से पता चलता है कि उसने दो कदम का प्रस्ताव किया है। पहला, ऐसे इनफ्लुएंसरों का कमाई का मॉडल तोड़ना। इसके लिए सेबी पंजीकृत मध्यस्थों और नियमन वाली इकाइयों या उनके एजेंटों या प्रतिनिधियों से कहेगा कि वे अपनी सेवाओं या योजनाओं के प्रचार या विज्ञापनों के लिए किसी भी अपंजीकृत इकाई या व्यक्ति (इनफ्लुएंसरों समेत) के साथ मौद्रिक या गैर मौद्रिक यानी किसी भी रूप में इन लोगों से कोई संबंध न रखें।
सेबी यह भी चाहता है कि पंजीकृत मध्यस्थ ऐसे लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 के तहत मामले दर्ज कराने जैसे जरूरी कदम भी उठाएं। अगर फिनफ्लुएंसर सेबी से पंजीकृत हैं तो वे अपना रजिस्ट्रेशन नंबर, संपर्क का विवरण और निवेशक शिकायत निपटान हेल्पलाइन भी दिखाएंगे। किसी पोस्ट के बारे में उचित खुलासा और डिस्क्लेमर भी देंगे। साथ ही वह प्रासंगिक नियमन के तहत आचार संहिता का पालन करेंगे और सेबी, शेयर बाजारों और सेबी से मान्यता प्राप्त निगरानी निकायों के विज्ञापन दिशानिर्देशों की भी पालना करेंगे।
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दूसरे कदम के तहत सेबी ने आईए और आरए (मध्यस्थ) के निगरानी निकाय का प्रस्ताव किया है जो अपने पोर्टल के जरिये केंद्रीकृत तरीके से फीस वसूलेगा। पंजीकृत आईए और आरए लॉगइन करके इस पोर्टल के जरिये ही भुगतान प्राप्त कर सकते हैं । इसके तहत मध्यस्थ शुल्क भुगतान के लिए क्लाइंट को पेमेंट लिंक उपलब्ध कराएंगे। पोर्टल के जरिये प्राप्त सारी फीस एक विशेष खाते में भेजी जाएगी और फिर वह संबंधित मध्यस्थ के पास जाएगी।
सवाल है कि क्या यह तरीका काम करेगा? इस गड़बड़झाले का बड़ा हिस्सा तो निश्चित रुप से तब नियंत्रित हो सकेगा जब नियमन इकाइयों पर इसका जिम्मा डाला जाएगा। जो बड़ी इकाइयां हैं और जिनकी प्रतिष्ठा है, वे तो इसका पालन करेंगी लेकिन कई पंजीकृत मध्यस्थ और सूचीबद्ध इकाइयां संदिग्ध भी हैं। अगर किसी मध्यस्थ ने फिनइनफ्लुएंसर नियमों का उल्लंघन किया तो किस तरह का जुर्माना उसे रोक पाएगा? दुर्भाग्य से खराब आचरण रोकने का सेबी का अभी तक का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है।
(लेखक मनीलाइफडाटइन के संपादक हैं और मनीलाइफ फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं)