मॉनसून के बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं वे बहुत उत्साहित करने वाली नहीं हैं। भारत के लिए मॉनसून बहुत अहम है क्योंकि उसकी सालाना बारिश में मॉनसूनी बारिश का योगदान 70 फीसदी है। मॉनसूनी बारिश में अगर ज्यादा कमी हुई तो खरीफ की फसल का उत्पादन तो प्रभावित होगा ही, साथ ही रबी की फसल पर भी असर होगा।
खबरों के मुताबिक इस वर्ष आठ साल की सबसे कम बारिश होने वाली है। इन दिनों सूखे का जो सिलसिला चल रहा है उसके चलते अगस्त में बारिश में रिकॉर्ड कमी आई है और यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। जानकारी के मुताबिक अल नीनो प्रभाव मजबूत हो रहा है और माना जा रहा है कि दिसंबर तक उसका प्रभाव जारी रहेगा।
इसके चलते बारिश पर बुरा असर पड़ सकता है और मॉनसून के बाकी समय में बारिश कम होगी। देश के अलग-अलग इलाकों में कम बारिश के कारण जलाशयों में जल स्तर और नदियों के प्रवाह पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। केंद्रीय जल आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 146 जलाशयों में जल स्तर पिछले वर्ष के समान समय की तुलना में केवल 79 फीसदी है। यह 10 वर्ष के औसत से 6 फीसदी कम है।
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कम बारिश भारत को कई तरह से प्रभावित कर सकती है। हालांकि खाद्यान्न उत्पादन पर बारिश का असर हाल के वर्षों में कम हुआ है लेकिन यहां भी दोनों के बीच अहम संबंध है। इसके अलावा उत्पादन पर पड़ने वाला असर भी एक फसल के मौसम तक सीमित नहीं रहेगा। यद्यपि भारतीय मौसम विभाग की ओर से अनुमानों में आधिकारिक संशोधन नहीं किया गया है लेकिन अनुमान से कम खाद्यान्न उत्पादन देश की आर्थिक वृद्धि को भी प्रभावित करेगा।
कृषि क्षेत्र ने महामारी के दौरान और उससे निपटने के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था की बहुत मदद की है। कम खाद्यान्न उत्पादन न केवल समग्र उत्पादन को प्रभावित करेगा बल्कि ग्रामीण इलाकों में आय के कमजोर होने से औद्योगिक वस्तुओं की मांग में भी कमी आएगी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े इस सप्ताह जारी होने हैं लेकिन माना जा रहा है कि वे बेहतर होंगे। परंतु कम बारिश का असर बाद वाली तिमाहियों में देखने को मिल सकता है।
कम उत्पादन के कारण उच्च मुद्रास्फीति शहरी इलाकों में आम परिवारों के बजट को बिगाड़ेगी। ऐसे में लोग मनमर्जी से खर्च करना कम कर देंगे। इसका असर कितना होगा यह आने वाले सप्ताहों में पता चलेगा जब मॉनसून को लेकर हालात जाहिर होंगे और खाद्य उत्पादन पर इसका पूरा प्रभाव स्पष्ट होगा। सरकार अपनी ओर से बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप कर रही है और वह लगातार खाद्य उत्पादों के निर्यात और भंडारण पर रोक लगा रही है ताकि खाद्यान्न की घरेलू कीमतों को बढ़ने से रोका जा सके।
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यह प्रक्रिया पिछले वर्ष गेहूं निर्यात पर रोक के साथ शुरू हुई थी। गेहूं उत्पादन पर तब रोक लगा दी गई थी क्योंकि देश के कई हिस्सों में गर्म हवा के थपेड़ों के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ था। इस वर्ष सरकार ने दालों पर स्टॉक लिमिट लागू कर दी और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लागू कर दिया। अल नीनो को देखते हुए वैश्विक तापमान में वृद्धि होने का अनुमान है और इससे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा।
भारत में इन दिनों मुद्रास्फीति खाद्य कीमतों की वजह से है। इसमें सब्जियों का अधिक योगदान है। जुलाई में मुद्रास्फीति की दर 7.44 फीसदी के साथ 15 महीनों के उच्चतम स्तर पर रही। हालांकि सब्जियों की कीमतों में कमी आ रही है लेकिन अनाज की मुद्रास्फीति दर दो अंकों में है।
अगर उत्पादन में कमी आई तो यह बात मौद्रिक नीति समिति के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। उसने वर्ष के लिए 5.4 फीसदी की मुद्रास्फीति दर का प्रस्ताव रखा है। यह मॉनसून के सामान्य होने के अनुमान पर आधारित है। सब्जियों के कारण बढ़ी मुद्रास्फीति के कम होने की उम्मीद है लेकिन व्यापक खाद्य मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति संबंधी कदम की मांग करती है। नीति निर्माताओं और वित्तीय बाजार दोनों को अपने अनुमानों पर पुनर्विचार करना होगा।