facebookmetapixel
दिल्ली एयरपोर्ट पर लो-विजिबिलिटी अलर्ट, इंडिगो ने उड़ानों को लेकर जारी की चेतावनीFD Rates: दिसंबर में एफडी रेट्स 5% से 8% तक, जानें कौन दे रहा सबसे ज्यादा ब्याजट्रंप प्रशासन की कड़ी जांच के बीच गूगल कर्मचारियों को मिली यात्रा चेतावनीभारत और EU पर अमेरिका की नाराजगी, 2026 तक लटक सकता है ट्रेड डील का मामलाIndiGo यात्रियों को देगा मुआवजा, 26 दिसंबर से शुरू होगा भुगतानटेस्ला के सीईओ Elon Musk की करोड़ों की जीत, डेलावेयर कोर्ट ने बहाल किया 55 बिलियन डॉलर का पैकेजत्योहारी सीजन में दोपहिया वाहनों की बिक्री चमकी, ग्रामीण बाजार ने बढ़ाई रफ्तारGlobalLogic का एआई प्रयोग सफल, 50% पीओसी सीधे उत्पादन मेंसर्ट-इन ने चेताया: iOS और iPadOS में फंसी खतरनाक बग, डेटा और प्राइवेसी जोखिम मेंश्रम कानूनों के पालन में मदद के लिए सरकार लाएगी गाइडबुक

बजट में पीड़ितों पर हो ध्यान

Last Updated- December 12, 2022 | 9:06 AM IST

आमतौर पर वित्त मंत्री को पता होता है कि दरअसल दिक्कत कहां है। राजस्व कम है, घाटा बहुत अधिक बढ़ा हुआ है, मुद्रास्फीति का स्तर वह नहीं है जो होना चाहिए और न ही आर्थिक वृद्धि सही स्थिति में है। मंत्री को यह भी पता होता है कि अर्थव्यवस्था का कौन सा पहिया चरमरा रहा है और इस वर्ष तो चरमराने की आवाज भी कुछ ज्यादा ही तेज है। समस्या यह है कि महामारी के दौर में लाखों लोग अपना सबकुछ गंवा कर गरीबी के दुष्चक्र में दोबारा उलझ चुके हैं और दिल्ली के कोलाहल में उनकी आवाज सुनने वाला भी कोई नहीं है। कहा जा रहा है कि भारत में ऐसे लोगों की तादाद सभी देशों से अधिक है और यह देश में धीमी गति से ही सही गरीबी में आ रही कमी की प्रक्रिया को पलट सकती है। बजट में वृहद अर्थव्यवस्था, क्षेत्र विशेष संबंधी प्रावधान, राजस्व लक्ष्य तथा सुधार संबंधी लक्ष्यों के बीच इस तबके को भुलाया नहीं जाना चाहिए।
ताजातरीन आर्थिक संकेतक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कई कारोबार दोबारा सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं और इसलिए खबरों की सुर्खियां भी सकारात्मक हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और आर्थिक समीक्षा दोनों ने कहा है कि चालू वर्ष की गिरावट के बाद अगले वर्ष दो अंक में आर्थिक वृद्धि होगी। आशा की जानी चाहिए कि वे सही साबित हों। इससे वित्त मंत्री को राजस्व का बेहतर अनुमान लगाने में मदद मिलेगी और वह प्रभावितों पर सबसे अधिक ध्यान दे सकेंगी। लाखों लोग ऐसे हैं जो रोजगार गंवा चुके हैं और दोबारा काम नहीं पा सके। ऐसे लोग भी हैं जो पहले वेतनभोगी थे लेकिन अब असंगठित क्षेत्र में या अंशकालिक तौर पर काम करने को विवश हैं। सबसे अधिक नुकसान महिलाओं को हुआ जो पहले ही श्रम बाजार में कमतर हिस्सेदार थीं। ऐसे खामोशी से आने वाले संकट सबसे अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि नीति निर्माता ध्यान नहीं देते। पिछले दिनों इकनॉमिक टाइम्स में सौभिक चक्रवर्ती और इंडियन एक्सप्रेस में मनीष तिवारी ने लिखा भी है, पंजाब की अर्थव्यवस्था नए कृषि कानूनों के आगमन के बहुत पहले से विविध संकटों से जूझने लगी थी। इन कानूनों ने केवल उत्प्रेरक का काम किया। महामारी के कारण उत्पन्न ऐसे खामोश संकट को हल करना प्राथमिक जरूरत है। अभूतपूर्व कहे जा रहे आगामी बजट को इस नजरिये से देखना होगा कि वह इन समस्याओं को हल करने के लिए क्या कदम उठाती हैं। इस बात से थोड़ी मदद मिल सकती है कि रोजगार की क्षति प्रमुख तौर पर विशिष्ट क्षेत्रों में ही हुई है लेकिन यह नुकसान व्यापक पैमाने पर भी हुआ है।
नि:शुल्क अनाज आपूर्ति, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए बजट में इजाफा और ग्रामीण इलाकों में रोजगारों को नकदी बढ़ाकर कुछ राहत प्रदान की गई है। परंतु लंबी अवधि में काफी कुछ किया जाना है। सबसे अधिक प्रभावित वर्ग को एक और वर्ष तक निरंतर नकद सहायता दी जानी चाहिए ताकि खपत को गति मिले। रोजगार गारंटी योजना में आवंटन बढ़ाने की जरूरत है। नियोक्ताओं को भी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां महामारी ने गहरा आघात किया है। निर्माण जैसे रोजगार बढ़ाने वाले क्षेत्रों में व्यय बढ़ाया जाना चाहिए। उन औद्योगिक क्लस्टर वाले कस्बों के लिए विशेष योजनाएं घोषित की जानी चाहिए जहां से श्रमिकों का पलायन हुआ था। यानी छोटे कारोबारों के लिए नकदी का प्रवाह बढ़ाया जाना चाहिए। इसके लिए राशि बजट से आनी चाहिए क्योंकि शायद अधिकांश धन वापस नहीं आ सके। यह सारा काम तात्कालिक आपदा प्रबंधन के नजरिये से करना होगा, न कि दीर्घावधि की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए। इसका वित्त पोषण कैसे होगा? उन एक फीसदी लोगों की बात करें जो अपना कर ईमानदारी से चुकाते हैं, उनके लिए बताते चलें कि भारत में कोई कम कर नहीं लगता। इसके बावजूद धन वहां से जुटाना होगा जहां वह है: जिन लोगों को शेयर बाजार की तेजी से लाभ मिला है, या उन लोगों से जिनके बारे में माना जाता है कि उनकी आय व्यय से काफी अधिक है। अप्रत्याशित समय में ऐसे उपायों से ही कुछ राहत प्रदान की जा सकती है। आय या संपत्ति पर कर लगाया जा सकता है या फिर कंपनियों को बिक्री की तुलना में एक खास सीमा से अधिक मुनाफा होने पर उन पर अधिभार लगाया जा सकता है। ऐसे उपाय पसंद नहीं किए जाएंगे लेकिन यदि इन्हें कड़ाई से एकबारगी लागू किया जाए तो प्रभाव को सीमित किया जा सकता है और इस राशि का इस्तेमाल भी कोविड-19 से हुए नुकसान से निपटने में किया जाए।

First Published - January 29, 2021 | 11:30 PM IST

संबंधित पोस्ट