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बराबरी का शुल्क और भारत के पास विकल्प

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की व्यापार नीतियों से जो अप्रत्याशित चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं, उनसे निपटने के लिए भारत को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौते से परे सोचना होगा।

Last Updated- March 03, 2025 | 10:12 PM IST
Modi Trump

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता संभालते ही जो सबसे अहम मगर उथल-पुथल मचाने वाली घोषणाएं की हैं, उनमें एक है व्यापारिक साझेदारों पर ‘बराबरी का शुल्क’। व्हाइट हाउस से 13 फरवरी 2025 को जारी विज्ञप्ति में व्यापक ब्योरा देते हुए बताया गया है कि अमेरिका पांच कसौटियों का इस्तेमाल कर देखेगा कि उसके व्यापार साझेदार उसके साथ बराबरी का बरताव कर रहे हैं या नहीं। इसमें अमेरिकी उत्पादों पर लगने वाले शुल्क के साथ व्यापार की राह में दूसरी बाधाएं, सब्सिडी और/अथवा कोई उपाय और साझेदार देश में विनिमय दरों, करों अथवा नियामकीय जरूरतों से जुड़ी वे नीतियां शामिल हैं, जो अमेरिकी प्रशासन की नजर में भेदभाव करने वाली हैं या अमेरिकी कंपनियों, कर्मचारियों और/अथवा उपभोक्ताओं को बाजार में बिल्कुल नहीं आने देतीं या कम आने देती हैं।

अमेरिका अपने हरेक व्यापार साझेदार के साथ लगभग 13,000 वस्तुओं का व्यापार करता है और इनमें से हर किसी को ऊपर बताई गई कसौटियों पर कसना लगभग असंभव लगता है। इसलिए इस बात की अटकलें जमकर लगाई जा रही हैं कि शुल्क का मूल्यांकन किसी खास उत्पाद के लिए होगा या समूचे उद्योग अथवा क्षेत्र का औसत शुल्क देखा जाएगा। सवाल यह भी है कि अमेरिका एकतरफा कार्रवाई करेगा या वह भी परिधान और वस्त्र जैसे उन क्षेत्रों अथवा उद्योगों में शुल्क घटाएगा, जिनमें वह दूसरों से ज्यादा शुल्क लगाता है। चूंकि अभी तक इन सवालों और इनसे जुड़े दूसरे कई सवालों का कोई जवाब नहीं आया है, इसलिए अभी इंतजार करके यह देखना शायद सबसे सही होगा कि अप्रैल और उसके बाद बराबरी का शुल्क किस तरह लगाया जाता है। हां, इस बीच व्यापार के दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।
फिर भारत के पास विकल्प क्या हैं? भारत ने अभी तक एहतियातन पहले ही कदम उठाने का तरीका अपनाया है। यह मेक्सिको या कनाडा के रुख से उलट है। दोनों देशों ने उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगने के बाद वादा किया कि अमेरिका में अवैध घुसपैठ और फेंटनाइल ओपिऑइड की तस्करी पर रोक लगाने के लिए वे अपनी-अपनी सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ाएंगे। एक तरह से यह सीमा सुरक्षा बढ़ाने की उनकी नीतियों का विस्तार ही था।

उनसे उलट भारत ने अमेरिकी आयात पर लगाए जा रहे शुल्क की ट्रंप द्वारा की गई आलोचना का जवाब दिया है। फरवरी 2025 में पेश बजट में 1,600 सीसी इंज वाली मोटरसाइकल समेत कुछ उत्पाद श्रेणियों पर शुल्क कम कर दिए गए। इसके कुछ दिन बाद ही बर्बेन व्हिस्की पर आयात शुल्क घटा दिया गया, जो जाहिर तौर पर अमेरिका को खुश करने के लिए किया गया। इसके बाद भी ट्रंप भारत की शुल्क दरों पर टिप्पणियां करते रहे और बराबरी के शुल्क के मामले में भारत के साथ किसी तरह की रियायत बरतने का संकेत भी उन्होंने नहीं दिया। ध्यान रहे कि भारत उन शीर्ष 15 व्यापार साझेदारों में है, जिनके साथ अमेरिका निर्यात से ज्यादा आयात करता है यानी व्यापार घाटे में है।

भारत अभी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते की तैयारी कर रहा है मगर ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी व्यापार नीति की चुनौतियों से निपटने के लिए शायद इतना काफी नहीं होगा। मेक्सिको और कनाडा पर शुल्क लगाकर ट्रंप ने साबित कर दिया है कि वह अपने पहले कार्यकाल में हुए अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते को ताक पर रखने के लिए तैयार हैं। ऐसे में भारत को अपने निर्यात बाजारों तथा उत्पादों में विविधता लाकर व्यापार के अवसर लपकने होंगे। वह दूसरे देशों द्वारा हाल में उठाए गए व्यापारिक कदमों से सबक ले सकता है। उदाहरण के लिए व्यापार में विविधता लाने की नीति के तहत कुछ देशों ने मुक्त व्यापार समझौतों के लिए अपनी बातचीत तेज कर दी है।

मेक्सिको और यूरोपीय संघ ने हाल ही में अपने पिछले व्यापार समझौते को बेहतर बनाया है। इसके तहत दोनों ने कर में काफी कटौती की है और पर्यावरण के अनुकूल तौर-तरीकों तथा हरित वृद्धि समेत कई उच्च मानक वाले इंतजाम किए गए हैं। इसी तरह यूरोपीय संघ और मर्कोसुर (उरुग्वे, पराग्वे, अर्जेंटीना, ब्राजील) के बीच काफी समय से अटके व्यापार समझौते को दिसंबर 2024 में अंजाम तक पहुंचा दिया गया। ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने की संभावना के बीच इस समझौते पर बातचीत तेज की गई थी। समझौते में केवल शुल्क की बात नहीं है बल्कि पर्यावरण मानक और दुर्लभ खनिज भी शामिल किए गए हैं।

यूनाइटेड किंगडम ने भी यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक सहयोग समझौते की समीक्षा शुरू कर दी है। इससे पहले 2024 में उसने व्यापक और प्रगतिशील प्रशांत पार साझेदारी (सीपीटीपीपी) की सदस्यता हासिल की। आसियान देशों की बात करें तो क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) और सीपीटीपीपी जैसे बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते उन्हें व्यापार की पैठ और भी बढ़ाने के मौके देते हैं। भारत के उलट कुछ आसियान देशों को अभी अमेरिका में जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज के जरिये रियायत के साथ बाजार में जाने का मौका मिल रहा है।
भारत ने भी यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार वार्ता बहाल करने की घोषणा की है मगर बातचीत को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अभी और काम करना होगा। शुल्क वास्तव में कम करने हैं तो उनमें अधिक व्यवस्थित तरीके से कटौती करनी होगी। फरवरी में आए बजट में जिन कमोडिटी के लिए मूल सीमा शुल्क कम किया गया, उनमें से ज्यादातर पर अलग से उपकर लगाया गया है, जिस वजह से शुल्क की दर पहले जितनी ही रही। अमेरिका से बराबरी का शुल्क लगने का खतरा देखते हुए भारत के लिए अपनी औसत शुल्क दरें चरणबद्ध तरीके से घटाने और एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के बराबर लाने पर विचार करने का यह अच्छा मौका है।

इस बार के बजट में आदर्श द्विपक्षीय निवेश संधि की समीक्षा करने की बात कही गई है। यह काम जल्दी कर लेने से भारत को अधिक गहन व्यापार समझौते करने और निर्यातोन्मुखी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुटाने में मदद मिलेगी। पर्यावरण से जुड़े मसलों पर भी भारत को बातचीत के लिए उचित रुख अपनाना होगा क्योंकि आजकल व्यापार जलवायु परिवर्तन और कामगारों की स्थितियों तथा अधिकारों पर राजनीतिक आलोचना जैसी तमाम वैश्विक चुनौतियों के बीच होता है। कृषि एवं वनोपज निर्यात की अधिक हिस्सेदारी वाली लैटिन अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं ने यूरोपीय संघ और मरकोसुर मुक्त व्यापार संधि में इन सभी मसलों पर सफलतापूर्वक सौदा किया है, जिससे भारत को काम के सबक मिल सकते हैं। साथ ही भारत को सीपीटीपीपी में भागीदारी की शुरुआत भी करनी चाहिए क्योंकि उसके प्रावधान आधुनिक व्यापार के लिहाज से बनाए गए हैं और उसके सदस्यों की बढ़ती संख्या बता रही है कि जल्द ही वह नियमों पर आधारित सबसे बड़ा व्यापार समूह बन सकता है।

बहुपक्षीय मोर्चे पर भी भारत का एक नजरिया होना चाहिए। हमें नियम आधारित वैकल्पिक व्यापार व्यवस्था तैयार करने के सामूहिक प्रयासों में अधिक योगदान करना होगा। यह जरूरी है क्योंकि विश्व व्यापार में निष्पक्षता का सिद्धांत बड़ी संस्था के जरिये ही निभाया जा सकता है। भारत अब तक प्लूरीलेटरल (जिनके सदस्यों की संख्या दो से कुछ ही ज्यादा होती है) समझौतों या समूहों से दूर रहा है। इस पर उसे पुनर्विचार करना पड़ सकता है और शायद अब देशों को कुछ पैमाने तय कर प्लूरीलेटरल की परिभाषा नए सिरे से गढ़नी चाहिए। उसमें शामिल होना या न होना किसी भी देश की मर्जी पर छोड़ जा सकता है। इसलिए भारत को रणनीतिक व्यापार नीति बनानी चाहिए, जो बहुमुखी हो और आज के विश्व व्यापार में आ रही चुनौतियों से निपट सके।

(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)

First Published - March 3, 2025 | 10:06 PM IST

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