द पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन की ताजा वार्षिक एकीकृत रैंकिंग और रेटिंग रिपोर्ट वित्त वर्ष 2022 में बिजली क्षेत्र की अपेक्षाकृत उजली तस्वीर पेश करती है लेकिन कर्ज की पुरानी समस्या अभी भी परिदृश्य को अंधकारमय बनाती है। श्रृंखला की इस 11वीं रिपोर्ट में 71 बिजली वितरण कंपनियों को शामिल किया गया है।
सकारात्मक पहलू को देखें तो वित्त वर्ष 2022 में प्रति यूनिट बिजली की आपूर्ति की औसत लागत तथा वित्त वर्ष 2020 में प्रति यूनिट बिजली से प्राप्त 79 पैसे के राजस्व के बीच का अंतर केवल 40 पैसे तक सीमित करने में कामयाबी मिली।
वहीं समेकित तकनीकी तथा वाणिज्यिक क्षति भी वित्त वर्ष 2021 के 21.5 फीसदी से कम होकर वित्त वर्ष 2022 में 16.5 फीसदी रह गई। इससे पता चलता है कि बिलिंग और संग्रह किफायत में भी काफी सुधार हुआ है। यह देश के बिजली क्षेत्र के लिए सकारात्मक बात है।
हालांकि यह आंकड़ा बेहतर है लेकिन फिर भी यह ताजा वितरण क्षेत्र की नई सुधरी हुई योजना के तहत व्यक्ति 2024-25 के 12-15 फीसदी के लक्ष्य से काफी दूर है। इस योजना के तहत वितरण कंपनियों के परिचालन और वित्तीय प्रदर्शन को केंद्र समर्थित योजनाओं के फंड वितरण से जोड़ दिया गया है।
इसके साथ ही बिजली वितरण कंपनियों का कर पूर्व कुल नुकसान वित्त वर्ष 2021 के 50,281 करोड़ रुपये से कम होकर वित्त वर्ष 2022 में 28,700 करोड़ रुपये रह गया। परंतु ऐसा मुख्य रूप से राज्यों द्वारा उच्च सब्सिडी चुकाने के कारण तथा इस बात के चलते हुआ कि सरकार ने वित्त वर्ष 2020-22 के दरमियान कर्ज को इक्विटी में बदलकर बिजली वितरण कंपनियों की ऋण देनदारी को कम किया।
ये बातें एक ऐसे क्षेत्र में कुछ सुधार की झलक देते हैं जो राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से लंबे समय से परिचालन संबंधी दिक्कतों से जूझ रहा है। वे दिक्कतें काफी हद तक अपनी जगह पर बरकरार हैं। यह बात इस तथ्य से भी जाहिर होती है कि नियामकीय परिसंपत्तियां जो खरीद लागत और बिजली की बिक्री से उत्पन्न राजस्व के बीच के अंतर को दिखाती हैं वे वित्त वर्ष 2020-22 के बीच 1.6 लाख करोड़ रुपये पर स्थिर है।
हालांकि इस परिदृश्य में धीरे-धीरे परिवर्तन आता नजर आ रहा है: रिपोर्ट में कहा गया है कि 71 वितरण कंपनियों में से 65 ने वित्त वर्ष 23 के लिए संशोधित शुल्क पेश किया है। वित्त वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 58 था। आगे की बात करें तो कर्ज का स्तर और घटता निवेश अभी भी प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। जबकि यह वह मौसम है जब बिजली की मांग बढ़ती है। कर्ज का स्तर 5.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 6.2 लाख करोड़ रुपये हो चुका है।
हालांकि रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया कि वित्त वर्ष 2020-22 के दौरान कर्ज के बढ़ने की गति काफी धीमी हुई है और डेट सर्विस कवरेज अनुपात जो चालू कर्ज की अदायगी के लिए उपलब्ध नकदी के बारे में बताता है, वह सकारात्मक हो चुका है। तथ्य यह है कि बिजली वितरण कंपनियों की वर्तमान देनदारियां उनकी समग्र चालू संपत्तियों से अधिक हैं और उनकी वर्तमान नकदीकृत परिसंपत्तियों के लगभग दोगुनी हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र का नकदी अंतराल 3.03 लाख करोड़ रुपये है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ कर्जदारों की देनदारी को गैर नकदीकृत संपत्ति से कवर किया जा सकता है लेकिन अन्य को बाहरी सहयोग की आवश्यकता होगी या फिर संपत्तियों को नकदीकृत करना होगा।
अतिरिक्त पूंजीगत व्यय में गिरावट आई और वह 59,000 करोड़ रुपये से घटकर 48,000 करोड़ रुपये तक रह गया जबकि अतिरिक्त कार्यशील पूंजी आवश्यकता वित्त वर्ष 2021 के 55,000 करोड़ रुपये से घटकर वित्त वर्ष 2022 में 19,000 करोड़ रुपये रह गई।
इससे पता चलता है कि बुनियादी परिचालन पर कम व्यय किया जा रहा है जबकि जरूरत इस बात की है कि बिजली की मांग से तालमेल बिठाए रखा जाए जो दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती है।