दक्षिण भारत के राज्यों के दो मुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश के एन चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के एम के स्टालिन ने अपने-अपने राज्य के लोगों से आग्रह किया है कि वे और बच्चे पैदा करें। नायडू ने जापान, चीन और यूरोप में उम्रदराज होती आबादी के कारण सामने आ रही दिक्कतों के बारे में बताया।
उन्होंने अपने मंत्रिमंडल पर दबाव डाला कि वह स्थानीय निकायों के लिए चुनाव में दो बच्चों की सीमा को समाप्त करे। इसके बाद स्टालिन ने यह सुझाव दिया कि उनके राज्य के लोगों को 16-16 बच्चे पैदा करने चाहिए। अन्य मुख्यमंत्री भी देरसबेर उनके साथ आएंगे। कुल मिलाकर देखें तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि राजनीतिक रुझानों में जमीनी हकीकत नजर आ रही है।
जैसा कि नायडू ने संकेत किया, दक्षिण भारत के राज्यों में औसत प्रजनन दर पहले ही केवल 1.6 रह गई है और इसमें और गिरावट आ सकती है। इससे देश की आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसे जनांकिकीय जाल में फंस जाएगा जिसमें अभी रूस और कोरिया जैसे देश फंसे हैं।
बहरहाल, यह बात भी ध्यान देने लायक है कि दुनिया भर में इसे लेकर कुछ ही नीतियां कामयाब रही हैं। नायडू ने संकेत दिया है कि और बच्चे पैदा करने संबंधी नीतियों को विचारार्थ पेश किया जाएगा। हालांकि दुनिया के कई देशों ने ऐसे प्रयास किए हैं लेकिन इनका प्रजनन दर पर टिकाऊ असर नहीं हुआ है। इनमें से कई रुझान ऐसे उपायों से संचालित हैं जो महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाते हैं। इनमें शिक्षा और बाद में विवाह शामिल हैं।
बिना सामाजिक रूप से पिछड़ी नीतियों को अपनाए इन कारकों को उलट पाना संभव नहीं है। ऐसे में यह समझना आवश्यक है कि दोनों मुख्यमंत्रियों द्वारा जताई गई चिंता की वजह क्या है और क्या वे किसी अन्य विकल्प पर विचार कर सकते हैं?
एक बड़ी चिंता राजनीतिक है। इसे स्पष्ट रूप से सामने भी रखा गया है। देश में संसदीय क्षेत्रों का नया परिसीमन लंबित है और इसे आबादी के ताजा आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा। अब तक देश का राजनीतिक संतुलन 1971 की जनगणना पर आधारित है जब उत्तर भारत और देश के बाकी हिस्सों के बीच अपेक्षाकृत अधिक संतुलन था। परंतु तब से उत्तरी भारत के राज्यों का जनांकिकीय बदलाव धीमी गति से हुआ है जबकि देश के बाकी हिस्सों में तेजी से। अब राजनीतिक मानचित्र की स्थिति कुछ ऐसी है कि जिन राज्यों ने एक विवादित मुद्दे पर बेहतर प्रदर्शन किया है उन्हें स्थायी नुकसान हो रहा है।
इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि पूरा देश अब अपनी कुल प्रजनन क्षमता में 2.1 की प्रतिस्थापन दर पर पहुंच रहा है। परंतु यह बात क्षेत्रीय अंतरों को छिपा लेती है जबकि दक्षिण के राज्य उसी को लेकर चिंतित हैं। उनकी चिंता पश्चिम बंगाल,कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में साझा की जाएगी क्योंकि इन सभी राज्यों की प्रजनन दर आंध्र प्रदेश से भी कम है।
परंतु समग्र स्तर पर भी देखें तो यह गिरावट गलत समय पर आ रही है। इस बात की पूरी संभावना है कि भारत अमीर होने के पहले ही गरीब हो जाएगा। कोरिया की प्रजनन दर भले ही अब बहुत कम हो लेकिन जब उसकी आबादी अधिक थी तो उसने उसका इस्तेमाल तेज गति से वृद्धि और विकास हासिल करने में किया। बहरहाल संभावना यही है कि भारत शायद यह अवसर गंवा बैठे। जनांकिकीय दबावों का केवल एक ही हल तैयार किया गया है और वह है इक्कीसवीं सदी में अमेरिकी प्रभाव और उसके दबदबे का कायम रहना।
अमेरिका पराभव से बच जाएगा और आगामी सदी में उसकी आबादी में इजाफा भी हो सकता है। ज्यादातर अनुमान इसी तरफ संकेत कर रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि वहां निरंतर प्रवासियों का आना जारी है। सवाल यह है कि क्या दक्षिण भारत के नेता अपने प्रदेश की जनांकिकीय चिंता का एक ऐसा हल स्वीकार करेंगे जो उत्तर भारत से लोगों के दक्षिण भारत आने के रूप में तैयार किया गया हो।