दस वर्ष पहले महात्मा गांधी की जयंती पर शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान को कुछ उल्लेखनीय सफलताएं हासिल हुई हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार देश के 82.5 फीसदी परिवारों की पहुंच अब शौचालय तक है जबकि 2004-05 तक यह आंकड़ा केवल 45 फीसदी था। अब 70 फीसदी परिवारों में शौचालय की सुविधा है जबकि 2004-05 में केवल 29 फीसदी परिवारों में शौचालय थे।
खुले में शौच में भारी कमी आई है और इसके साथ ही बीमारियों का खतरा भी कम हुआ है। नवजात शिशुओं की मौत के मामले भी कम हुए हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में इसे उल्लेखनीय प्रगति माना जाना चाहिए। परंतु 2019 में देश को ‘खुले में शौचमुक्त’ घोषित करके जरूर सरकार ने समय से पहले जश्न मना लिया। आंकड़ों पर करीबी नजर डालें तो पता चलता है कि खुले में शौच से लड़ाई में अभी निर्णायक जीत हासिल होनी बाकी है।
इस मामले में प्रमुख चुनौती अभी भी ग्रामीण भारत में है जहां खुले में शौच की समस्या आज भी बड़ी है। शौचालयों तक पहुंच में सुधार हुआ है और 2019-20 तक यह 90 फीसदी पहुंच चुकी थी लेकिन इनके इस्तेमाल में कमी आई है।
विश्व बैंक के मुताबिक 2022 में देश की 11 फीसदी आबादी खुले में शौच कर रही थी। यह आंकड़ा पड़ोसी देशों अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भी खराब है जहां क्रमश: 8.8 और 6.8 फीसदी आबादी खुले में शौच करती पाई गई।
निवेश और जागरूकता कार्यक्रमों में कमी, व्यय में कटौती और कार्यक्रम के क्रियान्वयन और उसे जारी रखने में सीमित संस्थागत प्रणाली की कमी के कारण भी स्थिति खराब हुई। ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में इस अभियान के लिए बजट आवंटन में 2018-19 से ही निरंतर कमी आ रही है। जबकि इस बीच जल जीवन मिशन जैसे अन्य कार्यक्रमों में आवंटन बढ़ा है।
शहरी कार्यक्रम की बात करें तो उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 24 में बजट अनुमान 5,000 करोड़ रुपये कर दिया गया जो वित्त वर्ष 23 के 1,926 करोड़ रुपये के वास्तविक व्यय से भी अधिक था लेकिन बाद में इसे आधा कम करके 2,550 करोड़ रुपये कर दिया गया। ग्रामीण कार्यक्रम की बात करें तो वित्त वर्ष 24 और वित्त वर्ष 25 में आवंटन अपरिवर्तित है।
आवंटन में यह कमी कुछ हद तक इस आधार पर सही ठहराई जा सकती है कि कार्यक्रम के गति पकड़ने के बाद अब हर वर्ष कम शौचालयों की आवश्यकता है। परंतु अभी भी रखरखाव और दूरदराज तक अधोसंरचना विकास मसलन ठोस कचरा प्रबंधन और कीचड़ हटाने आदि के लिए बजट की जरूरत है।
वास्तव में शौचालयों के ठीक से काम नहीं करने, पानी की अनुपलब्धता और शौचालयों के संपूर्ण ढांचे का निर्माण न होने को लोगों ने शौचालयों का इस्तेमाल करना बंद करने की प्रमुख वजहों के रूप में प्रस्तुत किया है।
लोगों ने खुले में शौच को व्यक्तिगत पसंद का मामला भी बताया है जिससे संकेत मिलता है कि अभी भी लोगों को इसे लेकर शिक्षित करने तथा जागरूक बनाने के मामले में शुरुआती उत्साह को बरकरार रखने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। इस उत्साह ने आरंभ में प्रतिभागियों और नौकरशाही दोनों को काफी उत्साहित किया था।
स्वच्छ भारत कार्यक्रम से हासिल लाभ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हें फंड की कमी या संगठनात्मक गतिहीनता के कारण गंवाना दुखद होगा। अगर प्रगतिशील ढंग से विकेंद्रीकरण किया जाए तो अधिक टिकाऊ लाभ हासिल हो सकते हैं।
इस दौरान केंद्र सरकार जमीनी स्तर पर संस्थागत क्षमता निर्माण की दिशा में काम कर सकती है। वह राज्य सरकारों और शासन के तीसरे स्तर के साथ सहयोग कर सकती है। अगर मानव और आर्थिक विकास के मोर्चे पर लाभप्रद ऐसी योजना केवल केंद्र सरकार की परियोजना बनकर रह जाती है तो यह भी अच्छी बात नहीं होगी।