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संपादकीय: फेडरल रिजर्व की भविष्य की राह

ट्रंप की जीत के बाद जब शेयर कीमतें बढ़ीं, बॉन्ड दबाव में थे। इससे पता चलता है कि उनकी नीतियां बाजार को किस तरह प्रभावित करेंगी।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 10, 2024 | 9:20 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) की निर्णायक जीत ने वहां के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की भविष्य की राह तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसके असर को लेकर अनिश्चितता बढ़ा दी है। उम्मीद के मुताबिक ही फेड की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) ने गत सप्ताह फेडरल फंड की दरों में 25 आधार अंकों की कमी करने का निर्णय लिया।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने सितंबर में 50 आधार अंकों की कटौती के साथ दरें कम करनी शुरू कर दी थीं। वर्ष 2022 में तकरीबन दो अंकों में पहुंच गई मुद्रास्फीति की दर से निपटने के क्रम में फेड ने नीतिगत ब्याज दर को दशकों के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया था।

हालांकि हाल के महीनों में मुद्रास्फीति की दर में काफी कमी आई है लेकिन वह मध्यम अवधि के दो फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। बहरहाल, फेड ने इस उम्मीद में नीतिगत ब्याज दरों में कमी करनी शुरू कर दी कि मुद्रास्फीति बहुत जल्दी लक्ष्य के साथ सुसंगत हो जाएगी।

एफओएमसी की सितंबर की बैठक के बाद जो अनुमान जारी किए गए उनके मुताबिक केंद्रीय बैंक से उम्मीद की गई थी कि वह दिसंबर की बैठक में भी नीतिगत दरों में कटौती करेगा और उसके बाद 2025 में भी एक फीसदी की कटौती की जाएगी। दरों में किस हद तक कटौती की जाएगी यह हमेशा बहस का विषय रहता है।

कुछ अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि महामारी के बाद तटस्थ दर में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है और ट्रंप की जीत के बाद नए सिरे से संदेह उत्पन्न हुए हैं। कुछ बाजार प्रतिभागियों का मानना है कि फेड शायद दिसंबर में दरों में कटौती न करे।

यह बात ध्यान देने लायक है कि जहां फेड ने मध्य सितंबर के बाद से नीतिगत ब्याज दरों में 75 आधार अंकों की कमी की है, वहीं 10 वर्ष के अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल इसी अवधि में 70 आधार अंक तक बढ़ा है। बाजार आम तौर पर इस तरह व्यवहार नहीं करते हैं। ट्रंप की जीत के बाद जब शेयर कीमतें बढ़ीं, बॉन्ड दबाव में थे। इससे पता चलता है कि उनकी नीतियां बाजार को किस तरह प्रभावित करेंगी।

अन्य चीजों के अलावा उनका इरादा टैरिफ में तीव्र इजाफा करने का भी है, खासतौर पर चीन से आने वाली वस्तुओं पर। वह करों में भी कमी करेंगे। उच्च टैरिफ और कर कटौती से अमेरिकी कंपनियों को लाभ होगा लेकिन इससे मुद्रास्फीति और बजट घाटा दोनों बढ़ेंगे। इससे पता चलता है कि डेट और इक्विटी बाजार की स्थितियां कितनी अलग हैं।

यह भी देखना होगा कि फेड राजकोषीय नीति और मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को प्रभावित करने वाले कारकों में होने वाले बदलावों के साथ अपने आप को किस तरह बदलता है। गत सप्ताह की बैठक के बाद फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने दलील दी थी कि राजकोषीय नीति के बदलावों में समय लगता है और उन्हें कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत होती है। इससे संकेत मिलता है कि फेड शायद तत्काल संभावित बदलावों को ध्यान में रखकर कदम न उठाए।

हालांकि फेड शायद अभी प्रतीक्षा करना चाहे लेकिन वित्तीय बाजारों ने समायोजन आरंभ कर दिया है। इसका असर ऋण बाजार में नजर आ रहा है। चाहे जो हो यह कहना उचित होगा कि दीर्घावधि की वांछित दर अनुमानों से अधिक होगी।

अमेरिकी बजट घाटा भी बढ़ा है। कांग्रेस बजट कार्यालय के एक अनुमान के मुताबिक अगले 30 सालों में यह घाटा सकल घरेलू उत्पाद के औसतन 6.7 फीसदी तक रहेगा। यह विगत 50 वर्ष के औसत से तीन फीसदी अधिक है। इसमें और इजाफा होने से वैश्विक वित्तीय हालात मुश्किल होंगे।

उच्च मुद्रास्फीति और अपेक्षाकृत उच्च नीतिगत दरों के साथ मुद्रा की लागत बढ़ेगी। चूंकि अमेरिकी ट्रेजरी को दुनिया का सबसे सुरक्षित वित्तीय उपाय माना जाता है इसलिए दुनिया भर का धन अमेरिका आएगा। इससे डॉलर मजबूत होगा। इससे भारत समेत शेष विश्व में मौद्रिक अस्थिरता आएगी।

फिलहाल जो हालात हैं उनके मुताबिक तो भारत अल्पावधि की अस्थिरता से निपट सकता है लेकिन अमेरिका और वैश्विक वित्तीय बाजारों में ढांचागत बदलावों के कारण हमें भी नीतिगत समायोजन करना पड़ सकता है। नीति निर्माताओं को इसके लिए सचेत रहना होगा।

First Published : November 10, 2024 | 9:20 PM IST