संपादकीय

Editorial: सरकार को IBC में उभरते हुए अंतरालों को दूर कर अविलंब सुधार करना होगा

यह 2 मई को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले के संदर्भ में है जिसमें उसने BPSL समाधान योजना को अवैध घोषित करते हुए उसका नकदीकरण करने का आदेश दिया था।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 04, 2025 | 10:15 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय के एक पीठ ने पिछले सप्ताह कहा, ‘प्रथम दृष्टया, हमारा मत है कि विवादित निर्णय में उस विधिक स्थिति पर सही ढंग से विचार नहीं किया गया है, जिसे अनेक फैसलों द्वारा स्थापित किया गया है।’ इस पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे। यह 2 मई को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले के संदर्भ में है जिसमें उसने भूषण पावर ऐंड स्टील लिमिटेड (बीपीएसएल) की समाधान योजना को अवैध घोषित करते हुए उसका नकदीकरण करने का आदेश दिया था।

 ऐसी घटनाएं सर्वोच्च न्यायालय में अक्सर नहीं होती हैं लेकिन इस असाधारण परिस्थिति में ऐसे ही असाधारण कदमों की जरूरत है। 2 मई के निर्णय ने काफी असहजता पैदा की है। यह असहजता न केवल प्रत्यक्ष अंशधारकों में है बल्कि नीतिगत हलकों में भी इसे महसूस किया जा रहा है। अगर राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट यानी एनसीएलटी द्वारा मंजूर समाधान योजना को कुछ साल के बाद अवैध ठहराया जा सकता है और कॉरपोरेट देनदार को नकदीकरण करने को कहा जा सकता है तो यह ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता यानी आईबीसी की बुनियाद को प्रभावित करने वाला होगा। अर्थव्यवस्था को भी इसकी असाधारण रूप से ऊंची कीमत चुकानी होगी।

अभी इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं आया है लेकिन अंशधारकों को इस बात से राहत मिलनी चाहिए कि न्यायमूर्ति गवई ने इस मामले के संदर्भ में जमीनी हकीकतों को समझा और इस तथ्य का भी जिक्र किया कि अधिग्रहण करने वाली कंपनी जेएसडब्ल्यू स्टील करीब 20,000 करोड़ रुपये का निवेश कर चुकी है। इतना ही नहीं हजारों नौकरियां भी दांव पर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऋणदाता समूह की वाणिज्यिक समझदारी में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जबकि एनसीएलटी और राष्ट्रीय कंपनी लॉ अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) ने इसे बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप और 2 मई के निर्णय की समीक्षा सकारात्मक बातें हैं लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण होगा कि इस मामले को जल्द से जल्द निपटाया जा सके। निर्णय में कोई भी देरी कंपनी में निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करेगी और परिसंपत्ति मूल्यांकन प्रभावित हो सकता है। ध्यान रहे दिवालिया प्रक्रिया सबसे अधिक इसी से बचने की कोशिश करती है।

अब जबकि यह मामला न्यायालय में सुनवाई के लिए प्रस्तुत है, सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह पिछले निर्णय की अनदेखी नहीं करे। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां सरकार को ध्यान देने और दिवालिया प्रक्रिया को मजबूत बनाने की जरूरत है। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि समीक्षा के अधीन निर्णय हर स्तर पर प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। सरकार को इसका सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए और हालात दोहराए नहीं जाएं इसके लिए कमियों को दूर करना होगा। आईबीसी का क्रियान्वयन हाल के दशकों के सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जाता है। सरकार को इसे मजबूत करने के लिए हरदम तैयार रहना चाहिए। इसके अलावा एनसीएलटी और एनसीएलएटी की क्षमता के मसले को भी जल्द से जल्द हल करना जरूरी है। यह बात ध्यान देने लायक है कि एनसीएलटी का गठन कंपनी अधिनियम के प्रशासन के लिए किया गया था और उसे यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह दिवालिया मामलों को देखे। लेकिन इस दौरान उसकी क्षमता में कोई वृद्धि नहीं की गई।

जैसा कि इस समाचार पत्र में भी प्रकाशित किया गया था, संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति ने हाल ही में ऋणशोधन समाधान की गति बेहतर बनाने के लिए सिर्फ इसको समर्पित एनसीएलटी और एनसीएलएटी की स्थापना की संभावना पर विचार किया। ऐसी सभी संभावनाओं पर विचार होना चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण है कि निर्णय लेने वाले प्राधिकार के पास वांछित भूमिका निभाने की क्षमता भी हो। अभी जो हालात हैं, उनमें समाधान की प्रक्रिया में बहुत समय लग रहा है। भारतीय ऋणशोधन एवं दिवालिया बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि करीब 1,200 मामले जिनमें समाधान योजना सामने आई, उनमें औसतन 597 दिन का समय लगा है। नकदीकरण या परिसमापन के रूप में समाप्त होने वाले मामलों में भी 500 दिनों से अधिक का समय लगा। इस समय को कम करने की आवश्यकता है क्योंकि देरी से मूल्य कम हो सकता है। आखिर में यह महत्त्वपूर्ण है कि प्रक्रिया का अंत निश्चित किया जाए। हर बार जब कोई मामला सर्वोच्च न्यायालय जाता है तो इससे देरी बढ़ती है और प्रक्रिया बाधित होती है।

First Published : August 4, 2025 | 10:03 PM IST