बीते कुछ वर्षों में मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर हस्ताक्षर करने की समझदारी को लेकर कई तरह की शंका प्रकट की गई हैं। अब खबर है कि वाणिज्य विभाग एफटीए पर वार्ताओं को लेकर ‘नए दिशानिर्देर्शों’ पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मांगेगा। ऐसी बातचीत के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर यानी एसओपी) को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ एक बैठक के बाद यह यह बात सामने आई है।
माना जा सकता है कि यह इस नजरिये को दिखाता है कि पिछले कई हस्ताक्षरित एफटीए में भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है क्योंकि साझेदार देशों से होने वाले निर्यात में कई बार भारत के निर्यात से अधिक तेजी से वृद्धि हुई है। एफटीए की प्रक्रिया की समीक्षा स्वागतयोग्य है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इन चर्चाओं के बाद तैयार किए जाने वाले एसओपी भारत को और अधिक संरक्षणवादी नहीं बनाएंगे।
बीते कुछ वर्षों के दौरान भारत ने कुछ रणनीतिक महत्त्व के साझेदारों मसलन यूनाइटेड किंगडम (यूके) और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ चर्चा को आगे बढ़ाया है जबकि संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक व्यापक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं और ऑस्ट्रेलिया के साथ अर्ली हार्वेस्ट डील हुई है। ऐसी डील एफटीए के पहले की जाती हैं जिनके तहत दो देशों के बीच शुल्क उदार बनाने के लिए उत्पादों की पहचान की जाती है।
हालांकि इस अग्रगामी कदम के बीच कुछ हिचकिचाहटों को छिपाया गया। उदाहरण के लिए, यह माना गया था कि कुछ वर्ष पहले हुआ भारत-ऑस्ट्रेलिया समझौता, आरंभिक से एक व्यापक समझौते में बदल जाएगा लेकिन दोनों साझेदारों के बीच इसे आगे ले जाने के लिए कोई खास उत्साह नहीं नजर आता।
यूके और ईयू के साथ भी उम्मीद के मुताबिक प्रगति नहीं हुई है। अगर नए एसओपी इस दिक्कत को दूर कर सके तो उन्हें स्वागतयोग्य सुधार माना जा सकता है। कुछ मामलों में धीमी प्रगति की एक वजह पिछली चर्चाओं की संस्थागत स्मृति की कमी भी है। ईयू के साथ ऐसा खासतौर पर हो सकता है क्योंकि उसके साथ हमारी प्रक्रिया एक दशक से रुक-रुक कर चल रही है। यह एक खास बाधा है जिससे एसओपी निजात पाने की कोशिश करेगा। यह एक आशावादी संकेत है।
यह राजनीतिक निर्णय लेने वालों के लिए भी एक अवसर है कि वे अधिकारियों को देश के बढ़ते कारोबारी संपर्कों के महत्त्व के बारे में बताएं। एसओपी में यह क्षमता है कि वह अधिकारियों को कुछ राहत प्रदान करे और बातचीत के दौरान कुछ रियायतों का अवसर दे। बहरहाल इसके साथ इस बात के व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए कि भारतीय निर्यातकों को भी एफटीए से उतना ही लाभ हो जितना कि भारतीय उपभोक्ताओं को।
उद्योग जगत को यह दिखाने की आवश्यकता है कि एफटीए की बदौलत खुले नए बाजारों का लाभ किस प्रकार उठाया जाए। गैर टैरिफ अवरोध उन व्यापारिक संबंधों में अभी भी मौजूद हो सकते हैं जहां टैरिफ कम कर दिए गए हैं। इस चिंता को हल करने के लिए ऐसी गैर टैरिफ बाधाओं का एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए। इसे द्विपक्षीय ढंग से किया जा सकता है।
नए दौर के एफटीए में पर्यावरण और श्रम नियमन संबंधी प्रावधान भी शामिल हैं। वाणिज्य मंत्रालय के वार्ताकार स्वाभाविक तौर पर इन क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं जो अन्य मंत्रालयों के क्षेत्राधिकार में आते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल को भी सुविधा और अधिकार प्रदान करने चाहिए ताकि इन मसलों पर भी समझौतों पर पहुंचा जा सके। आखिर में, अगर संस्थागृत स्मृति ही मानक है तो सरकार को बाहरी विशेषज्ञों पर भी विचार करना चाहिए।
वाणिज्य मंत्रालय के पास खुद के थिंक टैंक हैं जिनका उपयोग मौजूदा वार्ताओं की मदद के लिए विशेष सेल बनाने में किया जा सकता है। भले ही विभिन्न विभागों के अधिकारी आगे बढ़ गए हों। कुल मिलाकर मंशा होनी चाहिए वैश्विक व्यापार में उभरते अवसरों का लाभ लेना। आंशिक तौर पर ऐसा बदलते वैश्विक आर्थिक और राजनैतिक माहौल के कारण भी होना चाहिए।