संपादकीय

Editorial: मांग और आपूर्ति में विसंगति

हाल के वर्षों में किफायती श्रेणी के मकानों की मांग काफी कम हुई है क्योंकि इनका संभावित खरीदार वर्ग महामारी से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 14, 2024 | 1:53 PM IST

देश के शहरों में किफायती आवास की स्थिति बदतर होती जा रही है। हाल के वर्षों में किफायती श्रेणी के मकानों की मांग काफी कम हुई है क्योंकि इनका संभावित खरीदार वर्ग महामारी से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके अलावा आवास ऋण की ब्याज दरों और आवासीय कीमतों में भारी इजाफे ने भी कम आय वाले परिवारों के लिए हालात मुश्किल बना दिए हैं। यही वजह है कि किफायती आवास की बिक्री में हाल के वर्षो में उल्लेखनीय कमी आई है।

महामारी के कारण व्याप्त निराशा और निर्माण तथा श्रमिकों की बढ़ती लागत ने अचल संपत्ति डेवलपरों को विवश किया कि वे अपना ध्यान किफायती मकानों से दूर प्रीमियम और लक्जरी श्रेणी के मकानों पर लगाएं।

इन कारणों से मांग और आपूर्ति का अंतर उत्पन्न हो गया है जो किफायती आवासीय इकाइयों को प्रभावित कर रहा है। नाइट फ्रैंक और भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा किया गया एक हालिया अध्ययन बताता है कि यह समस्या वास्तव में कितनी विकट है।

अध्ययन दिखाता है कि 2030 तक देश में 3.12 करोड़ किफायती मकानों की कमी हो जाएगी। एक करोड़ से अधिक मकानों की कमी पहले ही बनी हुई है। यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि किफायती श्रेणी के मकानों की बिक्री कम हुई है। वर्ष 2018 में जहां देश के आठ प्रमुख शहरों में सभी आवासों की बिक्री में 54 फीसदी किफायती श्रेणी में थे, वहीं 2024 में यह हिस्सेदारी कम होकर 26 फीसदी रह गई। बढ़ते शहरीकरण, आय के स्तर में बेहतरी और अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने जैसे सकारात्मक घटनाक्रम के बावजूद ऐसा हो रहा है।

जबकि ये कारण आवास बाजार को मजबूत बनाने वाले हैं। देश में किफायती आवास की अपर्याप्त आपूर्ति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। हाल के वर्षों में किफायती श्रेणी के आवास की कीमतों में भी भारी बढ़ोतरी हुई है जिसने समस्या को और गंभीर बना दिया है। उदाहरण के लिए अध्ययन बताते हैं कि 2019 और 2024 के बीच मुंबई महानगर क्षेत्र में 30 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र वाली आवासीय इकाइयों की औसत लॉन्च कीमत आठ फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) की दर से बढ़ीं, जबकि 60 से 160 वर्ग मीटर वाली आवासीय इकाइयों की कीमतों में 4.4 फीसदी सीएजीआर की दर से इजाफा हुआ। परियोजनाओं का वित्तीय दृष्टि से अव्यावहारिक होना, किफायती जमीन की उपलब्धता की कमी और डेवलपरों एवं संभावित खरीदार दोनों की ऋण पर अत्यधिक निर्भरता भी बाधा है।

मकानों की ऊंची कीमतें अर्थव्यवस्था पर बोझ हैं। इससे शहरी इलाकों में काम करने वालों के वेतन का प्रीमियम खत्म होता है और नियोक्ताओं के लिए प्रतिभाओं को अपने साथ बनाए रखना मुश्किल होता है। आपूर्ति की कमी होने के कारण अमीर रियल एस्टेट डेवलपर और एजेंट तंग बाजार का फायदा उठाते हैं। किरायेदारों से जमकर मुनाफा कमाया जाता है और पहली बार मकान खरीदने वाले पीछे छूट जाते हैं।

इस संदर्भ में आवास बाजार के संचालन में मजबूत योजना का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। सरकारी नीतियां मसलन प्रधानमंत्री आवास योजना और राष्ट्रीय शहरी किराया आवास नीति शायद पर्याप्त साबित न हों। नए सैटेलाइट शहर विकसित करना और इन क्षेत्रों में भौतिक अधोसंरचना की कमियों को दूर करना आर्थिक गतिविधियों का विस्तार कर सकता है और बड़े शहरों पर से दबाव कम कर सकता है।

औद्योगिक श्रमिकों के लिए आवास बनाना, ऊंचे फ्लोर एरिया अनुपात के साथ जमीन का अधिकतम इस्तेमाल सुनिश्चित करना तथा मकान खरीदने वालों तथा डेवलपरों को पर्याप्त वित्तीय सुविधाएं मुहैया कराना भी समस्याओं को काफी हद तक कम करेगा। एक अन्य संभावित हल विभिन्न सरकारी उपक्रमों तथा राज्य सरकारों के नियंत्रण वाली खाली जमीन का इस्तेमाल करना भी हो सकता है।

First Published : December 13, 2024 | 10:59 PM IST