भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने वित्त वर्ष की अपनी आखिरी बैठक और नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अगुआई में हुई पहली बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत रीपो दर 25 आधार अंक घटाने का फैसला लिया। बाजार भागीदार पहले ही इस कटौती का अनुमान लगा रहे थे। पिछले शुक्रवार के इस निर्णय के पीछे एक कारण कम मुद्रास्फीति का अनुमान भी रहा। रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि मॉनसून सामान्य रहेगा और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 2025-26 में औसतन 4.2 फीसदी रहेगी। चालू वित्त वर्ष के लिए इसका अनुमान 4.8 फीसदी जताया गया था। चूंकि मौद्रिक नीति को भविष्य के हिसाब से बदलना चाहिए और मुद्रास्फीति का अनुमान तय लक्ष्य के भीतर रहने तथा वृद्धि सुस्त होने पर मौद्रिक नीति में ढिलाई बरतना ठीक ही लगता है।
मगर इस समाचार पत्र में पिछले हफ्ते दिया गया तर्क दोहराते हुए वैश्विक अनिश्चितता को देखते हुए कटौती के लिए अभी रुकना चाहिए था। खास तौर पर अमेरिका की घटनाएं मुद्रास्फीति पर असर डाल सकती हैं जिसे देखते हुए समिति को ठहरना ही चाहिए था। उसके अलावा भी विभिन्न देशों पर शुल्क लगाने या उसकी धमकी देने के अमेरिकी कदम ने डॉलर को मजबूत कर दिया है, जिससे उभरते बाजारों की मुद्राएं खास तौर पर लुढ़क गई हैं। रुपये की कीमत ही 2025 में 2 फीसदी से अधिक गिर चुकी है और गिरावट आगे भी जारी रहने का खटका है। इससे आयातित वस्तुएं महंगी होंगी। अक्टूबर में आई रिजर्व बैंक की छमाही मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि रुपया अगर बेसलाइन से 5 फीसदी गिरा तो मुद्रास्फीति में 35 आधार अंकों का इजाफा हो सकता है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में बेसलाइन विनिमय दर 83.5 रुपये प्रति डॉलर रही। फिलहाल रुपये की कीमत 87.43 प्रति डॉलर है।
रिजर्व बैंक का कहना है कि मुद्रास्फीति का अनुमान लगाते समय रुपये के अवमूल्यन का ध्यान रखा जाता है, लेकिन वैश्विक घटनाओं से रुपये पर लगातार दबाव रहा तो मुद्रास्फीति चढ़ सकती है। इसके अलावा व्यापार में अनिश्चितता से आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट आ सकती है, जिसका असर भी मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। बहरहाल अब रिजर्व बैंक कटौती कर ही चुका है तो बहस इस बात पर होनी चाहिए कि मुद्रास्फीति का अनुमान यही रहने पर नीतिगत दर में और कितनी कमी की जा सकती है।
रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों के हाल के शोध में कहा गया कि 2023-24 की चौथी तिमाही में 1.4 से 1.9 फीसदी की तटस्थ दर का अनुमान था। इस दायरे के मध्य बिंदु के हिसाब से समिति नीतिगत दरों में 50 आधार अंकों की कटौती और कर सकती है। किंतु कटौती कब होगी यह कई कारकों और वैश्विक घटनाक्रम पर निर्भर होगा।
मौद्रिक नीति समिति के निर्णय के अलावा भी रिजर्व बैंक की कई घोषणाओं का जिक्र यहां होना चाहिए। जैसे मल्होत्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि रिजर्व प्रमुख वृहद आर्थिक वेरिएबल्स के पूर्वानुमान को बेहतर बनाने का काम करेगा। यह स्वागत योग्य बात है क्योंकि मौद्रिक नीति अनुमानों की सटीकता पर ही निर्भर करती है।
रिजर्व बैंक को इस साल सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का अपना अनुमान काफी घटाना पड़ा। गवर्नर ने बैंकों से भी कहा कि अपने पास आया धन रिजर्व बैंक के पास रखने के बजाय मुद्रा बाजार में आपसी कारोबार करें ताकि मुद्रा बाजार मजबूत हो जाए। बैंकों की अनिच्छा के कारण अक्सर प्रणाली में तरलता की स्थिति बिगड़ जाती है और रिजर्व बैंक को दखल देना पड़ता है। मल्होत्रा ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक नियमन की लागत और लाभ में संतुलन साधने की कोशिश करेगा। ऋणदाताओं को राहत देते हुए प्रस्तावित तरलता कवरेज अनुपात दिशानिर्देश टाल दिए गए हैं।