Editorial: कार्य प्रगति पर

जी20 बैठक में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय स्थिरता बोर्ड द्वारा डिजाइन किए गए नियामकीय रोडमैप के 'सहज और समन्वित' क्रियान्वयन की बात कही गई।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:22 PM IST

मोरक्को के मराकेश में आयोजित जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक एक साझा घोषणापत्र के साथ संपन्न हुई। यह अपने आप में राहत की बात है क्योंकि नई दिल्ली में आयोजित जी20 देशों के नेताओं की शिखर बैठक से पहले के महीनों में यह संगठन एक खास किस्म की शिथिलता का शिकार रहा था।

जी20 समूह दो धड़ों में बंटा हुआ है: शेरपा धड़ा जो बहुपक्षीय चर्चा के लिए विविध सामयिक विषय चुनता है और इसलिए सबसे अधिक सुर्खियां भी वही बटोरता है।

दूसरा हिस्सा वित्तीय है जो ऐसे आवश्यक कार्यों को अंजाम देता है जिससे समूह की प्रासंगिकता बनी रहती है। वित्तीय धड़े के समक्ष चालू वर्ष के लिए कई मुद्दे थे और उनमें कुछ प्रगति भी हुई, हालांकि उतनी नहीं जितनी कि भारत की अध्यक्षता में उम्मीद की गई थी।

एक अहम चिंता थी क्रिप्टो परिसंपत्तियों के नियमन को लेकर साझा रुख की आकांक्षा की, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्य नेताओं के बीच प्रकट भी किया था।

क्रिप्टो परिसंपत्तियों की प्रकृति ऐसी है कि वे विभिन्न देशों की मौद्रिक संप्रभुता को चुनौती देती हैं। परंतु किसी एक केंद्रीय बैंक द्वारा उनका प्रबंधन अत्यंत मुश्किल काम है। यकीनन अक्सर उनका इस्तेमाल पूंजी नियंत्रण से बचने के लिए किया जाता है। उनका समर्थन करने वालों का दावा है कि वह निवेशकों को वैकल्पिक मूल्य प्रदान करते हैं। परंतु व्यवहार में यह निवेश अटकलों पर आधारित है।

मुख्य धारा की बात करें तो वहां क्रिप्टो परिसंपत्तियों में पहले जताई गई आशंकाओं की तुलना में बहुत कम निवेश किया गया है। परंतु अगर वे अनियमित बनी रहीं तो इस बात की आशंका है कि इससे एक वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है।

जी20 बैठक में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वित्तीय स्थिरता बोर्ड द्वारा डिजाइन किए गए नियामकीय रोडमैप के ‘सहज और समन्वित’ क्रियान्वयन की बात कही गई। इस रोडमैप में दुनिया भर के नियामकों और के बीच क्रिप्टो होल्डिंग को लेकर स्वचालित विनिमय पर जोर दिया गया है।

क्रिप्टो कंपनियों के लिए एक व्यापक जोखिम प्रबंधन ढांचे की भी मांग की गई है। प्रमुख क्रिप्टो एक्सचेंजों में धोखाधड़ी का मामला सामने आने के बाद इस पर जोर बढ़ गया है।

एक अन्य प्रमुख क्षेत्र-बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार- में प्रगति की उम्मीद थी। यहां कई हित समूह काम कर रहे हैं। कई विकासशील देश चाहते थे कि बहुपक्षीय विकास बैंक उन्हें अधिक ऋण दें। परंतु विकसित देश इन संस्थाओं के लिए अपनी पूंजी प्रतिबद्धता बढ़ाना नहीं चाहता।

इस बीच कुछ छोटे विकासशील देशों ने यह इच्छा भी प्रकट की कि बहुपक्षीय विकास बैंक गरीबी उन्मूलन और अधोसंरचना पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय जलवायु परिवर्तन के अनुकूल चीजों को अपने पर ध्यान दें। पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का मानना है कि बहुपक्षीय विकास बैंकों के ऋण में जलवायु परिवर्तन की चर्चा को केंद्र में रखा जाए। इन तमाम लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना आसान नहीं है।

गत वर्ष जर्मनी की अध्यक्षता वाले जी7 समूह द्वारा शुरू की गई एक पहल के आधार पर एक कदम यह हो सकता था कि पूंजी पर्याप्तता की समीक्षा की जाती ताकि बहुपक्षीय विकास बैंकों को समान पूंजी में ज्यादा कदम उठाने की सुविधा मिल पाती।

सितंबर में इन नेताओं की बैठक में लैरी समर्स और एन के सिंह द्वारा लिखित इन सिद्धांतों पर आधारित एक रिपोर्ट को स्वीकार किया गया। वित्तीय क्षेत्र के अधिकारियों की ताजा बैठक से भी यही संकेत निकलता है कि बहुपक्षीय ऋण का इस्तेमाल विभिन्न देशों की व्यक्तिगत समस्याओं के मुताबिक होना चाहिए। यहां उन देशों को यह सुविधा होनी चाहिए कि वे ऐसी व्यवस्था बना सकें जहां विकास संबंधी धन राशि स्वीकार की जा सके और उसे उस देश की प्राथमिकताओं के आधार पर वितरित किया जा सके।

प्रथम दृष्टि में लग सकता है इससे ऋण देने की प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण होगा और उन चयनों से बचा जा सकेगा जो विकास संबंधी ऋण की विभिन्न प्राथमिकताओं के बीच करने होते हैं। परंतु इसकी अपनी अलग समस्याएं हैं।

उदाहरण के लिए भारत में ऐसा करने से इन विकास बैंकों द्वारा संचालित स्थानीय परियोजनाओं की कीमत पर केंद्र सरकार का वित्त मजबूत हो सकता है। ऐसे में कहां जा सकता है कि वित्तीय क्षेत्र में कुछ अहम प्रगति तो हुई है लेकिन अभी काफी चर्चाएं होनी हैं।

First Published : October 15, 2023 | 11:38 PM IST