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Editorial: क्षमता केंद्रों को मिले सक्षम माहौल

स्वाभाविक सी बात है कि प्रस्तावित जीसीसी के लिए तय स्थानों की बात करें तो एक स्वस्थ घरेलू प्रतिस्पर्धा नजर आती है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 26, 2024 | 9:56 PM IST

बीते कुछ वर्षों में कारोबारी सेवा क्षेत्र में घटित कुछ अहम और उत्साहजनक घटनाओं में से एक है समग्र ‘वैश्विक क्षमता केंद्रों’ यानी जीसीसी का विकास जो बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए मददगार साबित होते हैं। इनमें से कई भारत में स्थित हैं या उन्हें भारत में बनाने की योजना है। यह दर्शाता है कि भारत के घरेलू क्षेत्र का दायरा बढ़ा है और उसके मूल्यवर्धन में भी अहम इजाफा हुआ है।

स्वाभाविक सी बात है कि प्रस्तावित जीसीसी के लिए तय स्थानों की बात करें तो एक स्वस्थ घरेलू प्रतिस्पर्धा नजर आती है। कर्नाटक सरकार ने पहले ही जीसीसी पर केंद्रित एक रणनीति जारी कर दी है। अब मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने घोषणा की है कि राज्य सरकार की योजना जीसीसी के लिए तीन पार्क बनाने की है। ये पार्क बेंगलूरु, मैसूरु और बेलागावी में बनाए जाने हैं।

जीसीसी पर सिद्धरमैया का ध्यान उपयोगी भी है और आवश्यक भी। सूचना प्रौद्योगिक सक्षम सेवा क्षेत्र की बात करें तो लंबे समय से बेंगलूरु को उनका घर माना जाता रहा है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बीते कुछ वर्षों में इसके तकनीकी, शासन और कॉर्पोरेट विकास के क्षेत्र में पीछे रह जाने का जोखिम उत्पन्न हो गया है।

परंतु यह भी समझने की आवश्यकता है कि किसी भी अन्य राज्य की तरह कर्नाटक में भी जीसीसी के विकास के लिए बुनियादी आवश्यकताएं वही हैं जो व्यापक रूप से हर नए निवेश, खासकर विदेशी निवेश के लिए जरूरी होती हैं। इनमें जमीन की उपलब्धता, उन्नत अधोसंरचना, सड़कें, विश्वसनीय और किफायती बिजली आपूर्ति (नवीकरणीय ऊर्जा हो तो बेहतर), और विवादों का आसानी से निपटारा शामिल हैं।

अतीत में कर्नाटक सरकार का प्रदर्शन इन मानकों पर बहुत अच्छा नहीं रहा है। कई बार कर्नाटक कर और नियामकीय विवादों के लिए सुर्खियों में रहा है। राज्य का ध्यान स्पष्टता बढ़ाने पर केंद्रित होना चाहिए, न कि उसे कम करने पर। कारोबारी सेवाओं में मूल्य श्रृंखला में बेहतरी की बात करें तो शहरीकरण एक अहम कारक है।

कुछ अनुमानों के मुताबिक देश के कुल आईटी और आईटी सक्षम सेवा निर्यात में 85 फीसदी चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु से होता है। जीवंत शहरी केंद्रों की उपस्थिति ही इसे संभव करती है। कर्नाटक की वर्तमान सरकार संतुलित क्षेत्रीय विकास की महत्ता पर जोर देती है लेकिन उसे यह भी समझना चाहिए कि विश्वस्तरीय शहरी केंद्र ही निवेश आकर्षित करते हैं।

‘बियॉन्ड बेंगलूरु’ एक अच्छा नारा है लेकिन इसे हकीकत में तभी बदला जा सकता है जब प्रदेश के अन्य शहरी केंद्रों के पास भी समतुल्य संपर्क, सुविधाएं तथा बेंगलूरु-मैसूरु जैसी जीवन गुणवत्ता हो।

मुख्यमंत्री ने जीसीसी को लेकर अपनी चर्चा में यह भी कहा कि राज्य पहले ही अपनी उत्कृष्ट इंजीनियरिंग प्रतिभाओं और विश्व स्तर पर सर्वाधिक एआई पेशेवरों के साथ ‘प्राथमिकता वाला गंतव्य’ बना हुआ है। उन्होंने अपनी सरकार द्वारा ‘उद्योगों के लिए तैयार श्रम शक्ति’ तैयार करने की पहल का जिक्र किया। यह एक तथ्य है कि जीसीसी के मामले में मानव संसाधन की चिंता प्रमुख है।

ऐसा इसलिए कि जीसीसी श्रम की गहनता वाले क्षेत्र होते हैं। सरकार को यह भी समझना होगा कि उद्योगों के लिए तैयार श्रम शक्ति ऐसी नहीं होती है जो ‘बाहरी लोगों’ के साथ भेदभाव करे। जीसीसी की योजना बना रही कोई कंपनी नहीं चाहती कि वह नौकरी देते समय स्थानीय और बाहरी के जटिल राजनीतिक विवाद में उलझे।

कर्नाटक के निवासियों की उत्पादकता और उनकी क्षमता बढ़ाने संबंधी पहलें स्वागतयोग्य हैं। परंतु स्थानीय लोगों को नौकरी में आरक्षण के लिए कठोर नियमन उचित नहीं। निवेशक सजा को नहीं लालच को अधिक पसंद करते हैं। कर्नाटक सरकार को जीसीसी के लिए उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवारों पर ध्यान देना चाहिए बजाय कि श्रम मांग को अनुकूल बनाने की बाध्यता के।

First Published : November 26, 2024 | 9:56 PM IST