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Editorial: रोजगार और दासता के दरमियान

पांच वर्ष के अंतराल के बाद प्रकाशित यह रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग आधुनिक दासता में जीवन बिता रहे हैं।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 15, 2023 | 10:17 PM IST

भारत आगामी सितंबर में नई दिल्ली में जी20 देशों के नेताओं की शिखर बैठक की तैयारी में लगा है। भारत इस वर्ष इस समूह का अध्यक्ष चुना गया है और यह वर्ष का सबसे बड़ा आयोजन होगा। परंतु इसी बीच ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स यानी वैश्विक दासता सूचकांक के पांचवें संस्करण के रूप में एक सचेत करती हकीकत सामने है।

पांच वर्ष के अंतराल के बाद प्रकाशित यह रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग आधुनिक दासता में जीवन बिता रहे हैं और इनमें से करीब 1.1 करोड़ लोग भारत में रहते हैं। हालांकि प्रति 1,000 की आबादी पर दासता के मामले में भारत शीर्ष 10 देशों में शामिल नहीं है लेकिन संख्या के मामले में यह सबसे आगे है।

यह मुद्दा जी20 के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि आधुनिक दासता के शिकार लोगों में से आधे से अधिक इन्हीं देशों में रहते हैं। इनमें चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। ये आंकड़े चिंतित करने वाले हैं लेकिन इसके बावजूद यह मुद्दा जी20 के रोजगार कार्य समूह द्वारा फरवरी से जून तक आयोजित श्रम संबंधी सात बैठकों में पेश नहीं किया गया।

यकीनन इसके लिए अपनाई गई प्रविधि पर उचित ही आपत्तियां की गई हैं। मुख्य आपत्ति यह है कि यह सूचकांक एक व्यापक अनुमान से तैयार किया गया है जो आंशिक तौर पर उन जोखिम अंकों पर आधारित है जो उन कारकों पर आधारित हैं जो किसी देश के विकासशील दर्जे के निर्धारण में इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे में विकसित देश, जिनमें ज्यादातर यूरोप के देश हैं अपने आप बेहतर प्रदर्शन करते नजर आते हैं।

हालांकि अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के शरणार्थियों की बढ़ती समस्या और धीमी पड़ती अर्थव्यवस्थाएं मजबूती से यह संकेत देती हैं कि आधुनिक दासता शायद सर्वे के सुझाव से कहीं अधिक बड़े स्तर पर मौजूद हो। अतीत में भारत की शिकायत थी कि सर्वे के नमूने का आकार सही नहीं है और इसके अनुमान भारत के विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक कारकों की अनदेखी करते हैं। कुछ लोगों को वैश्विक दासता सूचकांक की परिभाषा से आपत्ति है।

उनका कहना है कि वह किसी अंतरराष्ट्रीय मानक का पालन नहीं करती तथा उसमें निरंतर बदलाव किया जाता है। सूचकांक तैयार करने वाला मानवाधिकार संस्थान वॉक फ्री इसमें बाल श्रम, यौन शोषण, मानव तस्करी, जबरिया विवाह के तहत जबरन श्रम आदि को आधुनिक दासता की परिभाषा में शामिल करता है। अकेले दक्षिण और पश्चिम एशिया को ही देखें तो यह परिभाषा बहुत अतार्किक नहीं लगती।

भारत में दासता से मिलता जुलता शब्द है बंधुआ मजदूरी। इसे 1976 में ही गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। परंतु इसकी परिभाषा बहुत संकीर्ण है और उसमें उन लोगों को शामिल किया गया है जो कोई कर्ज चुकाने के लिए बिना किसी भुगतान के काम करते हैं और उनके पास वह काम न करने का विकल्प नहीं होता।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस परिभाषा में उन श्रमिकों को शामिल किया जो बाजार दर और कानूनी रूप से तय न्यूनतम वेतन से कम पाते हैं। हालंकि यह व्यवस्था ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में है लेकिन इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है। सरकार केवल उन लोगों के आंकड़े जारी करती है जिन्हें बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया जाता है।

हकीकत यह है कि देश के कामगारों में से 93 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं जहां शोषण पर निगरानी और उससे बचाव उपलब्ध नहीं है। उनमें से कई के लिए दासता और रोजगार में बहुत कम फर्क है। उन्हें इसके दायरे में लाने के प्रयास 2021 से चल रहे हैं जब सरकार ने ई-श्रम पोर्टल की शुरुआत की थी ताकि असंगठित क्षेत्र के श्रमिक पंजीयन करा सकें तथा पेंशन, बीमा तथा मृत्यु के उपरांत मिलने वाले लाभ हासिल कर सकें।

अब तक 28 करोड़ असंगठित श्रमिकों ने पोर्टल पर पंजीयन कराया है जो श्रम शक्ति का लगभग आधा हैं। दो वर्षों में यह प्रगति अच्छी है। हालांकि वास्तविक परीक्षा तब होगी जब यह सामने आएगा कि सेवानिवृत्त श्रमिक इन लाभों को कितनी आसानी से हासिल कर पाते हैं।

First Published : June 15, 2023 | 10:17 PM IST