भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) श्रेणी-1 और 2 के वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) को मान्यता प्राप्त निवेशकों के लिए समर्पित ‘को-इन्वेस्टमेंट’ (सीआईवी) योजना चलाने की अनुमति देगा। लिहाजा, अलग पोर्टफोलियो-मैनेजर लाइसेंस की जरूरत समाप्त हो जाएगी। सोमवार को अधिसूचित नियमों का उद्देश्य एआईएफ मैनेजरों के लिए अनुपालन बोझ कम करना है।
मान्यता प्राप्त निवेशक से मतलब उन लोगों से है जो नेटवर्थ जैसे कुछ वित्तीय मानदंडों को पूरा करते हैं और नियामकीय मानकों के तहत इसका प्रमाणन लेते हैं। को-इन्वेस्टमेंट से मान्यता प्राप्त निवेशकों को उस गैर-सूचीबद्ध परिसंपत्ति में भी सीधे निवेश की सुविधा मिलेगी जिसमें एआईएफ भी निवेश कर रहा होगा।
बाजार नियामक ने कहा कि प्रत्येक सीआईवी योजना की परिसंपत्तियों को अन्य योजनाओं की परिसंपत्तियों से अलग रखा जाएगा। इसके अलावा, प्रत्येक सीआईवी योजना का एक अलग बैंक खाता और डीमैट खाता होगा।
आईसी रेगफिन लीगल में पार्टनर संचित कपूर का कहना है कि ‘को-इन्वेस्टमेंट’ की परिभाषा अभी भी व्यापक बनी हुई है और इसमें संभवतः वे स्थितियां भी शामिल हो सकती हैं जिनमें निवेशक और फंड एक ही कंपनी में अलग-अलग चरणों में निवेश करते हैं। उन्होंने कहा कि को-इन्वेस्टमेंट के दायरे में क्या नहीं आएगा, इस बारे में नियामक की ओर से स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार है।
मंगलवार को जारी सर्कुलर के अनुसार एआईएफ प्रबंधक सह-निवेश की पेशकश के लिए सीआईवी योजना या वर्तमान पीएमएस विकल्प में से किसी एक को चुन सकते हैं। कपूर ने कहा, ‘सीआईवी योजना मान्यता प्राप्त निवेशकों तक ही सीमित है और प्रत्येक योजना के निवेशक मुख्य एआईएफ योजना में से ही होंगे जो सीपीएम की तुलना में भागीदारी तुरंत कम कर देती है। इस योजना में एक ही प्रबंधक /प्रायोजक द्वारा प्रबंधित / प्रायोजित किसी भी योजना के निवेशक की भागीदारी हो सकती है और जरूरी नहीं कि वह एआई हो।’
एआईएफ उद्योग संगठन बाजार नियामक सेबी के साथ परामर्श के दौरान को-इन्वेस्टमेंट लागू करने के मानकों पर आगे बढ़ सकते हैं।