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अर्थतंत्र: भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार की मजबूत ढाल

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के कई कारण हैं और उदारीकरण के बाद भारत कुछ मौकों को छोड़कर लगातार ऐसा करता रहा है।

Last Updated- October 21, 2024 | 10:36 PM IST
Forex Reserves: Foreign exchange reserves are taking a hit amid the fall in the rupee, falling to the lowest level in 11 months रुपये में गिरावट के बीच विदेशी मुद्रा भंडार को लग रही चपत, घटकर 11 महीने के निचले स्तर पर आया

पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने से रुपया दबाव में आ गया है। पिछले सप्ताह यह अमेरिकी डॉलर की तुलना में 84 के पार चला गया। तनाव बढ़ता ही रहा तो दो कारणों से रुपये की चाल पर अनिश्चितता और बढ़ सकती है।

पहला, पश्चिम एशिया में चल रहा तनाव विदेशी निवेशकों में जोखिम भरे दांव खेलने का जज्बा कम कर सकता है, जिस कारण वे भारत से निवेश निकाल सकते हैं।

दूसरा, तनाव से कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे इसके दाम और बढ़ जाएंगे। भारत ईंधन की अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भारी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है, इसलिए दाम बढ़ने से डॉलर की जरूरत भी बढ़ जाएगी। ईंधन के दाम बढ़ना भारत के लिए हमेशा सिरदर्द रहा है।

फिलहाल तेल के दाम नियंत्रण में हैं और भारत को भरोसा है कि वह वैश्विक वित्तीय एवं ऊर्जा बाजार की उठापटक से निपट सकता है। इस भरोसे ही बड़ी वजह भारत का विशाल विदेशी मुद्रा भंडार है, जो हाल ही में 700 अरब डॉलर पार कर गया।

विशाल मुद्रा भंडार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के सक्रिय हस्तक्षेप के कारण मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव काबू मे रहा है। इस वर्ष की शुरुआत से रुपया महज 1 प्रतिशत कमजोर हुआ है। कुछ अर्थशास्त्री तो कह रहे हैं कि यह उठापटक बहुत कम है।

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के कई कारण हैं और उदारीकरण के बाद भारत कुछ मौकों को छोड़कर लगातार ऐसा करता रहा है। रिजर्व बैंक मुख्य रूप से अनिश्चितता कम करने के लिए ही विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है।

देश के वित्तीय तंत्र से विदेशी रकम अचानक निकलने पर विदेशी मुद्रा भंडार बीमा की तरह काम करता है। भारत दूसरे देशों से और भी ज्यादा जुड़ रहा है, इसलिए वैश्विक स्तर पर होने वाली उठापटक का सामना करने के लिए इसके पास पर्याप्त मुद्रा भंडार होना चाहिए। उथल-पुथल बढ़ने पर मुद्रा बाजार में अनिश्चितता बढ़ती है और वास्तविक आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है।

उदाहरण के लिए 2022 में जब यूक्रेन युद्ध के कारण कमोडिटी के दाम एकाएक चढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ गया था तब अत्यधिक उतार-चढ़ाव को काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल किया था। इस बीच अमेरिकी फेडरल रिजर्व और उसके बाद कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने जब मौद्रिक सख्ती की तो भारत से रकम निकासी तेज हो गई।

विदेशी निवेशकों ने जनवरी और जून 2022 के बीच 30 अरब डॉलर से अधिक के शेयर एवं बॉन्ड बेच डाले। इस दोहरे झटके से निपटने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 2022 तक 525 अरब डॉलर रह गया, जो जनवरी में 635 अरब डॉलर था।

हालांकि कुछ कमी तो वैश्विक मुद्रा बाजार में जबरदस्त उठापटक के कारण पुनर्मूल्यांकन किए जाने का नतीजा भी रही होगी मगर रिजर्व बैंक रुपये में उतार-चढ़ाव को इसलिए काबू में रख पाया क्योंकि उसके पास डॉलर का विशाल भंडार था और वह उसका इस्तेमाल करने को तैयार था।

विशाल मुद्रा भंडार देश के वित्तीय तंत्र से पूंजी निकलने पर प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में सहायक हो सकते हैं। अर्थशास्त्री चेतन घाटे एवं अन्य ने एक नए शोध पत्र में कहा है कि वैश्विक वित्तीय संकट की स्थिति में विदेशी मुद्रा भंडार देश से पूंजी बाहर जाने की रफ्तार कम कर देता है।

आंकड़ों का हवाला देते हुए शोधपत्र कहता है कि दरें घटाने बढ़ाने पर डेट पोर्टफोलियो में आने वाली अनिश्चितता भी इससे कम हो जाती है। कुल मिलाकर नतीजे बताते हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक वित्तीय बाजार के जोखिमों का असर कम कर देता है।

रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र एवं अन्य द्वारा तैयार एक शोध पत्र में कहा गया है कि कोविड महामारी, वैश्विक वित्तीय संकट (अमेरिका के साथ ब्याज दरों के बीच अंतर में कमी) और अनिश्चितता सूचकांक में कमी जैसे हालात में वास्तविक उत्पादन में गिरावट के कारण किसी वर्ष घरेलू सकल उत्पाद (GDP) के 3.2 प्रतिशत के बराबर (लगभग 100 अरब डॉलर) विदेशी पूंजी निकासी की आशंका 5 प्रतिशत तक होती है।जोखिम बहुत ज्यादा हो तो पूंजी निकासी भी काफी अधिक रह सकती है।

भारत में चालू खाते का घाटा है (जो इसकी निवेश जरूरतों को देखते हुए सही है) और विदेशी मुद्रा भंडार व्यापार आधिक्य के बल पर नहीं बना है, इसलिए 2022 सरीखे वैश्विक झटकों से निपटने के लिए अधिक मुद्रा भंडार रखना जरूरी हो जाता है।

विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा हो तो नीतिगत निर्णय लेने में भी आसानी होती है। उदाहरण के लिए कोविड महामारी के बाद भारत का सामान्य सरकारी बजट घाटा काफी अधिक हो गया था और सार्वजनिक ऋण भी काफी अधिक हो गया था। 2022 में जब दुनिया में ब्याज दरें तेजी से बढ़ रही थीं तब स्थिति और विकराल हो सकती थी।

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अधिक बजट घाटा निवेशकों का विश्वास टूटने का एक बड़ा कारण था और 2013 में तो इससे लगभग मुद्रा संकट ही पैदा हो गया था। मुद्रा भंडार मजबूत होने पर रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाते समय भी मुद्रास्फीति एवं वृहद आर्थिक हालात पर आसानी से नजर रख सका। फेडरल रिजर्व ने नीतिगत ब्याज दरें 500 आधार अंक तक बढ़ा दीं लेकिन रिजर्व बैंक ने रीपो दर केवल 250 आधार अंक ही बढ़ाई, जिससे यील्ड में अंतर कम हो गया।

स्पष्ट है कि विदेशी मुद्रा भंडार अधिक रहने से उठापटक संभालने और नीति लचीली बनाए रखने में मदद मिली है, इसलिए इस पर भी बहस होनी चाहिए कि रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार को कितना बढ़ाए। ऊपर बताए गए एक शोधपत्र में कहा गया है कि भारत का मुद्रा भंडार पर्याप्त एवं बेहतर स्थिति में है।

ध्यान रहे कि अधिक मुद्रा भंडार के भी नुकसान हैं। यह नुकसान अमूमन ब्याज का हो सकता है क्योंकि रिजर्व बैंक सरकारी बॉन्ड के बदले विदेशी परिसंपत्तियां (जैसे अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड) जमा कर रहा है, जिस पर कम यील्ड मिलती है। मगर यह नुकसान बहुत ज्यादा नहीं है।
अहम सवाल यह है कि अधिक विदेशी मुद्रा भंडार और मुद्रा में स्थिरता से देश में पूंजी निवेश बहुत अधिक होने लगे तो? ध्यान रहे कि भारतीय बॉन्ड जाने-माने विदेशी सूचकांकों में शामिल किए जा रहे हैं।

निवेशकों में विश्वास बढ़ने और अधिक बॉन्ड जारी होने से वास्तविक निवेश वैश्विक सूचकांकों में भार की तुलना में कहीं अधिक हो सकता है। पूंजी प्रवाह ऊंचे स्तर पर बने रहने और बाजार में रिजर्व बैंक के सक्रिय हस्तक्षेप से मौद्रिक नीतियों के क्रियान्वयन में चुनौतियां आ सकती हैं। इससे रुपया चढ़ सकता है और निर्यात में भारत की बढ़त पर असर पड़ सकता है।

इस समाचार पत्र में खबर थी कि हालिया गिरावट के बाद भी रुपया अगस्त में 5 प्रतिशत महंगा था। रुपया लंबे समय तक ऊंचा रहे तो आर्थिक वृद्धि और वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए जोखिम पैदा हो सकते हैं। भारत के इतिहास को देखते हुए विशाल मुद्रा भंडार मौजूद रहने पर भी बाह्य क्षेत्र के कुशल प्रबंधन की जरूरत होगी।

First Published - October 21, 2024 | 10:30 PM IST

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