जॉनी डेप-एंबर हर्ड मामले में निर्णय आने के बाद, अमेरिका में एक पूर्व राष्ट्रपति के बलवाई बन जाने और रिपब्लिकन पार्टी पर दोबारा अपनी पकड़ मजबूत कर लेने के बाद, और ब्रिटेन में एक संभावित संधि भंग करने वाले व्यक्ति के प्रधानमंत्री बने रहने के बाद यह सवाल उचित ही है कि क्या प्रतिष्ठा मायने रखती है? कंपनियों की बात करें तो बिज़नेस स्टैंडर्ड के अंग्रेजी संस्करण के 17 जून के अंक में विश्व समाचारों के पन्ने पर निम्न खबरें थीं: गूगल पर जुर्माना…’, मैकडॉनल्ड्स चुकाएगी 1.3 अरब डॉलर (एक कर मामले में), तोशिबा, सोनी हारी अदालती लड़ाई (कार्टलीकरण को लेकर) और ऐपल पर आईफोन उपयोगकर्ताओं को भ्रमित करने का आरोप। एक पांचवीं खबर भी थी: मेटा, गूगल, ट्विटर ने झूठी खबरों का मुकाबला करने का ‘वचन’ दिया या फिर वो जुर्माने का जोखिम उठाएंगे। मेटा का नाम एक और खबर में आया था जहां उसने वचन दिया था कि वह ऑनलाइन विज्ञापनों को लेकर फ्रांस की ऐंटी-ट्रस्ट चिंताओं को दूर करेगा। उनका कहना है कि एक कंपनी की प्रतिष्ठा सबसे मूल्यवान है। लेकिन एक के बाद एक गलतियों के बाद भी इन कंपनियों की प्रतिष्ठा को क्या कुछ बड़ा नुकसान पहुंचा? आखिरकार नकदी के लिए अपने समाचार स्तंभ को बेचने वाले अखबारों के भी लाखों पाठक हैं। बड़ी अंकेक्षण कंपनियों की बात करें तो हितों में टकराव के बावजूद वे संबद्ध कारोबार बड़े आराम से खड़ा करते जा रहे हैं। डी बियर्स जैसी कंपनी का हीरों से जुड़ा खूनी इतिहास रहा है लेकिन उसका दबदबा अभी भी कायम है। यदाकदा एनरॉन जैसी कंपनियां ताश के पत्तों की तरह ढहती रहती हैं लेकिन मैकिंजी के लोग स्कैंडलों में फंसी कई कंपनियों से जुड़े रहे और इसके बावजूद आज भी उसे सलाहकार सेवा में स्वर्णिम मानकों वाली कंपनी माना जाता है।
कारोबारी क्षेत्र के कुकर्मों की शुरुआत अक्सर स्कैंडल से होती है और उनका अंत अक्सर लोककथा के रूप में होता है। अनैतिक कारोबारी व्यवहार अपनाने वाले अमेरिकी उद्योगपतियों से (एक ने तो पेन्सिलवेनिया के अधिकांश सदन सदस्यों को खरीदकर रेलवे लाइन तक बिछवा ली थी) धीरूभाई अंबानी के आरंभिक शोषण और अब गौतम अदाणी तक यही सिलसिला है। हमारे देश में गैस कीमतों को लेकर होने वाली जंग और दूरसंचार की चोरी पर किताबें लिखी जा चुकी हैं लेकिन हमारे घोटालों में आमतौर पर कोई दोषी नहीं होता। यह लगभग वैसा ही है जैसे अमेरिका में जानबूझकर गलत ढंग से योजनाएं बेचने तथा वित्तीय संकट की बुनियाद तैयार करने के लिए अमेरिका के वित्तीय क्षेत्र के किसी दिग्गज को जेल नहीं जाना पड़ा। न्यूयॉर्क में तथा अन्य स्थानों पर मझोले स्तर के बॉन्ड कारोबारियों को अवश्य जेल जाना पड़ा। अगर वर्गीकरण पर नजर डालें तो यह इस प्रकार हो सकता है: यदि आपको एक कुशाग्र कारोबारी माना जाता है, तो आपका तीखा व्यवहार भी आपको नुकसान नहीं पहुंचाता। ठीक वैसे ही जैसे कि हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाली पार्टी अगर किसी अन्य धर्म के साथ रुखाई से भी पेश आये तो उसे कोई नुकसान नहीं होता। अगर आपकी कंपनी जनता की नजर में अच्छी है तो घोटाला नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि कुछ कीमत चुकाकर इसकी भरपाई हो सकती है।
फोक्सवैगन, टोयोटा और अन्य कंपनियां इसका उदाहरण हैं। वहीं अगर आपकी कंपनी की हालत पहले ही डांवाडोल है तो एक घोटाला उसे पूरी तरह खत्म कर सकता है। ऐसे में अहम सवाल यह होगा: क्या घोटाला बुनियादी तौर पर किसी कंपनी या व्यक्ति या फिर राजनीतिक दल के बारे में जनता के नजरिये को बदल देता है। अगर ऐसा नहीं होता तो डॉनल्ड ट्रंप और बोरिस जॉनसन जैसी दीर्घ आयु प्राप्त होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिष्ठा एक आयामी चीज है। निवेशक, उपभोक्ता, कर्मचारी, वेंडर, वितरक, अंशधारक आदि कंपनी के अलग-अलग चेहरे देखते हैं। क्या यह अच्छी नियोक्ता है? क्या यह समय पर अपने बिल चुकाती है? क्या इसका स्टोर करीब स्थित है? क्या यह आपके विश्वविद्यालय के विभागीय शोध कार्यक्रम को फंड करता है? क्या इसमें सबसे अच्छा क्रॉसवर्ड है? ‘प्रतिष्ठा’ एक जटिल विषय है। इसके अलावा अगर किसी उपक्रम द्वारा मैंग्रोव को नष्ट किए जाने को न देखना आपके हित में है तो आप उसे नहीं देखेंगे। डॉयचे बैंक के बाजार मूल्य का बड़ा हिस्सा गंवाने के पहले एक धनशोधन घोटाले समेत एक दशक की गड़बड़ियां लगीं।
यदि गूगल के पास बेहतरीन खोज अलगोरिद्म है तो कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को इसी से मतलब है, न कि इस बात से कि वह इसकी मदद से समाचारों को खत्म कर रहा है। उपयोगितावादी नजरिये से किसी कंपनी ने कर चोरी की या जनजातियों को नष्ट किया तो यह उसकी चिंता का विषय नहीं है। यही कारण है कि पर्यावरण, सामाजिक और संचालन को ध्यान में रखते हुए निवेश करने के फैशन पर अब सवाल उठ रहे हैं। ऐसे व्यावहारिक समय में अगर कोई देश आपकी धार्मिक संवेदनाओं को नुकसान पहुंचा रहा है तो इसकी अनदेखी की जा सकती है, बशर्ते वह आपके तेल अथवा गैस का अहम ग्राहक हो।
