भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक परिस्थितियों को सामान्य बनाने की दिशा में अगले कदम को स्थगित कर दिया है। केंद्रीय बजट प्रस्तुत किए जाने के बाद अपनी पहली बैठक में आरबीआई की मौद्रिक समिति (एमपीसी) ने नीतिगत दरों और रुख को अपरिवर्तित रखने का फैसला किया। यह तो अपेक्षित ही था लेकिन आरबीआई ने रिवर्स रीपो दर को भी अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। इस समाचार पत्र समेत कई टीकाकारों ने नीतिगत दायरे को सामान्य बनाने की वकालत की थी। यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर किस बात ने आरबीआई को रोका क्योंकि रिवर्स रीपो दर एमपीसी के दायरे के बाहर है। जैसा कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा भी, तयशुदा दर तथा चर दर पर आधारित रिवर्स रीपो दर 4 फरवरी को 3.87 फीसदी थी। रिजर्व बैंक ने जहां प्रभावी रिवर्स रीपो दर को बढ़ाकर अच्छा किया, वहीं वह नीतिगत दायरे को भी सामान्य बना सकता था। वह बिना कोई उथल-पुथल मचाए कम से कम आंशिक रूप से ऐसा कर सकता था।
संभव है कि आरबीआई का इरादा कुछ और समय तक लचीलापन बनाए रखने का हो क्योंकि इससे अपेक्षा से ज्यादा सरकारी उधारी का प्रबंधन करने में मदद मिल सकती है। सच तो यह है कि नीतिगत वक्तव्य और आरबीआई के आर्थिक अनुमानों से बॉन्ड प्रतिफल नीचे आया। आरबीआई का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.3 फीसदी तथा चालू तिमाही में यह 5.7 फीसदी रह सकती है। हालांकि अगले वित्त वर्ष में इस दर के और कम होकर 4.5 फीसदी रह जाने का अनुमान है। मुद्रास्फीति के वैश्विक हालात तथा कच्चे तेल की कीमतों के स्तर को ध्यान में रखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि उपभोक्ता मूल्य वास्तव में किस तरह सामने आता है। मौजूदा हालात के हिसाब से देखें तो घरेलू ईंधन कीमतों में तेज उछाल देखने को मिल सकती है। मौजूदा विधानसभा चुनावों के बाद ऐसा हो सकता है क्योंकि तेल विपणन कंपनियां कीमतों को अंतरराष्ट्रीय कीमतों के साथ तालमेल में ला चुकी हैं। यदि सरकार करों में कटौती के माध्यम से उच्च कीमतों का बोझ वहन करना चाहती है तो वह उधारी बढ़ाएगी। चाहे जो भी हो इससे आरबीआई के लिए मामला और जटिल होगा।
केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि आगामी वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.8 फीसदी की दर से विकसित होगी जो आर्थिक समीक्षा में उल्लिखित 8-8.5 फीसदी के अनुमान से कम है। बहरहाल, नीति निर्माताओं और बाजार को पूरे वर्ष के आंकड़ों पर ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए। कम आधार के कारण अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर तेज रहेगी। कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं। ऐसे में वित्त वर्ष की दूसरी छमाही पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। आरबीआई के अनुमान के मुताबिक 2022-23 की तीसरी और चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था क्रमश: 4.3 फीसदी और 4.5 फीसदी की दर से विकसित होगी। चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में भी वृद्धि के औसतन इसी दायरे में रहने की आशा है। यह बात नीतिनिर्माताओं को चिंतित कर सकती है।
कोविड के कारण लगे प्रतिबंधों का आंकड़ों संबंधी प्रभाव समाप्त होने पर वृद्धि महामारी के पहले के स्तर पर लौट सकती है। परंतु वह आधार भी बहुत मजबूत नहीं था। ऐसे में समग्र नीतिगत लक्ष्य उच्च स्थायी वृद्धि हासिल करने का होना चाहिए। हालांकि इस संदर्भ में मौद्रिक नीति से यह आशा नहीं है कि वह वृद्धि को गति देगी। वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों में, विस्तारित अवधि तक अतिशय मौद्रिक नीति समायोजन सतत रूप से उच्च वृद्धि हासिल करने की संभावनाओं पर असर डाल सकता है।