हाल में देश में जंगलों की हालत पर सरकार ने रिपोर्ट पेश की है। इसमें जंगलों की खराब हालत और इसके सिकुड़ने के अलावा एक और पहलू है, जो काफी चिंताजनक है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जंगल की हदों में व्यावसायिक मकसद से लगाए गए पेड़ों और बाग-बगीचों को भी शामिल किया गया है। जंगल संरक्षण कानून, 1980 के तहत चाय-कॉफी बगानों और रबर के पेड़ों को जंगल के दायरे में शामिल नहीं करने का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद रिपोर्ट में इसे नजरअंदाज किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 20.6 फीसदी हिस्से को जंगल माना गया है, जो इस बाबत तय लक्ष्य 33 फीसदी से काफी कम है।
इससे हालात की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जंगलों के मामले में एक अन्य चिंताजनक पहलू यह है कि 1980 में जंगल संरक्षण कानून के अमल में आने के बाद से जंगल की सीमाओं में बढ़ोतरी नहीं के बराबर हुई है। उस वक्त कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 19 फीसदी हिस्सा जंगल था।
जहां तक घने जंगलों की बात है, तो इसके कुल क्षेत्रफल का 10.12 से ज्यादा नहीं होने का अनुमान है। बाकी को हरित इलाके के दायरे में रखा जा सकता है। जंगलों में हो रही कमी पर्यावरण और यहां रहने वाले लोगों की आजीविका के लिए खतरनाक संकेत है। इसके नकारात्मक प्रभाव हमें पहले से ही देखने को मिल रहे हैं। मसलन पर्यावरण को हो रहा नुकसान, ग्लेशियरों का सिकुड़ना और नक्सलवाद की वजह से उपजी कानून-व्यवस्था की समस्या।
‘जंगल’ को तय करने में अपनाए गए मापदंड से कई समस्याएं पैदा होंगी और जमीन की उपलब्धता पर एक नया विवाद छिड़ जाएगा। चूंकि किसी भी जमीन को जंगल घोषित करने के साथ ही किसी भी अन्य गतिविधि के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता, लिहाजा जंगल की सुनिश्चित परिभाषा तय करना सबसे अहम है। हालांकि यह बात सच है कि यह परिभाषा तय करना काफी मुश्किल है और इस बाबत ऐसा मानदंड नहीं है, जो पूरी दुनिया में स्वीकार्य हो। बहरहाल, इस बाबत मौजूद कुछ नियमों के जरिये जंगल के लिए मानदंड तय करने की कोशिश की गई है।
फिलहाल जंगल के सीमांकन लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानदंडों को आधार बनाया जाता है। इसमें जंगल को शब्दकोश के मुताबिक तय किया गया है। जंगल की परिभाषा को तय करने के लिए हाल में वन मंत्रालय ने एक गैरसरकारी संगठन के साथ मिलकर पहल की थी, लेकिन यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी। ‘
जंगल’ की इस उलझन को सुलझाने के लिए व्यापक मापदंड तैयार करने की जरूरत है। इसमें अगर सख्त शर्तों का पालन करना संभव नहीं हो तो कम से कम हरियाली, पर्यावरण और धरती पर मौजूद जीवधारियों की सुरक्षा को जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके बाद जंगल संबंधी आंकड़ों को दुरुस्त करने का काम शुरू करना होगा।