लोगों में 5जी तकनीक को लेकर खुशी एवं उम्मीदें केवल मोबाइल ऐप्लिकेशंस (ऐप) और एक नए अनुभव के इर्द-गिर्द घूम रही हैं। बतौर उपयोगकर्ता (यूजर) लोगों की दिलचस्पी केवल स्मार्टफोन एवं कंप्यूटर जैसे उपकरणों तक सीमित रहती है लेकिन वस्तु या सेवा की आपूर्ति के लिए एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक तंत्र (नेटवर्क) की जरूरत पड़ती है। मसलन शिक्षा, कौशल विकास, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य सेवाओं, परिवहन, खुदरा, यात्रा या मनोरंजन के लिए आपूर्तिकर्ता और प्राप्तकर्ता दोनों के पास पर्याप्त ढांचा या नेटवर्क उपलब्ध होना चाहिए। अफसोस की बात है कि इस मामले में हमारी बुनियाद कमजोर है। त्रुटियों का निपटारा करने में अक्सर होने वाली देरी, भुगतान में देरी और ‘प्लंबिग’ (दूरसंचार क्षेत्र में उपभोक्ताओं तक संपर्क सूत्र तैयार करने की प्रक्रिया) से जुड़ी कठिनाइयां सर्वाधिक परेशान करती हैं।
देश में एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली स्टार्टअप इकाइयों (यूनिकॉर्न) की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आशावादी लोग इस प्रगति को हमारी पारंपरिक सोच से पेश आने वाली कठिनाइयों के समाधान के तौर पर देखते हैं। व्यवहारिकता को अधिक अहमियत देने वाले लोगों का मानना है कि इन इकाइयों को मुनाफा कमाकर यह साबित करना होगा कि उनका उत्साह क्षणिक नहीं है और वे लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगी। इसमें कोई शक नहीं कि इनमें कई स्टार्टअप केंद्रीकरण (एग्रीगेशन) एवं विभिन्न जरूरतों तक पहुंच आसान बनाकर हमारा जीवन सरल बना रही हैं। केवल यह बात खटकती है कि स्टार्टअप बाजार में पारंपरिक प्रणाली को नुकसान पहुंचाती हैं और उनकी पहुंच ज्यादातर सेवा क्षेत्र तक ही सीमित हैं। इनमें काफी कम दवा/जैव तकनीक और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में हैं।
ऐसी सेवाएं सेवाएं ढांचे और उपकरण एवं प्रणाली के विभिन्न स्तरीय संगठन पर निर्भर करती हैं। इस संरचना को तकनीक बाजार ‘टेक्नोलॉजी’ स्टेक कहता है। टेक्नोलॉजी स्टेक में वे सभी तकनीकी सेवाएं आती हैं जो किसी ढांचे या ऐप्लिकेशन को चलाने में इस्तेमाल होती हैं। ज्यादातर यूजर ऐप का इस्तेमाल करते हैं और इससे अधिक जानने या समझने में उनकी रुचि नहीं होती है। कुछ लोगों को इन स्तरों से भी अधिक जैसे परिचालन प्रणाली, उपकरणों की तकनीकी खूबियां और संचार सेवाएं मुहैया करने वाली कंपनियों की जानकारियां होती हैं।
काफी कम लोग दूरसंचार कंपनियों के टेक्नोलाजी स्टेक या बैक-एंड के बारे में जानते हैं या इसे समझने की कोशिश करते हैं। यहीं से हमारी दिक्कत शुरू होती है क्योंकि किसी सुविधा के शुरू होने से पहले होने वाली मशक्कत को समझना बेहद जरूरी है। किसी सघन आबादी या व्यावसायिक क्षेत्रों में नई तार (केबल) बिछाना काफी मुश्किल और महंगा होता है। तार बिछाने के मुकाबले वायरलेस लिंक (संपर्क सूत्र) आसान एवं सस्ते हो सकते हैं। ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में भी यही बात लागू होती है जहां मुनाफा कमाने की संभावनाएं सीमित रहती हैं। नेटवर्क प्रणाली में यूजर के उपकरण टावर या एक्सेस पाइंट जुड़े से जुड़े होते हैं। ये एक्सेस पाइंट सेल्युलर या वाई-फाई उपकरण होते हैं। सेल्युलर या वाईफाई उपकरण मिडल-माइल में समेकन केंद्रों से बैकहॉल (दूरसंचार क्षेत्र में मुख्य नेटवर्क को जोडऩे वाला लिंक) के जरिये जुड़े होते हैं। वहां से फिर कोर नेटवर्क तक संपर्क साधा जाता है। दूरसंचार इंटरनेट उद्योग में मिडल-माइल दूरसंचार तंत्र का वह भाग होता है जो एक नेटवर्क परिचालक के कोर नेटवर्क को स्थानीय नेटवर्क संयंत्र से जोड़ता है।
शहरी क्षेत्रों में कई लोगों के पास उनके एक्सेस पाइंट तक फाइबर कनेक्शन होता है। ये एक्सेस पाइंट वाई-फाई या सेल्युलर बेस स्टेशन हो सकते हैं। कुछ लोगों के पास कोऐक्सियल या इथरनेट केबल होता है जो एक्सेस पाइंट से जुड़े होते हैं। इसके बाद एक वायरलेस कनेक्शन होता है, जो समेकन केंद्र तक जुड़ा होता है। समेकन केंद्र फाइबर कोर के साथ जुड़ता है। हम इन लिंक या संपर्क साधन के मामले में कमजोर हैं। शुरू में भारत के नीति निर्धारकों को लगा कि ये लिंक बाजार ही उपलब्ध करा देगा। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं मिलने के बावजूद हमारे नीति निर्धारक और नियामक इसकी उम्मीद में हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहे। उन्होंने इस पहलू पर गौर नहीं किया कि भारत में हरेक घर तक केबल बिछाना आसान नहीं है।
आगे नहीं बढऩे की मानसिकता
भारत में 5 गीगाहट्र्ज वाई-फाई बैंक शुरू करने में नौ वर्ष लग गए। यह काम 2009-10 में पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन यह 2018 में संभव हो पाया। तब तक 5 गीगाहट्र्ज वाई-फाई उपकरणों का भारत में पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था और इसकी एकमात्र वजह थी आगे नहीं बढऩे की मानसिकता। इस तरह, ये वाई-फाई हॉटस्पॉट के लिए इस्तेमाल नहीं पा रहे थे। यही वजह है कि देश में गिने-चुने हॉटस्पॉट ही हैं। इस दिशा में काम करने में सरकार को नीतियां तैयार करने और उन्हें लागू करने में सार्थक प्रयासों के अलावा कुछ नहीं करना पड़ता।
कुछ परिचालन एवं प्रशासनिक खर्च बढ़ गए होते लेकिन पूंजी निवेश की जरूरत नहीं पड़ती। हमारे पास न तकनीक की कमी थी, न पूूंजी की या फिर संसाधन एवं संगठन की। हमारी आगे नहीं बढऩे या सोचने की मानसिकता इसकी मुख्य वजह रही। इस सोच की वजह से एक के एक बाद सरकारों ने ये बाधाएं दूर करने में तत्परता नहीं दिखाई। दरअसल इरादतन पाबंदी लगाने वाली हमारी सोच हमें कामयाबी की ओर नहीं ले गई। क्या वर्ष 2010 में सीएजी रिपोर्ट से आई उथलपुथल ने इन नीतिगत बाधाओं को और गंभीर बना दिया? संभवत: हां और सकारात्मक स्पेक्ट्रम नीतियों पर इसका असर लंबे समय तक दिखा है। जरा सोचिए क्या केवल हम इसलिए आगे नहीं बढ़ सकते क्योंकि हमारे पास नेटवर्क पूरा करने या इसे एक दूसरे के साथ जोडऩे के लिए अधिक बदलावों की जरूरत होगी?
अब क्या किया जाए?
हमारे पास 5 गीगाहट्र्ज वाई-फाई के लिए सही नीतियों की जरूरत होगी। हमें अपने यूजर को उच्च गति वाले वायरलेस नेटवर्क (6 और 60 जीएचजेड) तक पहुंच उपलब्ध करानी होगी। इसके अलावा 5जी के साथ ही दूरसंचार कंपनियों के पास उच्च माध्यमिक बैंड (60 गीगाहट्र्ज 1.5 किलोमीटर तक, 70-80 गीगाहट्र्ज 4.5 किलोमीटर तक) होना चाहिए। इनके बिना दूरसंचार तंत्र को एक दूसरे से जोडऩे का काम पूरा नहीं हो पाएगा और हमारी क्षमताएं अधूरी ही रहेंगी।
हमें कुछ बदलाव करने होंगे। मसलन, लाइसेंस प्राप्त कंपनियों को तेजी से और कम खर्च पर नेटवर्क क्षमता हासिल करने के लिए हमें उन्हें बैकहॉल के लिए 60 गीगाहट्र्ज और 70-80 गीगाहट्र्ज के इस्तेमाल की अनुमति देनी होगी। इनके अलावा वाई-फाई यूजर एक्सेस के लिए 6 गीगाहट्र्ज और 60 गीगाहट्र्ज की अनुमति देनी होगी। विकासशील देश कंसोॢटयम ओनरशिप और सरकारी भागीदारी के साथ स्पेक्ट्रम एवं रेडियो एक्सेस नेटवक्र्स सहित एक दूसरे का ढांचा इस्तेमाल कर इस काम को अंजाम दे सकते हैं। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक हम जीवन यापन की जरूरतों एवं सुविधाओं के लिए पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाएंगे। नेटवर्क तैयार करना या हरेक जगह केबल बिछाना हमारे लिए व्यावहारिक नहीं होगा और वित्तीय लिहाज से भी यह उचित नहीं होगा। यह उसी तरह होगा जैसे बिजली एवं पानी की सुविधा सुनिश्चित किए बिना शहर, विनिर्माण केंद्र तैयार करना।
तकनीकी कमियां दूर करने की दिशा में कानून बनाना एवं निर्णय लेना पहला कदम होगा। इन तकनीकों का लाभ लेने के लिए एक जुट होना और सार्वजनिक हित में नीतियों का क्रियान्वयन दूसरा कदम होगा। इसके लिए बुनियादी ढांचा साझा करने के लिए कंसोर्टियम को एक साथ लाने और इस्तेमाल के आधार पर स्पेक्ट्रम के लिए भुगतान करने की व्यवस्था करनी होगी। जब हम हमारे नीति निर्धारक स्वयं लादी गई सीमाओं को नहीं समझेंगे और इन्हें दूर करने की कोशिश नहीं करेंगे, साथ ही उच्च गति वाले वायरलेस व्यवस्था को व्यावहारिक रूप से लागू नहीं करेंगे तब तक लोग स्वयं को एक बेहतर जीवन एवं उन्नत कार्य शैली के लिए तैयार नहीं कर पाएंगे।