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बजट पर इक्विटी निवेशकों और परिवारों की धारणा में बड़ा अंतर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 8:26 AM IST

देश में केंद्रीय बजट पेश करने को लेकर काफी चर्चा और हो-हल्ला होता है। ऐसा लगता है कि बाजारों और परिवारों को सरकार के लीक से हटकर बजट देने की अत्यधिक उम्मीद होती हैं। वित्तीय बाजार के निवेशक अपनी संपत्ति पर बजट के असर को लेकर दांव लगाते हैं और परिवारों को बड़ी उत्सुकता से कर राहत का इंतजार होता है।
आम तौर पर महत्त्वपूर्ण लोग मीडिया के जरिये बजट को रेटिंग देते हैं। लेकिन बजट घोषणाओं की लोकप्रियता के आकलन के कुछ ज्यादा बेहतर तरीके हैं। निवेशक बजट को ज्यादा ईमानदारी से रेटिंग तब देते हैं, जब वे अपने धन के साथ मत देते हैं। निवेशक साफ तौर पर बजट से खुश थे। बजट के दिन बीएसई-30 कंपनियों का मूल्य पांच फीसदी और निफ्टी-50 कंपनियों का मूल्य 4.7 फीसदी बढ़ा। इन कंपनियों का मूल्य किसी एक औसत दिन में दो फीसदी से अधिक चढऩा असामान्य है। तुलनात्मक रूप से छोटी निफ्टी-नेक्स्ट-50 कंपनियों का मूल्य करीब तीन फीसदी और ज्यादा व्यापक बीएसई 500 कंपनियों का मूल्य 4.2 फीसदी चढ़ा। आशावादी रुख व्यापक था। अत्यधिक व्यापक 2,700 कंपनियों  पर आधारित सीएमआईई का कुल शेयर कीमत सूचकांक बजट के दिन 3.4 फीसदी बढ़ा।
यह केवल एक झटके जैसा उत्साह नहीं था। बजट के एक सप्ताह बाद भी इन कंपनियों पर आधारित सभी इक्विटी सूचकांक अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। बीएसई-30 में 9.6 फीसदी, निफ्टी-50 में 9.5 फीसदी, निफ्टी नेक्स्ट-50 में 6.5 फीसदी, बीएसई-500 में 8.6 फीसदी और कोस्पी में 7.6 फीसदी बढ़त बनी हुई थी। वित्त मंत्री ने इक्विटी बाजार के निवेशकों के लिए अच्छे कदम उठाए हैं। उन्होंने परिवारों के लिए कितना बेहतर काम किया? इसकी पड़ताल का एक तरीका उपभोक्ता रुझान सूचकांक को जांचना है। हम इस उद्देश्य के लिए सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वेक्षण से पैदा उपभोक्ता रुझान के साप्ताहिक सूचकांकों का इस्तेमाल करते हैं।
केंद्रीय बजट पेश किए जाने के एक पूरे सप्ताह बाद उपभोक्ता रुझान सूचकांक 4.2 फीसदी लुढ़का, जबकि इसके विपरीत स्टॉक एक्सचेंजों पर बजट की प्रतिक्रिया में इक्विटी बाजार के मूल्यांकन में करीब नौ फीसदी बढ़ोतरी हुई। परिवार बजट से खुश नहीं थे। उन्होंने इस पर अपनी निराशा जताई है। उपभोक्ता रुझान सूचकांक में दो घटक शामिल हैं। दोनों बजट पेश किए जाने के बाद के सप्ताह में गिरे हैं। मौजूदा आर्थिक स्थिति सूचकांक 3.5 फीसदी लुढ़का और उपभोक्ता उम्मीद सूचकांक 4.6 फीसदी फिसला। उम्मीदों में ज्यादा गिरावट पर गौर किया जाना चाहिए। हम इन उम्मीदों को लेकर नीचे चर्चा कर रहे हैं।
बजट भविष्य के बारे में होता है। यह भविष्य में सरकारी खर्च, कर और नई सरकारी योजनाओं के बारे में होता है। उपभोक्ता उम्मीद सूचकांक परिवार की अपने भविष्य को लेकर धारणा को भी दर्शाता है। मौजूदा मामले में सरकार द्वारा पेश बजट के आलोक में उनके कल्याण को दर्शाता है। उपभोक्ता उम्मीद सूचकांक तीन सवालों पर आधारित है।
इनमें से एक सवाल यह है कि क्या आपको लगता है कि आगामी एक वर्ष में आपके परिवार की सालाना आय पिछले साल के मुकाबले बेहतर होगी, कम होगी या समान रहेगी? केवल 6.7 फीसदी परिवारों ने कहा कि उन्हें अगले एक साल की अवधि के दौरान अपनी आय में सुधार की उम्मीद है। यह पहले के समान स्तर था क्योंकि बजट से पहले के सप्ताह में भी केवल 6.7 फीसदी लोगों ने समान प्रतिक्रिया दी थी। साफ तौर पर बजट से परिवारों के रुझान में कोई सुधार नहीं आया। वहीं, 45.8 फीसदी ने कहा कि बजट के बाद उनका अनुमान है कि अगले एक साल में उनकी आय कम होगी। अपनी आय में कमी के आसार जताने वाले परिवारों का अनुपात बढ़ा है, जो बजट से पहले के सप्ताह में 42.3 फीसदी था। शेष 47.5 फीसदी ने अगले एक साल में अपनी आय में कोई बदलाव नहीं होने का अनुमान जताया।
पेश किए जाने के बाद के एक सप्ताह में बजट परिवारों की धारणा बिगडऩे की वजह हो भी सकता है और नहीं भी। लेकिन उसके बाद रुझान बिगड़ा है। अर्थव्यवस्था को लेकर परिवारों का रुझान बिगड़ा है। ऐसा लगता है कि परिवारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन उनके खुद के प्रदर्शन से काफी खराब रहेगा। अर्थव्यवस्था को लेकर दो सवाल हैं। पहला देश में अगले 12 महीनों के दौरान वित्तीय और करोबारी स्थितियों के बारे में परिवारों की राय पूछता है। आगामी वर्ष में वित्तीय और कारोबारी स्थितियां सुधरने की उम्मीद रखने वाले परिवारों का अनुपात बजट से पहले के सप्ताह में बहुत नीचे 5.5 फीसदी था, जो बजट के बाद के सप्ताह में घटकर 4.8 फीसदी पर आ गया। स्थितियां खराब होने की धारणा रखने वालों का अनुपात बजट से पहले 44.9 फीसदी था। यह बजट के बाद बढ़कर 46.5 फीसदी पर पहुंच गया। वहीं कोई बदलाव नहीं होने की धारणा रखने वाले परिवारों का अनुपात 49.7 फीसदी से मामूली घटकर 48.7 फीसदी पर आ गया।
पांच साल की अवधि को को लेकर भी उम्मीदें अगर बदतर नहीं तो उतनी ही खराब जरूर हैं। बजट से पहले 7.1 फीसदी परिवार यह मानते थे कि अर्थव्यवस्था पांच साल की अवधि के दौरान सुधरेगी। बजट के बाद केवल 5.3 फीसदी परिवार ही ऐसा मानते हैं। अर्थव्यवस्था में पांच साल की अवधि के दौरान कमजोरी आने की सोच रखने वाले परिवारों का अनुपात बजट से पहले 33.9 फीसदी था, जो बजट के बाद 35.5 फीसदी हो गया। संभवतया इक्विटी बाजार के निवेशकों और परिवारों की धारणा में बड़ा अंतर उभरते ‘के’-आकार के सुधार का एक अन्य प्रतिबिंब है।

First Published : February 11, 2021 | 11:53 PM IST