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आम बजट में खपत बढ़ाने पर दांव

आयकर कटौती सही दिशा में उठाया गया कदम है लेकिन निजी क्षेत्र का पूंजीगत व्यय नहीं बढ़ा तो वृहद आर्थिक चुनौती बढ़ सकती है। बता रहे हैं

Published by
जनक राज   
Last Updated- February 12, 2025 | 11:27 PM IST

निजी खपत को बढ़ावा देने और राजकोषीय अनुशासन कायम रखने के इरादे से वर्ष 2025-26 के आम बजट में व्यक्तिगत आयकर में राहत प्रदान की गई है, जिसकी प्रतीक्षा बहुत समय से की जा रही थी। अर्थव्यवस्था में इस समय धीमापन आ गया है और ऐसे में वृहद आर्थिक स्थिरता बनाए रखने तथा राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति के बीच तालमेल बढ़ाने के लिहाज से यह अच्छा है।

बजट में 4.4 फीसदी सकल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा गया है, जो 2021 में तय 4.5 फीसदी के लक्ष्य से बेहतर है। बजट में संकेत दिया गया है कि राजकोषीय स्थिरता के लिए अब ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात का इस्तेमाल किया जाएगा। राजकोषीय नीति का वक्तव्य संकेत देता है कि सरकार 2026-27 से 2030-31 के बीच राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए प्रतिबद्ध है और वह सुनिश्चित करेगी कि मार्च 2031 तक ऋण-जीडीपी अनुपात 50 फीसदी (1 फीसदी कमीबेशी के साथ) पर आ जाए। यह बदलाव स्वागतयोग्य है। साथ ही यह बात भी उत्साह बढ़ाने वाली है कि सरकार ऋण-जीडीपी अनुपात घटाने के लिए राजकोषीय घाटे में और भी कमी लाएगी। भविष्य में बाहर से आने वाले झटकों से निपटने के लिए राजकोषीय गुंजाइश बनाने के लिहाज से यह जरूरी है। लेकिन ऋण-जीडीपी अनुपात के लिए कुल राजकोषीय संतुलन के बजाय प्राथमिक संतुलन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अस्थिर दर वाले माहौल में इससे ब्याज भुगतान अनिश्चित होने का जोखिम खत्म हो जाता है।
चूंकि बजट में अलग-अलग परिस्थितियों में ऋण-जीडीपी अनुपात के अनुमान सकल राजकोषीय घाटे में कमी के आधार पर लगाए गए हैं, इसलिए ब्याज भुगतान की स्थिति अप्रत्याशित हो सकती है। अगर ब्याज दरें तेजी से बढ़ीं तो अनुमानित ऋण-जीडीपी अनुपात बिगड़ सकता है बशर्ते चुकाए गए अधिक ब्याज की भरपाई अन्य मदों पर खर्च घटाकर न की जाए। मगर यह भी चुनौती भरा हो सकता है क्योंकि व्यय का बड़ा हिस्सा पहले से तय देनदारियों में जाता है। दूसरे शब्दों में ऋण-जीडीपी अनुपात का अनुमानित दायरा इस बात पर निर्भर करता है कि ब्याज दरें अगले छह साल तक उतनी ही बनी रहें। ब्याज दरें बढ़ीं तो अनुमानित ऋण-जीडीपी अनुपात के लिए बड़ा जोखिम हो जाएगा।

बजट में व्यक्तिगत आयकर में राहत देकर सही किया गया है। दुनिया भर में अनिश्चितता बढ़ रही है और निजी पूंजीगत व्यय जोर पकड़ता नहीं दिख रहा है, इसलिए निजी खपत को बढ़ावा देने की बहुत जरूरत थी। लेकिन इससे केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय घट जाएगा, जो चालू वित्त वर्ष में बजट अनुमान से काफी कम रहा है। इसलिए 2025-26 के लिए 11.2 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय का जो लक्ष्य रखा गया है वह 2024-25 के संशोधित अनुमान 10.2 लाख करोड़ रुपये से तो ज्यादा है मगर चालू वित्त वर्ष के लिए 11.1 लाक करोड़ रुपये के बजट अनुमान के लगभग बराबर ही है। हो सकता है कि व्यक्तिगत आयकर में भारी राहत मिलने के बाद भी शेयर बाजार इसी वजह से बजट के दिन खामोश रहा था।

कॉरपोरेट कर संग्रह के मोर्चे पर निराशा बनी हुई है और कुल राजस्व संग्रह में उसकी हिस्सेदारी लगातार घटती जा रही है। 2018-19 में हिस्सेदारी 42.7 फीसदी थी, जो 2024-25 के संशोधित अनुमानों में घटकर केवल 31.7 फीसदी रह गई और 2025-26 के बजट अनुमान में आंकड़ा 31.6 फीसदी ही रह गया है। सितंबर 2019 में कॉरपोरेट कर घटाने का भी खास फायदा नहीं हुआ। उम्मीद है कि निजी खपत को गति मिलने से निजी पूंजीगत व्यय भी बढ़ेगा। केंद्र सरकार ने बीते कुछ सालों में सार्वजनिक पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ किया है। अब पूंजीगत व्यय करने की बारी निजी कंपनियों की है। अगर वे ऐसा करने में नाकाम रहीं तो वृहद आर्थिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी।

बजट में दालों के लिए छह साल के आत्मनिर्भरता मिशन का प्रस्ताव भी है, जिसमें अरहर, उड़द और मसूर पर खास जोर दिया जाना है। हमारे खाद्य बास्केट में दालें सबसे ज्यादा अस्थिर रहती हैं और खाद्य महंगाई को संभालने में ये अक्सर चुनौती बन जाती हैं। भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। मगर उत्पादन में कमी होने पर दालों की कीमतें अचानक चढ़ जाती हैं। इसकी वजह यह है कि भारत में जो दालें ज्यादा खाई जाती हैं उनकी खेती में दुनिया में कहीं और अधिक नहीं होती। कुछ किस्में म्यांमार, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में जरूर उगाई जाती हैं। इसलिए दालों की आपूर्ति घटने पर आयात का विकल्प भी कम ही होता है। ऐसी सूरत में प्रस्तावित आत्मनिर्भरता मिशन कारगर उपाय हो सकता है। अगर भारत मध्यम अवधि में दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेता है तो खाद्य मुद्रास्फीति को ज्यादा कारगर तरीके से काबू में किया जा सकेगा।

2025-26 के बजट में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए आवंटन काफी बढ़कर 30.5 फीसदी होने का अनुमान लगाया गया है मगर पिछले बजट अनुमान और इस बजट अनुमान के बीच इजाफा केवल 7.6 फीसदी है। संविधान के अनुच्छेद 282 के अधीन आने वाला इस तरह का आवंटन दो कारणों से बड़े विवाद में रहा है। पहला, अनुच्छेद 282 के तहत धन का प्रावधान इस तरह किया गया है कि राज्य उसे अपनी मर्जी से खर्च नहीं कर पाते। केंद्र प्रायोजित योजनाओं में इतना लचीलापन या गुंजाइश भी नहीं रखी जाती कि राज्य उनमें कोई नया प्रयोग कर सकें और उन्हें अपने अनुकूल ढाल सकें। दूसरा, केंद्र सरकार इन योजनाओं का उपयोग उन क्षेत्रों में दखल देने के लिए करती है, जो राज्य के अधिकार में आते हैं।

इनके उलट अनुच्छेद 270 के तहत वित्त आयोग जो धन देता है, उसके साथ कोई शर्त नहीं होती और राज्य उसे अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं। लेकिन चिंता की बात है कि राज्यों को मिलने वाले शर्त वाले और शर्त मुक्त धन (अनुच्छेद 275 के तहत मिलने वाला सहायता अनुदान भी शामिल) का अनुपात 2025-26 में बढ़कर 34.8 फीसदी हो जाएगा। पिछले चार साल से यह घट रहा था और 2020-21 के 49.3 फीसदी से कम होकर 2024-25 में 29.6 फीसदी रह गया था।

कुल मिलाकर बजट ने घरेलू खपत में आ रही सुस्ती की आसन्न चुनौती को हल करने के लिए उपाय शुरू किए हैं और साथ में राजकोषीय समझदारी भी रखी है, जो वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए बेहतर कदम होगा।

(लेखक सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस, नई दिल्ली में सीनियर फेलो हैं)

First Published : February 12, 2025 | 11:27 PM IST