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बैंकिंग साख: डिजिटल भुगतान- UPI, AePS और PPI से मिल रहा आर्थिक सशक्तिकरण को बल

मई 2025 में, UPI के माध्यम से 18.68 अरब लेनदेन किए गए, जिनका कुल मूल्य ₹25.14 लाख करोड़ था। AePS के जरिए 10.5 करोड़ लेनदेन हुए, जिनका मूल्य ₹2.87 लाख करोड़ रहा। बता रहे हैं

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- July 10, 2025 | 10:50 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक ने जून के आखिरी हफ्ते में आधार के जरिये भुगतान प्रणाली (एईपीएस) को मजबूत करने के दिशानिर्देश जारी किए। हम सब यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) को तो जानते हैं मगर एईपीएस क्या है? यह यूपीआई का बड़ा भाई है, जिसे केंद्र सरकार यूपीआई से पांच साल पहले 2011 में लाई थी। बैंक के जरिये चलने वाले इस मॉडल में आधार क्रमांक भरकर ऑनलाइन लेनदेन या माइक्रोएटीएम टर्मिनल पर लेनदेन किया जा सकता है।

यूपीआई में मोबाइल फोन के जरिये किसी भी व्यक्ति या वित्तीय संस्थान से पैसे का तत्काल लेनदेन किया जा सकता है। इसे भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने तैयार किया था और इसमें एक ही मोबाइल ऐप्लिकेशन पर कई बैंक खाते जोड़े जा सकते हैं। यूपीआई और एईपीएस ने देश में भुगतान का तरीका पूरी तरह बदल दिया है। यूपीआई शहरों में बहुत लोकप्रिय है तो एईपीएस गांव-कस्बों में ज्यादा प्रचलित है। मई 2025 में यूपीआई पर 1,868 करोड़ लेनदेन में 25.14 लाख करोड़ रुपये का आदान-प्रदान हुआ। उसी महीने एईपीएस पर 2.87 लाख करोड़ रुपये के 10.5 करोड़ लेनदेन हुए। अगर शेष रकम की जांच, मिनी स्टेटमेंट जैसे गैर-वित्तीय काम भी जोड़ लें तो एईपीएस पर 20.8 करोड़ से अधिक लेनदेन बैठेंगे।

एनपीसीआई के ही एईपीएस के जरिये आधार क्रमांक और अंगूठे की छाप आदि की मदद से नकद निकासी, नकद जमा, एक खाते से दूसरे खाते में पैसे भेजना, मिनी स्टेटमेंट निकालना, खाते में बची रकम पता करना जैसे काम हो सकते हैं। लेकिन यहां धोखेबाजों की चिंता खड़ी हो गई है, जो ग्राहक की पहचान और जानकारी चुराकर उसे वित्तीय चपत लगा देते हैं। जुलाई 2023 में राज्य सभा में ‘एईपीएस के जरिये लेनदेन और वित्तीय धोखाधड़ी’ से जुड़े एक सवाल पर वित्त मंत्री ने बताया था कि जनवरी 2019 से मई 2023 के बीच इस पर 10,247 करोड़ रुपये के लेनदेन हुए, जिसमें से 585.79 करोड़ रुपये धोखेबाजों ने झटक लिए। एईपीएस को सुरक्षित बनाने के लिए एनपीसीआई ने धोखाधड़ी के जोखिम से बचाने वाली प्रणाली तैयार की है, जो धोखाधड़ी होने पर तुरंत ग्राहक की शिकायत का समाधान करती है। यह प्रणाली बैंकों को मुफ्त दी जा रही है।

रिजर्व बैंक एईपीएस टचपॉइंट ऑपरेटरों (एटीओ) को जोड़ने की प्रक्रिया दुरुस्त कर धोखाधड़ी से बचने की प्रणाली मजबूत करना चाहता है। लेनदेन में बैंक और एटीओ शामिल रहते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक चाहता है कि बैंक एपीईएस के लिए एटीओ को जोड़ने से पहले पूरी जांच करें और उनका केवाईसी ब्योरा समय-समय पर अपडेट करते रहें। एटीओ तीन महीने तक निष्क्रिय रहे तो बैंक को उसका केवाईसी फिर अपडेट करना होगा। लेनदेन निगरानी प्रणाली के जरिये बैंकों को एटीओ की गतिविधियों पर भी लगातार नजर रखनी होती है और उनके कारोबार से जुड़े जोखिमों के मुताबिक पैमाने तैयार करने होते हैं। एटीओ कहां है और कितना लेनदेन कर रहा है, इसका पूरा आंकड़ा बैंक के पास होना चाहिए और जालसाजों की नई तिकड़मों से निपटने के लिए उसे एटीओ के वास्ते पैमाने भी बदलते रहना होगा।

लेनदेन में कॉरपोरेट बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट्स या कॉरपोरेट बीसी भी होते हैं, एटीओ और बैंक के बीच की कड़ी बनते हैं। इनके बारे में रिजर्व बैंक ने कुछ भी नहीं कहा है। एटीओ की पड़ताल बैंक को ही करनी होती है। केंद्रीय बैंक को कॉरपोरेट बीसी के लिए भी कायदे बनाने चाहिए। अभी करीब 23 लाख एटीओ और 900 कॉरपोरेट-बीसी काम कर रहे हैं मगर ज्यादातर कारोबार एक दर्ज से भी कम कॉरपोरेट-बीसी करते हैं। सुदूर और बैंक शाखाओं से रहित इलाकों में सेवाएं देने के लिए 2006 में शाखा से जुड़े बीसी लाए गए और ऐसे करीब 2 लाख बीसी काम कर रहे हैं। अभी तक एटीओ का कामकाज बीसी की तर्ज पर ही था मगर जनवरी 2026 में नए नियम लागू होने के बाद तस्वीर बदल जाएगी। नए नियमों से ग्रामीण क्षेत्रों में भुगतान प्रणाली मजबूत होगी मगर इनके विस्तार के लिए रिजर्व बैंक को काम करना होगा। अभी एपीईएस से निजी बैंक और पेमेंट्स बैंक ही ज्यादा जुड़े हैं। सरकारी बैंक बहुत कम हैं।

एटीएम से महीने में पांच लेनदेन मुफ्त रखे गए हैं, जिनका खर्च बैंक ही उठाते हैं। यह खर्च देखकर सरकारी बैंक एटीओ के लिए लेनदेन की संख्या तय कर देते हैं और उनके मुकाबले पारंपरिक बीसी मॉडल को अधिक पसंद करते हैं। इसलिए ग्राहक एटीओ पर हर तरह के लेनदेन नहीं कर सकते और उन्हें बीसी पर भी जाना होगा। ऐसे में ग्राहकों को सुविधा देने का एपीईएस का मकसद पूरा नहीं हो सकता।

एईपीएस के लिए ग्राहक का बैंक उस बैंक को 0.5 फीसदी (अधिकतम 15 रुपये) इंटरचेंज शुल्क चुकाता है, जहां पैसा जा रहा होता है। एटीएम पर लेनदेन हो तो खाते वाला बैंक दूसरे बैंक को 19 रुपये चुकाता है। एईपीएस पर हर लेनदेन में ग्राहक, एटीओ, दोनों बैंक और कॉरपोरेट बीसी शामिल होते हैं। इनमें से हर किसी को टर्मिनल लगाने और नकद संभालने में खर्च उठाना पड़ता है। ग्राहक नकद निकालने और जमा करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं मगर कुछ ही बैंक दूसरे बैंक में रकम जमा करने देते हैं। रिजर्व बैंक को एपीईएस के जरिये किसी अन्य व्यक्ति के बैंक खाते में रकम जमा करने की इजाजत भी देनी चाहिए।

रिजर्व बैंक पेमेंट एग्रीगेटरों के लिए भी नए कायदे बना रहा है, जो ग्राहकों, कारोबार तथा वित्तीय संस्थाओं के बीच इंटरमीडियरी के तौर पर काम करते हैं और कारोबारियों को ऑनलाइन भुगतान लेने की सुविधा देते हैं। उसने 32 पेमेंट एग्रीगेटरों को काम करने की इजाजत दी है। रिजर्व बैंक उन्हें और कारगर बनाने के मकसद से क्यूआर कोड के जरिये ग्राहक के लिए रकम निकालने की इजाजत दे सकता है। ऐसे में एग्रीगेटर माइक्रो एटीएम की तरह काम कर सकते हैं।

अब भ्रम इस बात पर है कि प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (पीपीआई) क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। कुछ बैंकों, एक स्मॉल फाइनैंस बैंक, एक बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी और एमेजॉन पे, मोबिक्विक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड, स्पाइस मनी लिमिटेड, पाइन लैब्स प्राइवेट लिमिटेड समेत ऐसे करीब 50 ऑपरेटर हैं। ये ग्राहकों को मोबाइल वॉलेट और प्रीपेड कार्ड आदि देते हैं। ग्राहक वॉलेट में 2 लाख रुपये तक रख सकता है, महीने में 50,000 रुपये का नकद लेनदेन कर सकता है और हर महीने 10,000 रुपये निकाल भी सकता है।

भारत बिल पेमेंट सिस्टम ने हाल ही में कहा कि यदि वॉलेट में क्रेडिट कार्ड से पैसे डाले गए तो उनका इस्तेमाल कर्ज चुकाने में नहीं किया जा सकता। भारत बिल पेमेंट सिस्टम को एनपीसीआई की सहायक कंपनी भारत बिलपे लिमिटेड चलाती है। एक क्रेडिट कार्ड से पैसे निकालकर दूसरे क्रेडिट कार्ड का बिल नहीं चुकाया जा सकता। मगर पता कैसे चलेगा कि पैसा क्रेडिट कार्ड से आया है? मेरे हिसाब से पीपीआई वॉलेट में रखी रकम से कर्ज चुकाने देना चाहिए। लंबे समय से बकाया किस्तें बेशक नहीं चुकाने दी जाएं मगर छोटे कर्जदारों को पीपीआई वॉलेट से किस्तें चुकाने दी गईं तो माइक्रोफाइनैंस उद्योग के लिए रकम इकट्ठी करने की लागत बहुत घट जाएगी। साथ ही वित्तीय समावेशन और आर्थिक सशक्तीकरण में डिजिटल भुगतान प्रणालियों का योगदान भी बढ़ जाएगा।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published : July 10, 2025 | 10:50 PM IST