देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में कामकाज का तरीका इतना जटिल है कि कोई भी चेयरमैन 10 प्रतिशत से अधिक फर्क नहीं ला सकता। सांख्यिकी में इसे मानक विचलन (स्टैंडर्ड डिविएशन) कहते हैं। बैंकिंग उद्योग में अक्सर कहा जाता है कि यह बात बहुत मायने नहीं रखती कि चेयरमैन बहुत कुशल बैंकर हैं या और औसत दर्जे के पेशेवर हैं।
मगर दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ाई करने वाले दिनेश कुमार खारा ने संभवतः यह धारणा बदल दी है। पिछले चार वर्ष यानी वित्त वर्ष 2021 और 2024 के दौरान एसबीआई का शुद्ध लाभ 1.63 लाख करोड़ रुपये रहा, जो बैंक के पिछले 64 वर्षों में दर्ज कुल लाभ (1.45 लाख करोड़ रुपये) से अधिक है। खारा ने 7 अक्टूबर, 2020 को एसबीआई की कमान संभाली थी और वह इस सप्ताह सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
खारा से पहले चेयरमैन की जिम्मेदारी संभालने वाले रजनीश कुमार ने एसबीआई में बुनियादी मजबूती लाने का सिलसिला शुरू किया था। कुमार ने बैंक के बहीखाते पर गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का बोझ घटाने पर खास जोर दिया। उनके हाथ में बागडोर आने के फौरन बाद लगातार तीन तिमाहियों में एसबीआई को कुल 15,010 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जो अभूतपूर्व था। एक तरह से कुमार ने पिच तैयार की, जिस पर बाद में खारा ने छक्के लगाए। मगर खारा को भी कोविड-19 समेत प्रतिकूल दौरों का सामना करना पड़ा।
खारा और उनसे पहले जो हुआ उसके बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि शेयर बाजार स्टेट बैंक पर मेहरबान रहा है। 7 अक्टूबर, 2020 से लेकर पिछले सप्ताह तक इस बैंक के शेयर ने निवेशकों को 328.36 प्रतिशत रिटर्न दिया है, जबकि इसी दौरान बैंक निफ्टी का रिटर्न 122 प्रतिशत और बैंकेक्स का रिटर्न 122.9 प्रतिशत ही रहा। इस दौरान सेंसेक्स ने 103.3 प्रतिशत और निफ्टी ने 111.4 प्रतिशत रिटर्न दिया।
एसबीआई के लिए परिसंपत्ति पर रिटर्न (आरओए) सितंबर 2020 में 0.43 से बढ़कर जून 2024 में 1.10 हो गया। इस अवधि के दौरान शेयर पर रिटर्न 8.94 प्रतिशत से बढ़कर 20.98 प्रतिशत हो गया, जबकि प्रति शेयर आय (ईपीएस) 19.59 प्रतिशत से बढ़कर 76.56 प्रतिशत हो गई। यह किसी तुक्के से नहीं हो गया।
पिछले साढ़े तीन वर्ष में बैंक की परिसंपत्तियों में 10.56 प्रतिशत सालाना चक्रवृद्धि दर से इजाफा हुआ और ये 43.58 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 61.91 लाख करोड़ रुपये हो गईं। बैंक की सकल एनपीए 4.77 प्रतिशत से कम होकर कुल परिसंपत्तियों की 2.21 प्रतिशत रह गई। प्रोविजन के बाद शुद्ध एनपीए 1.23 प्रतिशत से कम होकर 0.57 प्रतिशत हो गई। इस बीच शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) 3.31 प्रतिशत से बढ़कर 3.35 प्रतिशत हो गया। एसबीआई ने दूसरे बैंकों की तरह जमा पर ब्याज दर नहीं बढ़ाई ताकि लागत काबू में रहे और
एनआईएम तथा मुनाफे पर कोई असर नहीं हो।
बैंक अपने 2.22 लाख कर्मचारियों को सेवा क्षेत्र से ज्ञान अर्थव्यवस्था (नॉलेज इकॉनमी) की तरफ भेजने का प्रयास कर रहा है। उन्हें ग्राहकों की वित्तीय जरूरतें समझकर उन्हीं के मुताबिक योजनाएं पेश करनी होंगी। इसी योजना के तहत एसबीआई समूह की सभी कारोबारी इकाइयों (बीमा, म्युचुअल फंड, हाल में शुरू संपत्ति प्रबंधन या प्रीमियर बैंकिंग आदि) को ‘पावर ऑफ वन’ पैकेज के अंतर्गत लाने की बात है। इस पर काम भी चल रहा है।
एसबीआई विभिन्न क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए धन मुहैया करने में कोई कोताही नहीं बरत रहा है मगर अब लघु एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) और कृषि पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। खारा के आने से पहले एसएमई को स्टेट बैंक का ऋण 1.13 प्रतिशत सालाना ही बढ़ रहा था मगर अब इसकी वृद्धि दर बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसी तरह कृषि ऋण की वृद्धि दर भी 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई है। खुदरा, कृषि एवं एमएसएमई ऋणों की हिस्सेदारी अब एसबीआई के ऋण खाते में बढ़कर 64.7 प्रतिशत हो गई है, जबकि निगमित ऋणों की हिस्सेदारी 35.3 प्रतिशत है।
सबसे बड़ा बदलाव डिजिटल मोर्चे पर हुआ है। एसबीआई के योनो ऐप के पंजीकृत उपयोगकर्ताओं की संख्या करीब 8 करोड़ है और कम से कम 12 करोड़ ग्राहक इंटरनेट बैंकिंग का लेन-देन के लिए इस्तेमाल करते हैं। बैंक में 90 प्रतिशत से अधिक लेन-देन डिजिटल माध्यम से होता है और नए कारोबार, क्रॉस सेलिंग तथा फीस वाली योजनाओं की बिक्री भी डिजिटल चैनलों से होती है।
बैंक डेटा एवं एनालिटिक्स के इस्तेमाल पर अधिक जोर दे रहा है और इसी का परिणाम है कि पिछले साल 1.37 लाख करोड़ रुपये के ऋण डिजिटल माध्यम से मंजूर एवं वितरित हुए। योनो 2.0 पर भी काम चल रहा है जिससे व्यक्तिगत बैंकिंग का अनुभव कई गुना और बेहतर हो जाएगा। एसबीआई ने एनालिटिक्स मॉडल के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग का भी इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
खारा ने वादे कम किए और काम ज्यादा करके दिखाए। अब वह एसबीआई की कमान सी एस शेट्टी के हाथों में दे रहे हैं। मगर शेट्टी अच्छी तरह समझते हैं कि उनके सामने कई चुनौतियां होंगी। बैंक को चालू खाते में गतिविधियां बढ़ाने के लिए सभी प्रयास करने होंगे। चालू खाते में लेन-देन अधिक होने से रकम की लागत कम हो जाती है। एसबीआई को लागत-आय का अनुपात (49.6 प्रतिशत) भी कम करने की जरूरत है, जो बड़े निजी बैंकों की तुलना में अधिक है।
एसबीआई ने बॉन्ड में 3.74 लाख करोड़ रुपये निवेश कर रखे हैं। क्या इसमें कमी कर ऋण आवंटन के लिए रकम उपलब्ध कराई जानी चाहिए? वैसे तो एसबीआई का कई श्रेणियों में दबदबा है मगर इसे धन प्रबंधन और निवेश बैंकिंग में अपनी पैठ बढ़ानी होगी।
शेट्टी वरिष्ठ पदों पर बाहर से कुछ और लोगों की नियुक्ति कर सकते हैं। खारा ने नितिन चुग (उप प्रबंध निदेशक) पर दांव खेला था और यह सफल भी रहा है। चुग बैंक का डिजिटल परिचालन देख रहे हैं। क्या सरकार को एसबीआई को केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की तरह ही नवरत्न या महारत्न का दर्जा देने पर विचार करना चाहिए, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)