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राजस्व बढ़ाने पर देना होगा ध्यान

राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि वित्त वर्ष 25 के बजट में सरकार के समक्ष व्यय के मोर्चे पर सीमित विकल्प हैं। बता रहे हैं ए के भट्‌टाचार्य

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- July 12, 2024 | 8:57 PM IST

मोदी सरकार के बीते 10 साल के कार्यकाल में बजट का प्रदर्शन कैसा रहा? इस सवाल का एक जवाब यह होगा कि उनकी तुलना पिछली सरकारों के बजट से की जाए। परंतु एक अन्य तरीका यह भी होगा कि मोदी सरकार के बजट की आपस में ही तुलना की जाए। मौजूदा संदर्भ में ऐसा करना अधिक उपयोगी हो सकता है। चूंकि मोदी सरकार में आम चुनाव के बाद कोई खास बदलाव नहीं आया है और यहां तक कि वित्त मंत्रालय में बजट बनाने वाली टीम भी कमोबेश पहले वाली है। ऐसे में यह जानना जानकारीपरक होगा कि पिछले 10 साल के बजट में बुनियादी राजकोषीय संचालन में क्या बदलाव आया है और कैसे ये 23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए जाने वाले बजट के लिए संकेतक का काम कर सकते हैं।

शुरुआत करते हैं सरकार के आकार से। वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार का कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 13.34 फीसदी था। अगले चार साल में यानी 2018-19 तक इसे कम करके जीडीपी के 12.25 फीसदी तक लाया गया। ध्यान देने वाली बात है कि यह कमी राजस्व व्यय में कमी करके की गई जबकि इन पांच साल में पूंजीगत व्यय जीडीपी के 1.5 से 1.8 फीसदी के बीच अपरिवर्तित रहा।

वर्ष 2019-20 में यानी कोविड के पूर्व वाले वर्ष और 2020-21 में यानी कोविड वाले वर्ष में सरकारी व्यय क्रमश: जीडीपी के क्रमश: 13.4 फीसदी और 17.7 फीसदी रहा और इस इजाफे को समझा जा सकता है। इसमें राजस्व व्यय में इजाफे और पूंजीगत व्यय में मामूली बढ़ोतरी का अहम योगदान था। परंतु जिस बात ने उम्मीद बंधाई वह यह थी कि सरकार ने अगले तीन साल के दौरान अपने कुल व्यय को जीडीपी के 15 फीसदी तक कम कर लिया। इस गिरावट में दो आश्वस्त करने वाली बातें थीं। सरकार का पूंजीगत व्यय तेजी से बढ़ा और वह 2020-21 में जीडीपी के 2.1 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में जीडीपी के 3.2 फीसदी तक हो गया।

इससे ऐसे समय में वृद्धि को गति देने में मदद मिली जब निजी क्षेत्र निवेश बढ़ाने की स्थिति में नहीं था। इसके साथ ही समान अवधि में राजस्व व्यय 15.5 फीसदी से कम होकर 11.8 फीसदी रह गया। यह एक सराहनीय उपलब्धि थी। न केवल सरकार का कुल व्यय कम हुआ बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार हुआ। सीतारमण को 2024-25 का बजट बनाते समय जिस अहम सवाल से जूझना होगा वह यह है कि क्या सरकारी व्यय में और कमी की जा सकती है? आदर्श स्थिति में उन्हें राजस्व व्यय में तीव्र कटौती करनी चाहिए। ऐसा करने से उन्हें पूंजीगत व्यय बढ़ाने में मदद मिलेगी।

2024-25 के उनके अंतरिम बजट में जीडीपी के 3.4 फीसदी के बराबर पूंजीगत व्यय का प्रस्ताव रखा गया था जबकि राजस्व व्यय के जीडीपी के 11.1 फीसदी रहने की बात कही गई थी। अगर पूंजीगत व्यय को जीडीपी के 3.5 फीसदी तक बढ़ाना पड़े तो राजस्व व्यय को और अधिक झटका लगेगा जो शयद जीडीपी के 11 फीसदी तक कम हो जाएगा।

परंतु इसके बावजूद कई अहम चुनौतियां होंगी। इसके लिए सरकार की कई कल्याण योजनाओं में कटौती करनी होगी। इसमें सब्सिडी योजनाएं भी शामिल हैं। गत वर्ष सीतारमण ने कुल सब्सिडी बिल को कम करके जीडीपी के 1.5 फीसदी तक ला दिया था जबकि 2022-23 में यह जीडीपी के 2.4 फीसदी के बराबर थी। ऐसे में 2024-25 में सब्सिडी में और कटौती की संभावना कम है।

वित्त मंत्री के समक्ष पहले ही पीएम किसान और मनरेगा के तहत आवंटन बढ़ाने की मांग है। गठबंधन की राजनीति की कीमत उन दो राज्यों में आवंटन बढ़ाने के रूप में चुकानी पड़ सकती है जहां के सत्ताधारी दल केंद्र की मोदी सरकार को समर्थन दे रहे हैं।

रिजर्व बैंक के जीडीपी के 0.4 फीसदी के बराबर के अतिरिक्त अधिशेष स्थानांतरण को ध्यान में रखने के बाद भी व्यय वृद्धि को रोकना बड़ी चुनौती होगी। ध्यान देने वाली बात यह हे कि 2023-24 का सरकार का राजकोषीय घाटा पहले ही जीडीपी के 5.6 फीसदी के बराबर है।

अगर सीतारमण 2024-25 के लिए अंतरिम बजट के 5.1 फीसदी के लक्ष्य पर टिकी रहती हैं तो जीडीपी के आधे फीसदी के बराबर का राजकोषीय समेकन गत वर्ष हासिल लक्ष्य की तुलना में कम ही होगा। इसका अर्थ यह भी होगा कि उन्हें घाटे में कहीं अधिक कटौती करनी होगी ताकि वह 2025-26 के 4.5 फीसदी के लक्ष्य तक पहुंच सकें। इस वर्ष उन्हें रिजर्व बैंक के अधिशेष स्थानांतरण का लाभ मिलेगा जो शायद अगले वर्ष उपलब्ध न हो। ऐसे में समझदारी यही होगी कि इस वर्ष राजकोषीय घाटे को और कटौती के साथ जीडीपी के पांच फीसदी या 4.9 फीसदी किया जाए। तभी अगले वर्ष वित्त मंत्री की राह थोड़ी आसान हो जाए।

परंतु कल्याण योजनाओं के लिए उच्च व्यय मांग के साथ वित्त मंत्री के पास रास्ता भी क्या है? उनके पास बेहतर राजस्व के अलावा कोई विकल्प नहीं है। केंद्र का शुद्ध कर राजस्व कोविड के असर के बाद धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यह 2020-21 के जीडीपी के 7.2 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 7.88 फीसदी हो गया। इसके अलावा 2021-22 से ही कर संग्रह में प्रत्यक्ष करों की हिस्सेदारी अप्रत्यक्ष करों से अधिक हो चुकी है।

चिंताजनक संकेत यह है कि गैर कर राजस्व बीते चार साल से लगातार जीडीपी के 1.5 फीसदी से कम बना हुआ है और विनिवेश प्राप्तियों में न केवल बीते दो वर्षों से गिरावट आ रही है बल्कि इस बात को लेकर भी सवाल हैं कि इस वर्ष या अगले वर्ष विनिवेश को लेकर गंभीर प्रयास होंगे भी या नहीं?

इसके बावजूद लगता है कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में सीतारमण का पहला बजट राजस्व जुटाने पर अधिक निर्भर होगा। अगर कल्याण योजनाओं में आवंटन बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा तो राजस्व व्यय में और कटौती करना मुश्किल होगा।

अगर राजकोषीय समेकन की गति मजबूत होती है और पूंजीगत व्यय में जरूरी इजाफे से समझौता नहीं किया जाता है तो वित्त मंत्री को ऐसे कदमों पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो गैर कर राजस्व जुटाने से संबंधित हों। इसके अलावा विनिवेश की महत्त्वाकांक्षी योजना बनाने को लेकर भी काम करना होगा। ये सभी लक्ष्य किस प्रकार हासिल होंगे, यह बात दो सप्ताह बाद ही पता चल सकेगी।

First Published : July 12, 2024 | 8:57 PM IST