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आ​खिर कौन सी बातें सामने आएं बजट में

वित्त मंत्री के भाषण में मुद्रा आपूर्ति, मांग और निवेश पर बजट के प्रभाव को जरूर रेखांकित किया जाना चाहिए। ये वे कारक हैं जो मुद्रास्फीति और वृद्धि को प्रभावित करते हैं। बता रहे हैं नितिन देसाई

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नितिन देसाई
- 30/01/2023 10:37 PM IST

केंद्र सरकार के बजट प्रबंधन की वित्त मंत्रालय की औपचारिक जिम्मेदारी का अर्थव्यवस्था पर गहरा असर होता है क्योंकि इसमें सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी के अनुपात में बहुत बड़ी रा​शि के सार्वजनिक व्यय का प्रावधान होता है। इसके अलावा बचत को लेकर केंद्र सरकार की मांग तथा खपत, बचत, निवेश, निर्यात और आयात के साथ करों तथा स​ब्सिडी संबंधी निर्णयों का असर भी इसमें शामिल होता है। इसलिए बजट का प्राथमिक लक्ष्य यह होना चाहिए कि इन औपचारिक जिम्मेदारियों को ऐसे व्यव​स्थित ढंग से तैयार किया जाए कि:

  • वृहद आ​र्थिक प्रभाव मुद्रास्फीति और वृद्धि को लेकर अल्पाव​धि और मध्याव​धि के लक्ष्यों के साथ निरंतरता में होते हैं।
  • बजट में व्यय आवंटन, कर और सब्सिडी आदि के बारे में जो उ​ल्लि​खित आवंटन संबंधी और वितरण संबंधी प्रभाव उत्पन्न होते हैं वे इन्हें एक खास दिशा में ले जाते हैं।

बजट को जिस प्रकार संसद और आम जनता के समक्ष पेश किया जाता है वह प्रक्रिया काफी व्यापक ढंग से सार्वजनिक वित्त के बारे में सूचनाएं प्रदान करती है। हालांकि जो चयन किए जाते हैं उनके बारे में व्याख्याएं आमतौर पर वित्त मंत्री के बजट भाषण में पेश की जाती हैं जिसे आमतौर पर उपरोक्त चयन के संभावित वृहद आ​​र्थिक ​स्थिति, आवंटक और वितरण संबंधी प्रभाव पर केंद्रित रहना चाहिए, न कि केवल अन्य मंत्रालयों द्वारा तैयार और क्रिया​न्वित की जाने वाली अन्य योजनाओं के जिक्र के।

जब बात वृहद आ​र्थिक प्रभाव की आती है तो स्वाभाविक तौर पर ध्यान सकल राजस्व घाटे (जीएफडी) पर जाता है। यह विशुद्ध ऋण समेत कुल व्यय का अतिरिक्त होता है जो राजस्व प्रा​प्तियों (बाह्य अनुदान सहित) तथा गैर ऋण पूंजीगत प्रा​प्तियों के परे होता है। इसके संभावित वृहद आ​र्थिक प्रभाव के आकलन का एक सहज तरीका है बजट घाटे तथा दो वृहद आ​र्थिक लक्ष्यों यानी मुद्रास्फीति की दर तथा जीडीपी वृद्धि के बीच सां​ख्यिकीय सहसंबंधों का परीक्षण करना जो ऋणात्मक एक से शून्य और धनात्मक एक तक कुछ भी हो सकता है।

बहरहाल, यह सहसंबंध कारण संबंध की दिशा नहीं प्रमा​णित करता। उदाहरण के लिए कम घाटे के कारण वृद्धि तेज हो सकती है क्योंकि निजी बचत की कम मांग निजी निवेश के लिए संसाधन बढ़ा देती है या कहें कि उच्च वृद्धि कम घाटे की दिशा में ले जा सकती है क्योंकि उच्च जीडीपी वृद्धि का कर संग्रह पर सकारात्मक प्रभाव होता है।

उदारीकरण के बाद यानी सन 1991-92 से 2019-20 तक के आंकड़ों का प्रयोग समझ में आता है क्योंकि यह उस अव​धि को समेटे है जब अर्थव्यवस्था बाजारोन्मुखी और निजी क्षेत्र के प्रभाव वाली हुई। इस अव​धि में घाटे के अनुपात और विनिर्मित वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक की वृद्धि दर का सहसंबंध 0.27 है जो कम लेकिन महत्त्वपूर्ण है। परंतु ज्यादा अहम बात यह है कि घाटे के अनुपात और व्यापक मुद्रा आपूर्ति के बीच का सहसंबंध 0.30 है।

वृद्धि पर प्रभाव की बात करें तो घाटे के अनुपात और जीडीपी वृद्धि का सहसंबंध नकारात्मक तथा 0.51 प्रतिशत ऋणात्मक है। यह नकारात्मक प्रभाव इसलिए हो सकता है क्योंकि इस अव​धि में घाटे के अनुपात में इजाफा शायद राजस्व व्यय में इजाफे की वजह से हुआ हो बजाय कि उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के। बचत को लेकर सरकार की मांग में इजाफा निजी क्षेत्र के निवेश की वृद्धि में एक बार फिर मंदी ला सकता है।

व्यापक मुद्रा वृद्धि और जीडीपी वृद्धि के बीच का संबंध भी कुछ नकारात्मक है जिसे समझा जा सकता है क्योंकि घाटे के अनुपात और व्यापक मुद्रा वृद्धि का अनुपात ऐसा है। बहरहाल व्यापक मुद्रा वृद्धि अप्रत्यक्ष रूप से जीडीपी वृद्धि से सकारात्मक ढंग से जुड़ी हुई नजर आती है। इनके बीच का सहसंबंध 0.57 का है तथा बैंकों के वा​​णि​ज्यिक ऋण तथा ऋण वृद्धि में भी एक अहम सहसंबंध है। निजी निवेश वृद्धि में यह 0.35 और समग्र निवेश की वृद्धि दर में यह 0.47 है। अनुमान के अनुसार ही निवेश की वृद्धि दर तथा जीडीपी वृद्धि दर का सहसंबंध भी 0.57 है जो काफी अच्छा है।

जैसा कि हमने पहले भी कहा सहसंबंध कारण संबंध निर्धारण के लिए पर्याप्त उपाय नहीं है। लेकिन इसका यह संबंध तो है कि आपस में संबं​धित चीजों का अहम रिश्ता होता है। ऐसे में वित्त मंत्री द्वारा बजट की जो व्याख्या की जानी है उसमें इस बात का आकलन शामिल होना चाहिए कि घाटा और सरकार की ऋण योजना व्यापक मुद्रा आपूर्ति, वा​णि​ज्यिक क्षेत्र में बैंकिंग फाइनैंस की ​स्थिति और संभावित निजी निवेश को किस प्रकार प्रभावित कर सकती है। चूंकि व्यापक मुद्रा आपूर्ति की वृद्धि रिजर्व बैंक से काफी प्रभावित होती है इसलिए बजट मौद्रिक नीति की दिशा के बारे में कुछ संकेत दे सकता है।

वृद्धि में निजी क्षेत्र का निवेश मांग पर निर्भर है। बजट का व्यय क्षेत्र भी मायने रखता है क्योंकि अधोसंरचना तथा अन्य गतिवि​धियों में होने वाला सार्वजनिक व्यय मांग में वृद्धि का एक अहम जरिया है। निजी क्षेत्र और आम परिवारों की मांग में वृद्धि भी बजट के अन्य तत्वों खासकर करों और स​ब्सिडी प्रावधानों में बदलाव पर निर्भर होगी।

यहां एक अहम तत्त्व है मांग में वृद्धि को लेकर निजी क्षेत्र की चीजों में अंतर का स्तर। अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो वे साफ बताते हैं कि खपत की मांग को प्रभावित करने के बारे में पहले से अनुमान लगाया जा सकता है और यह जीडीपी वृद्धि के घरेलू उपाय के रूप में काफी अ​धिक उपयोगी है। निवेश में होने वाली वृद्धि मांग में वृद्धि से अ​धिक प्रभावित होगी। बजट का ऋण स्रोतों पर पड़ने वाला प्रभाव भी इस पर बजट में होने वाले कॉर्पोरेट कर दर समायोजन की तुलना में अ​धिक प्रभाव डालेगा।

वित्त मंत्री अपने जिस भाषण में बजट को स्पष्ट करेंगी, यह आवश्यक है कि वह उसमें उन उपायों के बारे में विस्तार से बताएं जो मुद्रास्फीति और वृद्धि को प्रभावित करने वाले हैं। ऐसा केवल घाटे के लक्ष्य की घोषणा के माध्यम से नहीं किया जाना चाहिए ब​ल्कि मुद्रा आपूर्ति के प्रभाव, उपभोक्ता मांग, विदेश व्यापार और निवेश पर असर को समझाते हुए ऐसा करना चाहिए। ऐसे मामलों में जहां बजट में आय के वितरण को प्रभावित करने क अहम उपाय शामिल होते हैं या पर्यावरण संरक्षण की बात शामिल होती है वहां बजट भाषण में नि​श्चित तौर पर इन बातों को समग्र आ​र्थिक नजरिये के अलावा अलग से समझाया जाना चा​हिए।