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बकौल विश्लेषक

Last Updated- December 08, 2022 | 1:42 AM IST

जरूरत पारदर्शी श्रम कानून की


निजी क्षेत्रों में कर्मचारियों की छंटनी को लेकर सरकार का नियंत्रण उचित नहीं है।

जाहिर सी बात है कि कंपनियां अपने नियम और शर्तों के आधार पर कर्मचारियों की भर्ती करती हैं और कर्मचारी भी उन शर्तों को लेकर अपनी सहमति जताते हैं। हां, इस संबंध में सरकार इतना जरूर कर सकती है कि श्रम कानून को स्पष्ट और लचीला बनाया जाए।

हायर एंड फायर की नीति पूरी तरह से व्याख्यायित की जानी चाहिए। किसी भी कंपनी को चलाने के लिए कुछ मानदंड स्थापित किए जाते हैं। जब कंपनी फायदे में होती है, तो उसका लाभ हर हिस्सेदारों और कर्मचारियों को भी मिलता है। ठीक उसी तरह अगर कोई कंपनी विषम परिस्थिति से गुजर रही होती है या यूं कहे कि घाटे के दौर से गुजर रही होती है, तो लागत कटौती के नाम पर कंपनी कभी कभी कड़े कदम उठाने को भी मजबूर हो जाती है।

इस कदम के तहत कर्मचारियों की छंटनी भी कर दी जाती है। हमारे देश में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों की सहभागिता वाली अर्थव्यवस्था है, इसलिए किसी भी क्षेत्र द्वारा उठाए गए कदम की पूरी पड़ताल और उस पर बहस की जाती है। लेकिन सरकार अभी तक श्रम कानून को लेकर ही भ्रमित रही है।  बातचीत: कुमार नरोत्तम

नंदिता गुर्जर
एचआर प्रमुख,इंफोसिस टेक्नोलॉजीज


सरकार रोजगार सृजन करे

वैश्विक आर्थिक मंदी और कुछ महीनों पहले तक भारत में छाई रही मंदी की वजह से रोजगार में कमी तो आनी ही थी।

लेकिन अगर हमें खुद को बचाए रखना है तो देश की रियल इकॉनमी को बचाए रखना होगा। यहां रियल इकॉनमी का मतलब इंफ्रास्ट्रक्चर, उत्पादन, औद्योगिक क्षेत्रों में विकास से है। सरकार को चाहिए कि वह रोजगार सृजन कराने के लिए निवेश करे।

एक पल के लिए मान लिया जाए कि सरकार छंटनी पर पाबंदी लगाने के लिए कहती है तो फिर कंपनियां भी घाटे की भरपाई के लिए सरकार से मांग करेंगी और उस वक्त यह देखना होगा कि सरकार इसके लिए तैयार है या नहीं। हालांकि सरकार का वित्तीय घाटा काफी तेजी से बढ़ रहा है।

अगर रोजगार में आ रही कमी पर रोक नहीं लगाई तो देश की अर्थव्यवस्था और भी तेजी से नीचे जाएगी। कॉर्पोरेट सेक्टर में फिजूलखर्ची बहुत की जाती है। कंपनियां यह क्यों नहीं सोचती है कि कर्मचारियों को निकालने के बजाए अपने अनाप-शनाप के खर्चों में कटौती करे। कंपनियों को भी यह सोचना चाहिए कि अगर सभी लोग अपने आप को ही बचाने में लग जाएंगे तो सच्चाई है कि फिर कोई भी नहीं बचेगा।  बातचीत: पवन कुमार सिन्हा

अरुण कुमार
अर्थशास्त्री


किस मुंह से अंकुश लगाएंगे

कर्मचारियों की भर्ती कंपनी अपने काम के आधार पर करती है, जब उसके पास काम ही नहीं रहेगा तो कर्मचारियों को वह किस आधार पर काम देगी और कंपनी प्रबंधन की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपने कंपनी को डूबने से बचाए।

कंपनी की आय ठप पड़ जाए या फिर कम हो जाए तो वह कर्मचारियों के  वेतन में कमी या फिर छंटनी जैसे सख्त कदम उठाने के लिए कंपनी प्रबंधन को विवश होना पड़ता है। यहां पर सरकारी हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है।

श्रम कानून या फिर सरकार के  दूसरे कानूनी दांव-पेंच वहां पर लागू होते हैं, जहां पर कर्मचारियों को गलत तरीके से निकाला जा रहा हो। अधिकांश ठेका आधार पर रखे गये कर्मचारियों को नौकरी देने के पहले ही कंपनी बता देती है कि उनका काम न रहने पर उन्हें काम से निकाला जा सकता है। जब आपको नौकरी देने के पहले ही कंपनी स्पष्ट रूप से बता चुकी है तो उसमें राजनैतिक हो- हल्ला की गुंजाइश कहा बचती है।

जब सरकार घायल कंपनियों को कुछ राहत पैकेज नहीं दे सकती है तो कंपनियां अपनी डूबती नैय्या को बचाने के लिए क्या करें या क्या न करें यह किस मुंह से सरकार कह सकती है।  बातचीत: सुशील मिश्र

प्रदीप गोग्टे
उपाध्यक्ष (एच.आर.), एडफैक्टर्स पी आर प्रा. लि.

First Published - October 27, 2008 | 12:20 AM IST

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