प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
Old vs New Tax Regime: इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने का समय नजदीक आते ही देश भर के लाखों टैक्सपेयर्स अपने टैक्स रिजीम को लेकर दुविधा में हैं। अधिकतर टैक्सपेयर्स इस कंफ्यूजन में हैं कि वह ओल्ड टैक्स रिजीम चुनें या न्यू? साथ ही कई लोगों के मन में यह रहता है कि अगर पहले गलत टैक्स रिजीम चुन लिया है, तो क्या उसे बदला जा सकता है? यह सवाल खासकर उन सैलरीड लोगों के लिए अहम है, जो अपने एम्प्लायर को पहले ही टैक्स रिजीम की जानकारी दे चुके हैं। टैक्स एक्सपर्ट के मुताबिक, ITR फाइल करते समय रिजीम बदलना संभव है, लेकिन इसके लिए कुछ नियम और समयसीमा का पालन करना जरूरी होता है।
भारत में इनकम टैक्स के दो मुख्य रिजीम हैं – ओल्ड और न्यू। ओल्ड टैक्स रिजीम वह पारंपरिक सिस्टम है, जिसमें टैक्सपेयर्स को कई तरह की छूट और कटौतियां मिलती हैं। इसमें हाउस रेंट अलाउंस (HRA), होम लोन के ब्याज पर छूट, और सेक्शन 80C के तहत PPF या ELSS जैसे निवेश पर 1.5 लाख रुपये तक की कटौती शामिल है। हालांकि, इस रिजीम में टैक्स की दरें थोड़ी ज्यादा हैं।
वहीं, न्यू टैक्स रिजीम 2020 में पेश किया गया था और 2023 में इसे डिफॉल्ट रिजीम बनाया गया। इसमें टैक्स की दरें कम हैं, लेकिन ज्यादातर छूट और कटौतियां खत्म कर दी गई हैं। सिर्फ 50,000 रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन और कुछ खास मामलों में छूट मिलती है।
कई टैक्सपेयर्स साल की शुरुआत में अपने एम्प्लायर को ओल्ड टैक्स रिजीम चुनने की बात कह देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी कटौतियां ज्यादा होंगी। लेकिन साल के अंत में, जब वे अपनी आय, खर्चों और निवेश का हिसाब लगाते हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम ज्यादा फायदेमंद लगता है। टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आपकी कटौतियां 3.75 लाख रुपये से कम हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम आपके लिए सस्ता पड़ सकता है। लेकिन अगर आपकी कटौतियां 8 लाख रुपये से ज्यादा हैं, तो ओल्ड टैक्स रिजीम बेहतर विकल्प हो सकता है। ऐसे में ITR फाइल करते समय रिजीम बदलने की जरूरत पड़ती है।
टैक्स और इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट शरद कोहली कहते हैं, “सैलरीड कर्मचारियों के लिए ITR फाइल करते समय टैक्स रिजीम बदलना काफी आसान है। इनकम टैक्स नियमों के तहत, अगर आपकी आय बिजनेस या प्रोफेशन से नहीं है, तो आप हर साल ITR फाइल करते समय पुराने और नए रिजीम के बीच स्विच कर सकते हैं। यह प्रक्रिया ITR फॉर्म में ही पूरी हो जाती है।”
वह आगे कहते हैं, “जब आप ITR-1 या ITR-2 फॉर्म भरते हैं, तो उसमें एक विकल्प आता है, जिसमें पूछा जाता है कि क्या आप सेक्शन 115BAC के तहत न्यू टैक्स रिजीम से बाहर निकलना चाहते हैं? अगर आप हां चुनते हैं, तो आपका रिटर्न पुराने रिजीम के तहत प्रोसेस होगा। अगर नहीं चुनते हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम लागू होगा। इसके जरिए आप रिजीम बदल सकते हैं।”
हालांकि, अगर आपकी आय बिजनेस या प्रोफेशन से है, तो नियम थोड़े अलग हैं। ऐसे टैक्सपेयर्स को पुराने रिजीम में स्विच करने के लिए फॉर्म 10-IEA भरना जरूरी है। यह फॉर्म इनकम टैक्स की ई-फाइलिंग वेबसाइट पर उपलब्ध है और इसे ITR फाइल करने की डेडलाइन, यानी 31 जुलाई 2025 तक, जमा करना होगा। शरद कहते हैं कि बिजनेस या प्रोफेशन से आय वाले लोग अपने पूरे जीवन में सिर्फ एक बार नए रिजीम से पुराने रिजीम में स्विच कर सकते हैं। इसलिए, इस फैसले को सोच-समझकर लेना चाहिए।
टैक्स रिजीम बदलने की सुविधा तभी मिलती है, जब आप ITR समय पर फाइल करते हैं। ज्यादातर सैलरीड कर्मचारियों और उन लोगों के लिए, जिनके खातों का ऑडिट जरूरी नहीं है, ITR फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2025 है। अगर आप इस तारीख के बाद ITR फाइल करते हैं, यानी बिलेटेड रिटर्न दाखिल करते हैं, तो आप ओल्ड टैक्स रिजीम नहीं चुन सकते। ऐसी स्थिति में आपका रिटर्न अपने आप नए रिजीम के तहत प्रोसेस होगा।
जिन टैक्सपेयर्स के खातों का ऑडिट जरूरी है, उनके लिए ITR फाइल करने की डेडलाइन 31 अक्टूबर 2025 है, बशर्ते ऑडिट रिपोर्ट 30 सितंबर 2025 तक जमा हो। अगर आपके पास अंतरराष्ट्रीय लेन-देन या खास तरह की आय है, तो ITR की डेडलाइन 30 नवंबर 2025 है, और ऑडिट रिपोर्ट 31 अक्टूबर तक जमा करनी होगी।
शरद कोहली का कहना है कि अगर आपने फॉर्म 10-IEA जमा कर दिया और बाद में नए रिजीम में वापस जाना चाहते हैं, तो यह अगले वित्तीय वर्ष में ही संभव है। यानी, एक बार फॉर्म जमा करने के बाद उस साल के लिए रिजीम को दोबारा नहीं बदला जा सकता। इसलिए, रिजीम चुनने से पहले अपनी आय और कटौतियों का सही हिसाब लगाना जरूरी है।
टैक्स रिजीम चुनना एक ऐसा फैसला है, जो आपकी आय, निवेश और भविष्य की योजनाओं पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट की सलाह है कि टैक्सपेयर्स को इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
कटौतियों का हिसाब: अगर आप HRA, होम लोन ब्याज, या सेक्शन 80C के तहत निवेश का फायदा लेते हैं, तो ओल्ड टैक्स रिजीम आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन अगर आपके पास ऐसी कटौतियां कम हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम कम टैक्स देनदारी के साथ बेहतर हो सकता है।
लंबे समय की योजना: अगर आप अगले कुछ सालों में होम लोन लेने या बड़े निवेश की योजना बना रहे हैं, तो ओल्ड टैक्स रिजीम चुनना समझदारी हो सकती है। वहीं, अगर आपकी आय बढ़ने वाली है और कटौतियां सीमित हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम ज्यादा सही हो सकता है।
डॉक्यूमेंट्स की जांच: ITR फाइल करने से पहले अपने फॉर्म 16, निवेश के सबूत, और अन्य जरूरी डॉक्यूमेंट्स अच्छे से जांच लें। अगर आप ओल्ड टैक्स रिजीम चुन रहे हैं, तो कटौतियों के सबूत अपने पास रखें, क्योंकि टैक्स डिपार्टमेंट बाद में इनकी जांच कर सकता है।
टैक्स कैलकुलेटर का करें इस्तेमाल: कई ऑनलाइन टूल्स और टैक्स कैलकुलेटर उपलब्ध हैं, जो दोनों रिजीम्स में आपकी टैक्स देनदारी की तुलना करने में मदद कर सकते हैं। इनका इस्तेमाल करके आप सही फैसला ले सकते हैं।
टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोई भी रिजीम चुनने से पहले किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट या टैक्स सलाहकार से सलाह लेना फायदेमंद हो सकता है। खासकर उन लोगों के लिए, जिनकी आय कई स्रोतों से है या जिनके पास जटिल निवेश हैं। सही रिजीम चुनकर आप न सिर्फ टैक्स बचा सकते हैं, बल्कि नियमों का पालन भी सुनिश्चित कर सकते हैं।