हॉलीवुड की चर्चित फिल्म ‘द सिक्स्थ सेंस’ का एक मशहूर संवाद है, ‘मैं मरे हुए लोगों को देख लेता हूं’। लगता है कि आयकर अधिकारी भी मरे हुए लोगों को देख लेते हैं। इसलिए यदि किसी की आय कर काटे जाने योग्य है तो उसकी मौत होने पर भी उस वित्त वर्ष में आयकर रिटर्न दाखिल किया जाना चाहिए। वेद जैन ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर अंकित जैन ने कहा, ‘यदि आय इतनी है कि कर कटे तो मृतक को हुई आय के लिए उसके प्रतिनिधि अथवा कानूनी उत्तराधिकारी को मृत्यु की तारीख तक रिटर्न अवश्य दाखिल करना होगा।’
सबसे पहले आयकर विभाग की ई-फाइलिंग वेबसाइट पर कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपना पंजीकरण कराना जरूरी है। इसके लिए मृत्यु प्रमाण पत्र और कानूनन उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज जमा करने होंगे। जैन ने कहा, ‘वेबसाइट पर दस्तावेज जमा हो जाने के बाद आयकर विभाग आवेदन की जांच करता है। सत्यापन में सही पाए जाने पर मंजूरी दे दी जाती है। रिटर्न दाखिल करने के काम को यह मानकर आखिर तक नहीं टालना चाहिए कि मंजूरी मिलने में देर लगेगी।’
पंजीकरण होने के बाद कानूनी उत्तराधिकारी बिल्कुल उसी तरीके से रिटर्न दाखिल कर सकता है जैसे मृत व्यक्ति ने किया होगा। इसके अलावा उत्तराधिकारी को कानूनी प्रतिनिधि के रूप में दाखिल करने का विकल्प चुनना होगा। उसके बाद कर देनदारी का हिसाब लगाकर उसका भुगतान करना चाहिए।
मरे हुए व्यक्ति की कर देनदारी पूरी करने की जिम्मेदारी कानूनी उत्तराधिकारी पर होती है। मगर बकाया रकम निपटाने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं होता। आईपी पसरीचा ऐंड कंपनी के पार्टनर मनीत पाल सिंह ने कहा, ‘कानूनी उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी इतनी ही है कि विरासत में मिली संपत्ति से कर बकाये का निपटान करना होगा।’
मृतक का रिटर्न तय समय तक दाखिल नहीं किया तो कई नुकसान हो सकते हैं। टैक्समैन के उप महाप्रबंधक नवीन वाधवा ने कहा, ‘इसकी वजह से छूट एवं कटौतियों का फायदा गंवा दिया जाता है और ब्याज एवं जुर्माना लगाया जा सकता है।
निर्धारित तिथि तक रिटर्न दाखिल नहीं किया जाता है तो प्रतिनिधि को विलंब के लिए धारा 234ए के तहत ब्याज का भुगतान करना होगा।’ इसके अलावा धारा 234एफ के तहत देर से रिटर्न दाखिल करने की फीस मृतक की आय के आधार पर 1,000 से 5,000 रुपये तक हो सकती है।
साथ ही कई कानूनी जटिलताएं और कर अधिकारियों के साथ विवाद भी हो सकते हैं। द गिल्ड के पार्टनर तबरेज मालावत ने कहा, ‘अनुपालन न करने अथवा जानबूझकर कर चोरी के मामले में कानूनी उत्तराधिकारी को आयकर कानून की धारा 276 सीसी के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
इसमें कर चोरी की संभावित रकम के आधार पर जुर्माने का प्रावधान है। यदि कर चोरी की रकम 25 लाख रुपये से अधिक है तो व्यक्ति को जुर्माने के अलावा छह महीने से सात साल तक के कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है।’ अन्य मामलों में जुर्माने के साथ कारावास की अवधि तीन महीने से दो साल तक हो सकती है।
मृत व्यक्ति की स्थायी लेखा संख्या (पैन) बैंक खाते बंद किए जाने, परिसंपत्तियों के हस्तांतरण, बकाया करों के निपटान और रिटर्न दाखिल करने जैसे काम पूरे करने के बाद ही सरकार को वापस किया जाना चाहिए। सिंह ने कहा, ‘कानूनी प्रतिनिधि को कर निर्धारण अधिकारी के नाम पत्र लिखना चाहिए जिसमें मृत व्यक्ति का विवरण, जैसे नाम, पैन, जन्म तिथि, सरेंडर किए जाने के कारण और मृत्यु प्रमाण पत्र की प्रति प्रदान करनी चाहिए।’
रिटर्न दाखिल करने में त्रुटियों के लिए कानूनी उत्तराधिकारी जिम्मेदार होता है। वाधवा ने कहा, ‘सुनिश्चित करें कि मृतक का रिटर्न दाखिल करने से पहले सभी जानकारी सही ढंग से जुटाई गई है।’ यदि मूल रिटर्न में गलतियां या चूक पाई जाती हैं तो इसे संबंधित कर निर्धारण वर्ष के दौरान 31 दिसंबर तक संशोधित किया जा सकता है।
ब्याज, किराया, शेयर लाभांश और निवेश से प्राप्त लाभ जैसी आय को अलग करें क्योंकि इस प्रकार की आय मृत्यु के बाद भी जारी रहती है। टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी के पार्टनर विवेक जालान ने कहा, ‘मृत्यु की तारीख तक मृतक की आय को उसके रिटर्न में शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद उस आय को कानूनी उत्तराधिकारी के रिटर्न में जोड़ा जाना चाहिए।’
याद रखें कि मृत्यु के वर्ष के लिए दो अलग-अलग रिटर्न दाखिल किए जाने चाहिए। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा ने कहा, ‘वित्त वर्ष की शुरुआत से मृत्यु की तारीख तक मृतक की आय के लिए कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा एक रिटर्न दाखिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा मृत्यु की तारीख से कानूनी उत्तराधिकारी को परिसंपत्ति हस्तांतरित होने तक मृतक की संपत्ति से अर्जित आय के लिए दूसरा रिटर्न दाखिल करना चाहिए।’