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लोन के बदले बीमा खरीदने का दबाव? जानिए क्या है आपका हक

DFS ने कहा है कि बीमा प्रोडक्ट सिर्फ कस्टमर की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बेचे जाएं, न कि सेल्स टार्गेट पूरा करने के लिए।

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संजीव सिन्हा   
Last Updated- June 09, 2025 | 9:37 AM IST

वित्त मंत्रालय के DFS यानी Department of Financial Services ने एक अहम निर्देश जारी किया है। अब बैंक और दूसरे financial institutions बीमा बेचने पर इंसेंटिव नहीं दे पाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये फैसला इंश्योरेंस की गलत बिक्री (mis-selling) रोकने के लिए लिया गया है। DFS ने कहा है कि बीमा प्रोडक्ट सिर्फ कस्टमर की जरूरत को ध्यान में रखते हुए बेचे जाएं, न कि सेल्स टार्गेट पूरा करने के लिए।

बैंक कर्मचारियों पर टारगेट का दबाव, ग्राहक की जरूरतों की अनदेखी

बीमा पॉलिसी की बिक्री में अक्सर गलत तरीके अपनाए जाते हैं, क्योंकि यहां कर्मचारियों के हित ग्राहक की जरूरतों से टकरा जाते हैं। इंश्योरेंस समाधान की सह-संस्थापक और चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शिल्पा अरोड़ा बताती हैं, “बैंकों के कर्मचारियों को बीमा समेत कई फाइनेंशियल प्रोडक्ट बेचने के टारगेट दिए जाते हैं। इन टारगेट्स को पूरा करने पर उन्हें इंसेंटिव या कमीशन मिलता है। इसी दबाव में कई बार वे ऐसे प्रोडक्ट भी बेच देते हैं जो ग्राहक की असली जरूरत के मुताबिक नहीं होते।”

अक्सर बैंक का भरोसेमंद कर्मचारी बीमा बेचता है, और लोग उसी पर विश्वास करके पॉलिसी ले लेते हैं। लेकिन यही भरोसा कई बार गलत दिशा में इस्तेमाल हो जाता है।

बीमा को जोखिम से सुरक्षा के बजाय एक निवेश या बचत योजना के तौर पर पेश किया जाता है, जबकि हकीकत में यह उतना रिटर्न नहीं देता जितना बताया जाता है।

वित्तीय साक्षरता की कमी इस स्थिति को और बिगाड़ देती है। Germinate Investor Services के सीईओ संतोष जोसेफ के मुताबिक, “लोगों को कई साल बाद समझ आता है कि वे एक ऐसे प्रोडक्ट पर प्रीमियम भरते रहे, जो बहुत कम रिटर्न देता है।”

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मिस-सेलिंग के तरीके

बैंकों के कर्मचारियों पर जब टारगेट पूरा करने का दबाव होता है, तो वे ग्राहकों को ऐसी पॉलिसियां बेचते हैं जो उनके लिए जरूरी नहीं होतीं। अरौरा कहते हैं, “अक्सर जब ग्राहक बैंक ब्रांच में फिक्स्ड डिपॉजिट कराने जाते हैं, तो उन्हें इसके बजाय इंश्योरेंस खरीदने के लिए दबाव डाला जाता है। इन इंश्योरेंस प्लान्स पर ज़्यादा रिटर्न का वादा किया जाता है। यहां तक कि बुजुर्गों को भी लंबी अवधि की जीवन बीमा योजनाएं बेच दी जाती हैं, जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती।”

मिस-सेलिंग तब भी होती है जब ग्राहकों को यह बताया जाता है कि होम लोन, पर्सनल लोन, बिजनेस लोन या ओवरड्राफ्ट की सुविधा लेने के लिए इंश्योरेंस लेना जरूरी है। जोसेफ बताते हैं, “जब ग्राहक जल्दी में पैसा लेना चाहते हैं, तब वे कमजोर स्थिति में होते हैं और ऐसे में उन्हें बीमा पॉलिसी लेने के लिए आसानी से मना लिया जाता है।”

लोन के साथ बीमा लेने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

ग्राहकों को किसी भी धोखाधड़ी से बचने के लिए कुछ जरूरी संकेतों पर ध्यान देना चाहिए। इंडिया लॉ के पार्टनर राहुल सुंदरम के मुताबिक, अगर कोई बीमा पॉलिसी लोन लेने के लिए अनिवार्य बताई जाए, जल्दी फैसला लेने का दबाव डाला जाए, बीमा की शर्तें ठीक से न समझाई जाएं, या दस्तावेज पहले से देखने को न दिए जाएं—तो सतर्क हो जाना चाहिए।

जोसेफ का कहना है कि अगर आपको बीमा प्रोडक्ट की जानकारी ठीक से समझ नहीं आ रही है, और जो व्यक्ति इसे बेच रहा है वह आपके सवालों का साफ जवाब नहीं देता या लिखित जानकारी देने से बचता है, तो यह भी एक चेतावनी संकेत है। इसके अलावा, अगर किसी बीमा स्कीम की पेशकश सुनकर वह ‘बहुत अच्छी लगती है’ या असलियत से परे लगती है, तो सावधान रहना जरूरी है।

बीमा खरीदने से पहले ग्राहकों को अपनी जरूरतों का सही आकलन करना चाहिए। जोसेफ कहते हैं, “अपने आप से पूछें कि आप यह उत्पाद क्यों खरीद रहे हैं — सुरक्षा के लिए या रिटर्न के लिए। यह समझने की कोशिश करें कि क्या यह उत्पाद आपके जीवन के वर्तमान चरण के लिए उपयुक्त है और क्या यह बच्चों की शिक्षा या रिटायरमेंट जैसे महत्वपूर्ण वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में आपकी मदद कर सकता है।”

बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के वरिष्ठ अध्यक्ष एवं संचालन एवं ग्राहक सेवा प्रमुख के वी दिपु कहते हैं, “उस प्रकार की पॉलिसी का चयन करें जो उस संपत्ति की सबसे अच्छी सुरक्षा कर सके जिसे आप बीमा करना चाहते हैं।”

लोन की मंजूरी के लिए बैंक से पूछें कि क्या बीमा लेना अनिवार्य है और इसका लिखित जवाब जरूर मांगें।

अरोड़ा बताते हैं कि कई बार ग्राहक को एक उत्पाद के लिए कई बार प्रीमियम देना पड़ता है, लेकिन बैंक का स्टाफ इसे एक बार के प्रीमियम के रूप में पेश कर सकता है। इसलिए ग्राहकों को पूरी वित्तीय जिम्मेदारी और भुगतान की अवधि को समझना आवश्यक है।

यदि लोन समय से पहले चुका दिया जाता है तो पॉलिसी को रद्द या ट्रांसफर किया जा सकता है या नहीं, साथ ही बचा हुआ प्रीमियम वापस मिलेगा या नहीं, यह भी जरूर पूछें।

जांच लें कि यह उत्पाद केवल बीमा कवरेज है या बीमा और बचत का मिश्रित उत्पाद है। जोसेफ कहते हैं, “रिटर्न की जानकारी लें, क्या वह गारंटीड है, मृत्यु और अन्य लाभ क्या हैं। जोखिमों को समझें और सोचें कि क्या आप उन्हें वहन कर सकते हैं।”

लॉक-इन अवधि को समझें और यह जानें कि जरूरत पड़ने पर पैसा निकालना कितना आसान होगा।

ब्रोशर प्राप्त करें और ध्यान से पढ़ें। अरोड़ा सलाह देते हैं, “वायदे किए गए लाभों की लिखित सूचना मेल पर जरूर प्राप्त करें।”

सुंदरम सुझाव देते हैं कि विभिन्न उत्पादों की तुलना करें, शर्तों को विस्तार से पढ़ें और किसी वित्तीय सलाहकार से सलाह लें।

अगर आपको पॉलिसी गलत तरीके से बेची गई है तो क्या करें?

सबसे पहले, फ्री-लुक पीरियड का फायदा उठाएं और पॉलिसी को कैंसिल करें। फ्री-लुक पीरियड में, पॉलिसी मिलने के बाद कम से कम 15 दिन (इलेक्ट्रॉनिक पॉलिसी और दूर से बेची गई पॉलिसी के लिए 30 दिन) का समय होता है, जिसमें आप उसकी शर्तें समझकर अगर पसंद न आए तो उसे वापस कर सकते हैं।

अगर फ्री-लुक पीरियड खत्म हो गया है, तो सबसे पहले बैंक और बीमा कंपनी दोनों के कस्टमर सपोर्ट से संपर्क करें। अगर पॉलिसी बैंक शाखा से खरीदी गई है तो शाखा प्रभारी या शिकायत अधिकारी से बात करें, अपनी समस्या बताएं और समाधान मांगें।

अगर आपकी समस्या का हल नहीं होता है तो इसे आगे बढ़ाएं। आप बीमा लोकपाल के पास शिकायत कर सकते हैं, IRDAI के बीमा भरोसा पोर्टल पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं या उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज कर सकते हैं।

First Published : June 9, 2025 | 9:37 AM IST