हमारा ध्यान बुनियादी ढांचा और उपभोक्ता आधारित कारोबार पर है, जहां अन्य कंपनियां माहौल को देखते हुए धन उगाहने की अपनी योजनाओं को टाल रही हैं वहीं बेयर कैपिटल पार्टनर्स के संस्थापक और अध्यक्ष आलोक सामा बेकॉन इंडिया प्राइवेट इक्विटी फंड -2 शुरू करने जा रहे हैं। प्रस्तुत है वंदना से उनकी बातचीत के अंश-
अमेरिका में आए सबप्राइम संकट का भारतीय और उभरते हुए बाजारों के प्राइवेट इक्विटी के कारोबार पर कितना असर पडा है?
पश्चिमी देशों में तरलता की कमी का बाइआउट कारोबार पर व्यापक असर पडा है क्योंकि ऐसे सौदे खासकर लीवरेज की वजह से ही किए जा रहे थे। लेकिन भारतीय और अन्य तेजी से उभरते बाजारों पर इसका उतना ज्यादा असर नहीं पड़ा है क्योकि इन बाजारों में प्राइवेट इक्विटी निवेश ग्रोथ कैपिटल की गरज से ज्यादा हो रहा था बजाए बाइआउट के।
इसके अलावा जिन लोगों ने पिछले दो सालों में बढ़े वैल्यूएशन को देखते हुए पैसा नहीं लगाया, जिनमें हमारा पीई फंड भी शामिल है, उनके लिए हालात सुधरे हैं क्योकि अब वैल्यूएशंस काफी नीचे आ चुके हैं।
प्राइवेट इक्विटी के लिहाज से कौन से क्षेत्र सबसे ज्यादा आकर्षक हैं ?
पीई निवेशक समान्यत: दीर्घ अवधि में होनेवाले फायदे को ध्यान में रखकर कारोबार करते हैं। इसके निवेशक न सिर्फ अपने फायदे के लिए निवेश करते हैं बल्कि जिन कंपनियों में निवेश कर रहें हैं उनके कारोबार में विशेषज्ञता रखते हैं लिहाजा कारोबार को वैल्यू ऐड करने में भी मदद करते हैं।
किसी भी क्षेत्र के लिए नजरिया बाजार केउतार-चढ़ाव के आधार पर नहीं बदलता है। हम मुख्यत: बुनियादी ढांचे और उपभोक्ता आधारित कारोबार पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और ये दो क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहें हैं।
हेज फंड एशिया में अपने लगाए गए पैसे को वापस ले रहें है और वो नुकसान में चल रहे हैं। ऐसे में आप अपने हेज फंड केलिए क्या रणनीति बनाएंगे?
हेज फंड इन दो शब्दों को भारत और अन्य जगहों पर ठीक से परिभाषित नहीं किया जाता है। हमारा हेज फंड भारतीय इक्विटी पर केन्द्रित है और यह लांग-बाएस्ड इक्विटी फंड है जो 70 प्रतिशत समय लांग बना रहता है जो बेहतर शेयरों के चुनाव पर आधारित रहता है।
मेरे अच्छे मित्र और स्थानीय सलाहकार बीपी सिंह कहते है कि भारत में पैसों का प्रबंधन शार्ट मैनडेट के बिना ठीक वैसा ही है जैसे सचिन को बिना हेलमेट के ब्रेट ली की बॉलिंग का सामना करने को कहा जाए।यह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हेजिंग से प्रबंधकों को सुरक्षात्मक हथियार है।
मैक्रो फंड जिसने की बाजार में तरलता के समय भारतीय और चीन के बाजार में अरबों रूपये लगाए, वो किसी भी चीज से ज्यादा बाजार के मूमेंटम से प्रभावित थे और वो जापनी येन में कैरी ट्रेड बारोइंग और उभरते बाजारों में निवेश पर सबसे ज्यादा निर्भर थे।
दूसरे फंड लांच करने को लेकर आपकी क्या योजनाएं हैं?
हमारा ध्यान पूरी तरह से बेकॉन अल्फा इक्विटी फंड (हमारा हेज फंड) और बेकॉन इंडिया ग्रोथ फंड के लिए पैसा जुटाने पर केन्द्रित है। इसके अलावा हम प्राइवेट इक्विटी फंड-बेकॉन इंडिया प्राइवेट इक्विटी फंड-2 के फॉलो-ऑन के बारे में सोच रहें हैं क्योंकि फंड-1 के परिचालन में हमने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था।
भारतीय बाजार को लेकर एलपी और विदेशी निवेशकों से आप किस तरह के व्यवहार की उम्मीद कर रहें हैं?
एक साल पहले की जो स्थिति थी उसकी अपेक्षा वे अब अधिक सावधानी बरत रहें हैं जिसका कि बहुत बड़ा कारण उनका जोखिम लेने से परहेज करना है। इसके अलावा भारत को और चिंताएं भी इसकी वजह हैं।
महंगाई, ब्याज दरों में बढ़ोतरी, वित्तीय घाटा, रुपए की कीमत में गिरावट, मार्जिन पर दबाव और तेल की कीमतों का असर आदि ऐसे कारक है जिनकों लेकर विदेशी निवेशक सावधानी बरत रहें हैं। मैं समझता हूं कि यह कहना उचित है कि अब पहले वाले हालात नहीं है और वर्ष 2007 जैसे हालात की अपेक्षा मैं नहीं कर रहा हूं। इसके बाद भी निवेशकों को मध्यम और दीर्घ अवधि में भारतीय कारोबार के बेहतर होने का पूरा भरोसा है।
मोटे तौर पर वर्ष 2008 में पीई में किस तरह का ट्रेंड रह सकता है?
ऐसे कारोबारियों की तादात बढ़ती जा रही है जो बाइआउट की बात ज्यादा कर रहें हैं लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह लीवरेज पर आधारित हो। आने वाले साल में इस तरह की और गतिविधियों में तेजी आने की संभावना है।
मंदी के बावजूद नई पीई कंपनियां भारत में अपना कारोबार शुरू करने जा रहीं हैं। इससे क्या संकेत मिलता है?
पीई फंड जिन्होंने बेहतर तरलता के समय अरबों रुपए जुटाए हैं, उनके लिए इस पैसे को लगाना सबसे बड़ी चुनौती है। पश्चिमी देशों में उनका निवेश जो बहुत कुछ लीवरेज के आधार पर तय होता है, अब उसमें गुंजाइश नहीं बची है लिहाजा अब वो इस पैसे को लगाने के लिए नए बाजार तलाश रहे हैं।