पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए उतार-चढ़ाव भरा दौर रहा है, क्योंकि उन्हें कई अनिश्चितताओं से गुजरना पड़ा, जिनमें रूस औ यूक्रेन के बीच ताजा भूराजनीतिक टकराव भी शामिल है जिसने जिंस कीमतों में ताजा तेजी को बढ़ावा दिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि बाजार में गिरावट रूस-यूक्रेन टकराव का परिणाम है और इस हालात के सामान्य होने से पहले तक अस्थिरता बने रहने और उसके बाद भारी सुधार की संभावना है। इक्विटी बाजारों ने सामान्य तौर पर भूराजनीतिक जोखिमों को लेकर अधिक प्रतिक्रिया दिखाई है।
वर्ष 1990 में कुवैत पर ईरानी हमले ने बाजारों में भारी गिरावट को बढ़ावा दिया और तेल कीमतों दोगुनी हो गई थीं। हालांकि इक्विटी बाजार फिर से चार महीने बाद ऊंचाई पर पहुंच गए थे। वहीं, भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल को लेकर हुई झड़प से भी 1999 के मध्य में बाजारों में बड़ी गिरावट आई। हालांकि बाजारों में अच्छी तेजी आई, क्योंकि अहसास हो गया कि टकराव लंबे समय तक नहीं चलेगा।
हालांकि इस बार, ऐसे कई कारक हैं जिन पर निवेशकों को सतर्कता के साथ ध्यान देने की जरूरत है, जैसे राज्य चुनाव के परिणाम, एलआईसी का आईपीओ (जो बाजार में मौजूद तरलता प्रभावित कर सकता है) और वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा संभावित दर वृद्घि, खासकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा। फिर भी, विश्लेषकों का मानना है कि बाजार खोया आधार लौटाने में सफल रहेंगे और स्थिति स्पष्ट होने पर बाजार में रुझान मजबूत होगा।
अबैकस ऐसेट मैनेजर के संस्थापक सुनील सिंघानिया का कहना है, ‘हमारा मानना है कि रूस/यूक्रेन गतिरोध कुछ हद तक बरकरार रहेगा और आपको इन घटनाक्रम पर गंभीरता से नजर रखने की जरूरत है। हालांकि निवेश निर्णय भारत और वैश्विक तौर पर, दोनों में बुनियादी और आर्थिक नजरिये को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिए। लगता है बुरा समय बीत गया है और अब बाजार सकारात्मक दायरे में आ सकते हैं।’
फरवरी में बाजार तेजी से गिरे हैं। सेंसेक्स और निफ्टी में करीब 5 प्रतिशत की कमजोरी आई। एसीई इक्विटी डेटा से पता चलता है कि मिडकैप और स्मॉलकैप में गिरावट इस अवधि के दौरान 6 प्रतिशत से लेकर 10 प्रतिशत के दायरे में रही, जो काफी ज्यादा है।
इक्विनोमिक रिसर्च के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम का कहना है, ‘रिकवरी समान तेजी से हो सकती है और जैसा कि हमने पिछले सप्ताह देखा। यदि बाजार चढ़ते भी हैं, तो वे मार्च के अंत तक ऊंचे स्तरों पर डटे रहने में सक्षम नहीं रह सकते हैं। छोटे निवेशकों को नए जमाने की कंपनियों के आईपीओ में काफी नुकसान उठाना पड़ा है और वे वित्त वर्ष के अंत तक ऐसे शेयरों में नुकसान दर्ज कर सकते हैं। मिड और स्मॉलकैप में मार्च के चौथे सप्ताह तक कमजोरी बनी रह सकती है।’
हालांकि अल्पावधि परिदृश्य अस्थिर बना रहेगा, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि मौजूदा गिरावट ने दीर्घावधि निवेशकों को निवेश करने का अच्छा अवसर प्रदान किया है। हालांकि उन्हें कॉरपोरेट आय पर मुद्रास्फीति प्रभाव पर ध्यान देने की जरूरत होगी, जिसका अगली कुछ तिमाहियों के दौरान कुछ दबाव देखा जा सकता है।
जेएम फाइनैंशियल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, ‘अगले 12-24 महीनों में आगामी ईपीएस में कम से कम 20 प्रतिशत डाउनग्रेड की आशंका है।’