भारतीय शेयर बाजार पिछले कुछ महीनों से सीमित दायरे में बने हुए हैं। जेफरीज में इक्विटी रणनीति के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड ने नई दिल्ली में अपने चौथे इंडिया फोरम के अवसर पर पुनीत वाधवा को बताया कि उनका मानना है कि अगले एक साल में भारतीय बाजारों से 10-15 प्रतिशत रिटर्न मिल सकता है। हालांकि इसके लिए शेयरों का चयन अहम होगा। बातचीत के अंश:
क्या आप पिछले साल के दौरान भारतीय बाजार के रिटर्न से निराश हैं?
बिल्कुल नहीं। मैं इसे समेकन के दौर के रूप में देखता हूं। मैंने फरवरी 2025 के आसपास कहा था कि भारतीय बाजार से लगभग 10 प्रतिशत रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है। यह अभी भी संभव लगता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि जहां बाजार सपाट रहा है, वहीं इक्विटी जारी करने की आपूर्ति काफी अधिक रही है और उस आपूर्ति को घरेलू निवेश ने संभाल लिया है। आंकड़े बताते हैं कि घरेलू प्रवाह लगभग आपूर्ति के बराबर है।
ट्रंप के टैरिफ की पृष्ठभूमि में आप वैश्विक बाजारों को कैसा आकार लेता देखते हैं?
ये टैरिफ जितने लंबे समय तक लागू रहेंगे, सभी पर इनका उतना ही ज्यादा नकारात्मक असर पड़ेगा। लेकिन इस प्रभाव को स्पष्ट होने में समय लगेगा। समय के साथ, इसका बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
क्या आप मानते हैं कि अन्य बाजार अमेरिकी बाजारों से अलग हो गए हैं?
कुछ हद तक। जब से माइक्रोसॉफ्ट ने ओपनएआई में अपने निवेश की घोषणा की है, एसऐंडपी 500 में लगभग 50 प्रतिशत लाभ चार हाइपर-स्केलर्स और एनवीडिया से आया है। अमेरिकी बाजारों में अब इस एआई थीम का बोलबाला है और यह हाई बीटा बाजार है। व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि एआई में अत्यधिक निवेश का जोखिम है और मुझे लगता है कि डीपसीक का संदेश (बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) कमोडिटी बन सकते हैं, अभी भी सही है। अमेरिकी बाजार रिकॉर्ड मूल्य-बिक्री अनुपात पर कारोबार कर रहा है।
अमेरिका की तुलना में वैश्विक बाजार, खासकर भारत की स्थिति कैसी है?
यूरोप ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जिसकी अगुआई निर्यातकों के बजाय बैंक और रक्षा जैसे घरेलू शेयरों ने की है। कॉरपोरेट प्रशासन में सुधारों के बल पर जापान का मजबूत प्रदर्शन जारी है। चीन ने भी सकारात्मक रूप से आश्चर्यचकित किया है। मेरा आधार यह था कि चीन 2024 की चौथी तिमाही में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया और मजबूत सहायक आंकड़ों के बिना भी इसमें तेजी आई है। मैं चीन पर ज्यादा भरोसा करता हूं। तथापि भारत का प्रदर्शन बुरा नहीं रहा है, बस बात यह है कि दूसरे बाजारों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि घरेलू निवेशकों का प्रवाह गिरावट को रोकने में मददगार रहा है।
आप एक ‘इंडिया बुल’ और रणनीतिक रूप से ओवरवेट रहे हैं। क्या अब इसे बदलना चाहेंगे?
मैं अभी थोड़ा ओवरवेट हूं। अगर मेरे पास भारत और चीन दोनों का पोर्टफोलियो होता तो मैं चीन से कुछ पैसा भारत में स्थानांतरित कर देता। जो लोग भारत पर ‘ओवरवेट’ नहीं हैं, उनके लिए अब समय आ गया है कि वे निवेश बढ़ाने के बारे में सोचें। जो पहले से ही ‘ओवरवेट’ हैं, वे निवेश बढ़ाने की जल्दी में नहीं है।
क्या जीएसटी कटौती ग्राहकों को दुकानों व निवेशकों को बाजारों में ला पाएगी?
कटौतियों ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं। लेकिन अभी कोई भी अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। कुछ वस्तुओं की कीमतें कम नहीं होतीं, साबुन या टूथपेस्ट की कीमतें कम करने से खपत में बहुत ज्यादा वृद्धि नहीं होती। लेकिन सरकार को उम्मीद है कि बिक्री में बढ़ोतरी से राजकोषीय प्रभाव की भरपाई हो जाएगी। अगर छह महीने के अंदर वृद्धि दर में सुधार नहीं होता है तो बाजार इसे नकारात्मक मानेंगे।
क्या अमेरिका-भारत व्यापार समझौता, धारणा को प्रभावित करेगा?
मुझे नहीं लगता कि भारत कृषि के मामले में झुक जाएगा। अगर अमेरिका कृषि के मुद्दे पर अड़ा रहा तो कोई समझौता ही नहीं होगा। इसी तरह, रूसी तेल के मामले में भी भारत नहीं चाहेगा कि उसे अमेरिकी दबाव के आगे झुकते हुए देखा जाए। बाजार इस गतिशीलता को समझते हैं। इसलिए, धारणा पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।