बाजार में छाई आर्थिक मंदी के कारण भारतीय रियल एस्टेट कंपनियों की कीमत काफी गिरी है। हालांकि कंपनी के लगभग 70-80 फीसदी से भी ज्यादा शेयर कंपनी के प्रमोटरों के पास ही होने के कारण इन कंपनियों का अधिग्रहण किए जाने का कोई खतरा नहीं है।
लेकिन बाजार में कंपनी के शेयरों की कीमत लगातार गिरने के कारण निजी इक्विटी और रणनीतिक निवेशकों क ो हिस्सेदारी बेच कर रकम जुटाने की उनकी क ोशिशों पर भी असर हो रहा है। इस साल जनवरी तक अच्छा कारोबार कर रहे रियल्टि क्षेत्र पर छाई मंदी के बारे में कई लोगों का मानना है
कि यह मंदी अभी और लंबे समय तक रहेगी।
सी बी रिचर्ड एलीस के प्रबंध निदेशक अंशुमान ने बताया, ‘अगर बाजार संभलने में ज्यादा वक्त लेगा तो इस क्षेत्र में विलय और अधिग्रहण होने की काफी संभावनाएं हैं। जिन कंपनियों ने ज्यादा ऋण ले रखा है उन कंपनियों को इसे चुकाने के लिए अपनी कुछ हिस्सेदारी बड़ी कंपनियों को बेचनी पड़ सकती है।’
कुछ उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मंदी इसी तरह बरकरार रहती है तो कुछ छोटी कंपनियाें का अधिग्रहण हो सकता है। हालांकि कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं। पार्श्वनाथ डेवेलपर्स लिमिटेड के चेयरमैन प्रदीप जैन ने कहा, ‘हालांकि कई बड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतों में गिरावट आई है। लेकिन सभी कंपनियों की आर्थिक हालत सही है। दरअसल कंपनियों के पास अच्छा खासा लैंड बैंक मौजूद है, जो इन कंपनियों ने जमीन को मौजूदा कीमत से काफी कम कीमत पर खरीदा था।’
जैन ने कहा कि अगर कुछ डेवेलपर्स प्रीमियम श्रेणी की अपनी एक या दो परियोजनाएं बेचने में भी कामयाब हो जाते हैं तो, उनके लिए इस मंदी से उबरना काफी आसान होगा। भारतीय रियल एस्टेट कंपनियों की ज्यादातर हिस्सेदारी कंपनियों के प्रमोटरों के पास रहती है, जिससे इन कंपनियों को हिस्सेदारी बेचने से अच्छी खासी रकम मिल जाती है। इससे इन कंपनियों क ो मंदी से उबरने में आसानी होती है।
डीएलएफ के एक अधिकारी बताया, ‘छोटी कंपनियों समेत सभी कंपनियां इस दौर में खुद को अधिग्रहणों से बचाने की पूरी कोशिश करेंगी।’