Illustration: Binay Sinha
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) की तरफ से जुटाई गई रकम 5 लाख करोड़ रुपये के पार चली गई है। साथ ही सितंबर तक निवेश प्रतिबद्धताएं पहली बार 12 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गईं। सालाना आधार पर एआईएफ की तरफ से जुटाए गए धन और प्रतिबद्धताओं में लगभग 30-30 फीसदी का इजाफा हुआ है। अमीर लोग बेहतर रिटर्न की तलाश में निवेश के इस जरिए को अपना रहे हैं।
एआईएफ अमीर लोगों के लिए ऐसा निवेश साधन है जिसमें वे अपना धन लगाते हैं। इसमें निवेश किस्तों में लिया जाता है। ऐसे में इस प्रकार जुटाई गई धनराशि प्रतिबद्धता वाली रकम से कम रह जाती है। इन निवेश का करीब 70 फीसदी गैर-सूचीबद्ध बाजार में हैं, जहां रिटर्न सूचीबद्ध बाजार में पारंपरिक इक्विटी निवेश के मुकाबले बहुत अधिक हो सकता है।
एआईएफ द्वारा किया गया कुल निवेश 4.5 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच गया है। हालांकि, 75,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ रियल एस्टेट की इस निवेश में सबसे अधिक हिस्सेदारी है और यह कुल निवेश का करीब 16.5 फीसदी बैठता है। एआईएफ में निवेश हर कोई नहीं कर सकता। वे अधिक विशिष्ट साधनों जैसे गैर-सूचीबद्ध संपत्ति, स्टार्टअप, निजी क्रेडिट और अन्य जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं।
अल्फा ऑल्टरनेटिव्स के पार्टनर और हेड (फिक्स्ड इनकम) दीपक सूद ने कहा कि एआईएफ डेरिवेटिव, निजी इक्विटी, बुनियादी ढांचे, निश्चित आय और क्रेडिट सहित लिक्विड व इलिक्विड दोनों परिसंपत्ति वर्गों में यानी बेहतर रिटर्न वाले साधनों तक पहुंच मुहैया कराते हैं। पारदर्शिता बढ़ाने के मकसद से सेबी द्वारा शुरू किए गए नियामक सुधारों ने एआईएफ क्षेत्र में निवेशकों के विश्वास को काफी हद तक मजबूत किया है।
मॉड्यूलस ऑल्टरनेटिव्स के प्रमुख (प्राइवेट क्रेडिट) और मुख्य निवेश अधिकारी रक्षित कपूर ने कहा कि भारत में बढ़ती संपत्ति के साथ-साथ विविध परिसंपत्ति आवंटन की आवश्यकता एआईएफ उद्योग को आगे बढ़ा रही है। इसे नियामक सुधारों और सहारा मिला है। उद्योग की कंपनियों ने कहा कि पिछले दो वर्षों में सेबी ने एआईएफ की निगरानी बढ़ा दी है और मूल्यांकन, बेंचमार्किंग, अनिवार्य डिमटेरियलाइजेशन और परिसमापन पर मानदंड जैसे उपाय किए हैं जिससे इस क्षेत्र में वृद्धि को मदद मिली है।
बाजार नियामक ने हाल में ऐंजल फंडों को नियंत्रित करने वाले मानदंडों में बदलाव का प्रस्ताव किया है जो वर्तमान में एआईएफ की श्रेणी-1 के अंतर्गत आते हैं और जुटाई गई रकम में इनका हिस्सा 4,500 करोड़ रुपये है। प्रस्तावों का मकसद कुछ मानदंडों को आसान बनाना और ऐंजल फंडों को छोटे निवेश की अनुमति देना है। हालांकि उच्च जोखिम की चिंताओं को दूर करने के लिए इसे केवल मान्यता प्राप्त निवेशकों तक ही सीमित रखा जा सकता है।
स्टार्टअप या शुरुआती चरण के उद्यमों और छोटे व मध्यम उद्यमों में निवेश करने वाले एआईएफ श्रेणी-1 एआईएफ के अंतर्गत आते हैं। श्रेणी-2 एआईएफ रियल एस्टेट फंड, निजी इक्विटी फंड, ऋणग्रस्त संपत्तियों के लिए फंड आदि में निवेश करते हैं और कुल निवेश में इसकी हिस्सेदारी करीब दो-तिहाई है। तीसरी श्रेणी में हेज फंड और अन्य फंड शामिल हैं, जो जटिल कारोबारी रणनीतियों का इस्तेमाल करते हैं।
निजी ऋण क्षेत्र (प्राइवेट क्रेडिट) में भी वृद्धि हुई है और कई कंपनियां बैंकों और एनबीएफसी के अलावा भी वैकल्पिक स्रोतों से पूंजी की तलाश कर रही हैं। कपूर ने कहा, एआईएफ खंड के भीतर निजी ऋण की कई गुना वृद्धि मुख्य रूप से पारंपरिक नियमित आय निवेश की तुलना में ज्यादा प्रतिफल, नियमित आय और अच्छी तरह से प्रबंधित जोखिम के कारण हुई है। यह प्रवृत्ति कुछ समय तक रह सकती है।
विशेषज्ञ एआईएफ में वृद्धि का श्रेय समृद्ध वर्ग में इजाफा और लगातार प्रदर्शन और उच्च प्रतिफल वाली संपत्तियों की तलाश में परिवार कार्यालयों के निवेश को भी देते हैं। इस साल की शुरुआत में वित्तीय नियामकों ने एआईएफ की तरफ से प्रमुख नियमों की अनदेखी पर चिंता जताई थी, जिसमें कई हजार करोड़ रुपये की राशि निगरानी में शामिल थी। हालांकि भारतीय रिज़र्व बैंक और सेबी ने ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाया और ऋणों की निरंतर वृद्धि और हेराफेरी को प्रबंधित करने के लिए कुछ पाबंदियां लगाईं।