नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) को शेयर बाज़ार नियामक संस्था सेबी (SEBI) से “इन-प्रिंसिपल अप्रूवल” मिल गया है, जिससे अब वह बिजली से जुड़े डेरिवेटिव्स लॉन्च कर सकेगा। यह जानकारी NSE मैनेजमेंट ने चौथी तिमाही के नतीजों के बाद एनालिस्ट कॉल में दी। हालांकि अभी यह योजना शुरुआती दौर में है और कॉन्ट्रैक्ट की सभी शर्तें तय नहीं हुई हैं।
NSE के एक अधिकारी ने बताया, “हमने प्रक्रिया की शुरुआत की है। कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें अभी सेबी के साथ चर्चा में हैं। इस प्रोडक्ट को लॉन्च करने से पहले काफी तैयारियां करनी होंगी।”
NSE ने बताया कि भारतीय नियामकों की मंशा छोटी अवधि वाले कॉन्ट्रैक्ट (जैसे 6 महीने या महीने भर के) लाने की है, जबकि कई दूसरे देशों में सालाना कॉन्ट्रैक्ट भी चलते हैं। इस पर फिलहाल सेबी के साथ बातचीत जारी है। यह भी बताया गया कि बिजली का स्पॉट मार्केट सेबी के दायरे में नहीं आता, लेकिन डेरिवेटिव्स बाज़ार पर सेबी का ही नियंत्रण होगा।
NSE का मानना है कि तकनीकी रूप से मज़बूत होने के कारण उसे इस नए बाज़ार में बढ़त मिल सकती है। अधिकारी ने कहा, “हमारी टेक्नोलॉजी कई और कंपनियों से बेहतर है, जिससे हमें फायदा हो सकता है।”
NSE ने कहा कि डेरिवेटिव्स बाज़ार में BSE से हुई बाज़ार हिस्सेदारी में गिरावट अब थम गई है। दरअसल, सेबी ने एक नियम बदला था, जिसके बाद हर एक्सचेंज पर सिर्फ एक बेंचमार्क के लिए साप्ताहिक एक्सपायरी की इजाजत दी गई थी।
NSE ने कहा, “अब तक जो नुकसान होना था, वह हो चुका है। जब तक कोई नई पॉलिसी सिर्फ NSE को टारगेट नहीं करती, तब तक बाज़ार हिस्सेदारी स्थिर रह सकती है।”
जब NSE से IPO के बारे में पूछा गया तो कंपनी ने बताया कि 28 फरवरी को सेबी के पत्र का जवाब मार्च में दिया गया, लेकिन अब तक कोई उत्तर नहीं मिला है। NSE ने DRHP (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस) फाइल करने के लिए नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट मांगा है। कंपनी ने बताया कि वह कॉलोकेशन सुविधा में 2,000 रैक जोड़ने की योजना बना रही है, जिसकी लागत करीब 520 से 550 करोड़ रुपये के बीच होगी। यह काम कई चरणों में किया जाएगा।