भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने घरेलू म्युचुअल फंडों को भारत में उपस्थिति वाले विदेशी एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) में निवेश की अनुमति देने की योजना बनाई है। भारतीय म्युचुअल फंड मौजूदा समय में इन फंडों में फंड ऑफ फंड (एफओएफ) विकल्प के जरिये पैसा लगाते हैं।
यदि सेबी के नए प्रस्ताव पर अमल हुआ तो इससे इमर्जिंग मार्केट (ईएम) इंडेक्स और जेपी मॉर्गन ईएम ऑप. फंड जैसे लोकप्रिय बेंचमार्कों से जुड़े एफओएफ को अनुमति मिल जाएगी। हालांकि सेबी का कहना है कि ऐसे फंडों में भारत का निवेश 20 प्रतिशत पर सीमित रखा जाएगा।
सेबी ने शुक्रवार को जारी परामर्श पत्र में कहा, ‘ऐसे वैश्विक फंडों में निवेश से संबंधित अस्पष्टता से म्युचुअल फंड उन वैश्विक एमएफ, ईटीएफ और इंडेक्स फंडों में निवेश से परहेज कर सकते हैं जो भारत समेत कई देशों में पैसा लगाते हैं।’
मौजूदा समय में, घरेलू एमएफ विदेशी शेयरों और परिसंपत्तियों में निवेश कर सकते हैं। इसके लिए यह निवेश सीमा 7 अरब डॉलर है। मौजूदा समय में उद्योग यह तय सीमा पूरी कर चुका है।
सेबी ने कहा है कि यदि वैश्विक ईटीएफ में भारत का भार 20 प्रतिशत के पार पहुंचता है तो भारतीय म्युचुअल फंडों को किसी पुनर्संतुलन के लिए 6 महीने इंतजार करना होगा। यदि इस अवधि में निवेश नहीं होता है तो भारतीय एमएफ को अगले 6 महीने के अंदर ऐसे विदेशी म्युचुअल फंड में अपना निवेश बेचना होगा।
सेबी ने शुक्रवार को जारी परामर्श पत्र में कहा, ‘भारत में निवेश से जुड़े वैश्विक फंडों में निवेश आसान बनाने और अतिरिक्त निवेश रोकने के बीच संतुलन बनाने के लिए 20 प्रतिशत की सीमा उचित समझी गई है।’ यदि फंड 6 महीने की अवधि में इसे नहीं बेचता है तो उसे नए सबस्क्रिप्शन, नई स्कीम पेशकश और एक्जिट लोड लगाने पर सख्ती का सामना करना पड़ेगा।
उद्योग के कारोबारियों का कहना है कि सेबी के प्रस्ताव के लागू होने के बाद, हम कई घरेलू एमएफ को एमएससीआई ईएम इंडेक्स पर एफओएफ पेश करते हुए देख सकते हैं। उनका कहना है कि हालांकि, नियामकों, मुख्य रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सबसे पहले एमएफ के लिए विदेशी परिसंपत्तियों में निवेश के लिए विदेशी निवेश सीमा बढ़ानी होगी।
नुवामा अल्टरनेटिव ऐंड क्वांटीटेटिव रिसर्च के प्रमुख अभिलाष पगारिया ने कहा, ‘प्रस्तावित कदम से वैश्विक ईटीएफ में धीरे धीरे फंड प्रवाह बढने की संभावना है जिससे इनमें भारत की मौजूदगी भी मजबूती होगी। अप्रत्यक्ष रूप से, इससे भारतीय शेयरों में बढ़ते प्रवाह का सिलसिला पैदा होगा।’