BFSI Funds: बैंकिंग, फाइनेशियल सर्विसेज और बीमा (BFSI) सेक्टर में एक बार फिर निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। बाजार पूंजीकरण (MCap) के लिहाज से यह भारत का सबसे बड़ा लिस्टेड सेक्टर है और हाल की बाजार गिरावट के बावजूद मजबूत बना रहा। पिछले दो महीनों में इस सेक्टर ने 13.9% की बढ़त दर्ज की है। इन्वेस्को म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर धीमंत कोठारी कहते हैं, “BFSI कंपनियां मुख्य रूप से घरेलू बाजार पर आधारित होती हैं, इसलिए वे ग्लोबल टैरिफ वॉर से काफी हद तक प्रभावित नहीं होतीं। हालांकि कैपिटल मार्केट से जुड़ी कंपनियों में शॉर्ट टर्म में कमजोरी देखी जा सकती है। इसी वजह से निवेशकों ने इस सेक्टर को प्राथमिकता दी है। पिछले दो से तीन वर्षों में इस सेक्टर का रिटर्न व्यापक बाजार की तुलना में कमजोर रहा है, जिससे अब इसके वैल्यूएशन अपेक्षाकृत आकर्षक हो गए हैं।”
BFSI सेक्टर में कई तरह की कंपनियां शामिल होती हैं। व्हाइटओक कैपिटल एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) की सीनियर फंड मैनेजर (इक्विटी) तृप्ति अग्रवाल कहती हैं, “प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के अलावा, इस सेक्टर में नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां (NBFCs), बीमा कंपनियां, एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs), कैपिटल मार्केट इंटरमीडियरीज और फिनटेक कंपनियां शामिल हैं।”
ऐक्टिवली मैनेज किए जाने वाले BFSI फंड अपने कुल एसेट का कम से कम 80% हिस्सा इस सेक्टर की कंपनियों में निवेश करते हैं। वहीं, पैसिव स्कीमें निफ्टी प्राइवेट बैंक, निफ्टी बैंक, निफ्टी पीएसयू बैंक और निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे इंडेक्स को ट्रैक करती हैं।
पिछले तीन महीनों में निवेशकों ने बड़े प्राइवेट बैंकों और क्वालिटी वाले नॉन-बैंक लेंडर्स को प्राथमिकता दी, क्योंकि ये सस्ते वैल्यूएशन पर ट्रेड कर रहे थे। मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के फंड मैनेजर (इक्विटी) गौरव कोचर कहते हैं, “पिछले कुछ महीनों में BFSI सेक्टर ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इसकी वजह सिस्टम में लिक्विडिटी में सुधार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का रुख नरम होना और ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती है। साथ ही, कैलेंडर ईयर 2025 या वित्त वर्ष 2026 में ब्याज दरों में और कटौती की उम्मीदें भी बाजार को सहारा दे रही हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “सरकार की ओर से मांग बढ़ाने के लिए उठाए गए वित्तीय उपायों और राजकोषीय अनुशासन को बनाए रखने की नीति से बॉन्ड मार्केट को राहत मिली है। इसके चलते 10 साल की सरकारी बॉन्ड यील्ड घटकर 6.5% से नीचे आ गई है।”
तृप्ति अग्रवाल ने कहा, “ऋण देने के लिए नियामकीय और परिचालन माहौल धीरे-धीरे आसान हो रहा है, जो बैंकों और एनबीएफसी के लिए साफ तौर पर सकारात्मक संकेत है।”
कम ब्याज दरें और विकासोन्मुखी सरकारी नीतियां BFSI सेक्टर की ग्रोथ को आगे बढ़ा सकती हैं। तृप्ति अग्रवाल कहती हैं, “मध्यम अवधि में, ब्याज दरों में कटौती और सिस्टम में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए RBI के उपायों से लोन और डिपॉजिट की ग्रोथ की रफ्तार तेज हो सकती है। लॉन्ग टर्म में देखें तो भारत में क्रेडिट, इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट जैसे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स की कम पहुंच इसे एक लॉन्ग टर्म और मजबूत निवेश थीम बनाती है।”
गौरव कोचर का कहना है, “कम इनकम टैक्स दरों से उपभोग बढ़ सकता है, जिससे खुदरा कर्ज की मांग को बल मिलेगा। भारत में क्रेडिट की पहुंच अब भी कम है— क्रेडिट-टू-जीडीपी अनुपात 58% है, जबकि अमेरिका में यह 170% है— ऐसे में ये फंड इस अवसर का भरपूर फायदा उठा सकते हैं।”
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निवेशकों को BFSI सेक्टर फंड में निवेश करते समय कुछ जोखिमों को ध्यान में रखना चाहिए। धीमंत कोठारी कहते हैं, “सेक्टर फंड, डाइवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स की तुलना में ज्यादा जोखिम वाले होते हैं। साथ ही, BFSI एक अत्यधिक रेगुलेटेड सेक्टर है। किसी भी नकारात्मक नियामकीय बदलाव से इस सेक्टर या इसमें शामिल कंपनियों की लाभप्रदता (profitability) और विकास संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। सेक्टर से जुड़ी नकारात्मक घटनाओं का असर इन फंड्स पर काफी ज्यादा होता है।”
कोचर कहते हैं, “घरेलू अर्थव्यवस्था की सुस्ती (FY25 में जीडीपी ग्रोथ 7.2% के अनुमान के मुकाबले 6.7%) और कॉरपोरेट अर्निंग्स में कमजोरी (FY25 के पहले नौ महीनों में केवल 4% PAT ग्रोथ) ने इस सेक्टर की ग्रोथ की स्थिरता पर कुछ सवाल खड़े किए हैं।”
एक्सपर्ट्स मीडियम से लॉन्ग टर्म निवेश की सलाह देते हैं। कोचर कहते हैं, “ये फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं जिनकी जोखिम सहने की क्षमता मीडियम से ज्यादा है और जो भारत की लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल ग्रोथ में हिस्सा लेना चाहते हैं। कम से कम तीन से पांच साल की निवेश अवधि और पोर्टफोलियो में 5–8% का आवंटन उचित माना जाता है।”