NFOs trading below issue price: शेयर बाजार में आई हालिया गिरावट का असर म्युचुअल फंड्स पर साफ-साफ देखा जा सकता है। खासतौर पर हाल ही में लॉन्च किए गए इक्विटी न्यू फंड ऑफर (NFOs) पर। पिछले कुछ वर्षों में फंड हाउस ने कई थीमैटिक और सेक्टर-फोकस्ड स्कीम्स लॉन्च कीं, जिन्होंने बड़ी मात्रा में निवेश आकर्षित किया। हालांकि, इन फंड्स को अब नुकसान हो रहा है और उनकी नेट एसेट वैल्यू (NAV) इश्यू प्राइस से नीचे गिर गई है। राइट होराइजन्स के फाउंडर और सीईओ अनिल रेगो कहते हैं, “पिछले दो तिमाहियों में लॉन्च हुए लगभग 90 फीसदी NFOs सेक्टोरल/थीमैटिक या पैसिव इंडेक्स फंड कैटेगरी में आते हैं। हालिया बिकवाली का प्रभाव डिफेंस (defence) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU) जैसी थीम्स पर पड़ा है, जिन्होंने व्यापक बाजार सुधार से पहले भारी निवेश आकर्षित किया था। फैक्टर-बेस्ड फंड्स (जैसे मोमेंटम फंड्स) ने पिछले छह महीनों में 20 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की है।”
NFOs में कुछ अंतर्निहित जोखिम होते हैं, जिन्हें निवेशकों को निवेश से पहले ध्यान में रखना चाहिए। स्थापित फंड्स के विपरीत, इनके पास कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं होता। कम एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) के कारण शुरुआती वर्षों में इनका एक्सपेंस रेशियो ज्यादा हो सकता है, जिससे रिटर्न प्रभावित होता है।
इसके अलावा, कई निवेशकों ने हाई-रिस्क सेक्टोरल और थीमैटिक NFOs में पैसा लगाया है, जिनका एक्सपोजर सीमित क्षेत्रों तक होता है। इनके निवेश निर्देशों के कारण फंड मैनेजर्स खराब प्रदर्शन की स्थिति में अन्य सेक्टर्स या थीम्स में शिफ्ट नहीं कर सकते। साथ ही, सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स का प्रदर्शन चक्रीय (cyclical) होता है। जो निवेशक बाजार चक्र के चरम पर प्रवेश करते हैं, उन्हें लंबे समय तक कमजोर रिटर्न का सामना करना पड़ सकता है।
निवेशकों को यह आकलन करना चाहिए कि जिस NFO में उन्होंने निवेश किया है, वह उनके पोर्टफोलियो और फाइनैंशियल टारगेट से मेल खाता है या नहीं। गेनिंग ग्राउंड इन्वेस्टमेंट के फाउंडर रवि कुमार टीवी के अनुसार, “निवेशकों को पहले फंड के उद्देश्य और रणनीति को समझना चाहिए— यह ग्रोथ, वैल्यू, पैसिव या एक्टिव में से कौन-सा है— और यह उनकी जोखिम सहनशीलता (risk tolerance) और फाइनैंशियल टारगेट के अनुरूप है या नहीं।”
जोखिम लेने की क्षमता (Risk Appetite) भी एक महत्वपूर्ण कारक है। स्मॉल-कैप फंड्स, सेक्टोरल और थीमैटिक फंड्स, और मोमेंटम फंड्स जैसी फैक्टर-बेस्ड स्ट्रैटेजी ज्यादा जोखिम से जुड़ी होती हैं। इसलिए, निवेश से पहले जोखिम प्रोफाइल का मूल्यांकन करना जरूरी है।
अनिल रेगो के अनुसार, “सेक्टोरल और थीमैटिक NFOs एक सीमित निवेश रणनीति (narrow investment mandate) का पालन करते हैं, जिससे इनका एक्सपोजर कुछ खास क्षेत्रों तक सीमित रहता है। इनमें सफल निवेश के लिए सही समय पर एंट्री और एग्जिट रणनीति अपनाना जरूरी होता है। जो निवेशक ऐसे निवेशों को सक्रिय रूप से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता, समय या प्रयास नहीं कर सकते, उन्हें डाइवर्सिफाइड विकल्पों पर विचार करना चाहिए।”
सिंगल-फैक्टर स्ट्रैटेजी भी सटीक टाइमिंग की मांग करती हैं। बाजार में लीडरशिप अलग-अलग फैक्टर्स— क्वालिटी, वैल्यू, मोमेंटम आदि— के बीच बदलती रहती है। यदि निवेशक सिंगल-फैक्टर फंड्स रखते हैं, तो उन्हें सही समय पर एंट्री और एग्जिट करनी होगी, जो हर किसी के लिए संभव नहीं है। ऐसे निवेशकों को या तो इन सिंगल-फैक्टर फंड्स से बाहर निकलना चाहिए या अपने पोर्टफोलियो में चार-पांच फैक्टर्स को शामिल करना चाहिए, ताकि किसी न किसी फैक्टर का प्रदर्शन हमेशा बना रहे।
डाइवर्सिफाइड इक्विटी NFOs में निवेश करने वाले निवेशकों को अपने निवेश की अवधि का आकलन करना चाहिए। अनिल रेगो के अनुसार, “इक्विटी-ओरिएंटेड स्कीम्स के लिए निवेशकों को कम से कम 5 से 7 साल की होल्डिंग अवधि रखनी चाहिए।”
ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज माथपाल कहते हैं, “स्मॉल-कैप फंड्स के लिए इससे भी लंबी अवधि— कम से कम 10 साल — रखना बेहतर होता है।” अगर निवेश अवधि पर्याप्त है, तो निवेशक अपनी चुनी हुई कैटेगरी में निवेश पर विचार कर सकते हैं।
निवेशकों को आखिरकार यह तय करना होगा कि वे बिना ट्रैक रिकॉर्ड वाले NFO में बने रहें या किसी स्थापित फंड में शिफ्ट करें। विशेषज्ञों की राय है कि निवेशकों को मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड वाले फंड को प्राथमिकता देनी चाहिए।
ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज माथपाल कहते हैं, “अगर उसी कैटेगरी में पहले से एक अच्छा प्रदर्शन करने वाला, मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड वाला फंड उपलब्ध है, तो उसे प्राथमिकता क्यों न दी जाए?” NFO में बने रहने का एकमात्र कारण यह हो सकता है कि निवेशक को फंड मैनेजर की क्षमता पर पूरा भरोसा हो कि वह अच्छे रिटर्न दे पाएगा।