साल 2025 के पहले पांच महीने के सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के आंकड़े विभिन्न इलाकों और निवेश के तरीके के आधार पर निवेशकों का अलग-अलग व्यवहार बताते हैं। म्युचुअल फंडों की शब्दावली में बी-30 यानी छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों को माना जाता है। इनमें डायरेक्ट प्लान के तहत एसआईपी खाते रेग्युलर प्लान के मुकाबले 2.6 गुना ज्यादा बंद हुए जबकि रेग्युलर प्लान के तहत खातों का आधार बड़ा है। म्युचुअल फंड दो तरह के निवेश तरीके मुहैया कराते हैं : डायरेक्ट प्लान जिनमें कमीशन नहीं लगता और इन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के जरिये खरीदा जा सकता है। दूसरे हैं रेग्युलर प्लान जिनमें कमीशन शामिल है और इन्हें बैंक या वितरक बेचते हैं।
मई के आखिर में बी-30 इलाकों में डायरेक्ट प्लान के तहत 1.95 करोड़ खाते थे जो दिसंबर 2024 के आखिर के 2.41 करोड़ खातों के मुकाबले 19 फीसदी कम हैं। इस अवधि में बी-30 में रेग्युलर प्लान के तहत खाते महज 6 फीसदी घटकर 3.03 करोड़ रहे। विशेषज्ञ इस असमानता का कारण बी-30 क्षेत्रों में डू इट योअरसेल्फ (डीआईवाई) और रेग्युलर प्लान के निवेशकों के बीच अलग-अलग मकसद बताते हैं।
जेडफंड्स के सीईओ और सह-संस्थापक मनीष कोठारी ने कहा, हमने देखा है कि खुद से करने वाले निवेशकों के लिए फंड की चयन प्रक्रिया रेग्युलर प्लान के निवेशकों से काफी अलग है। रेग्युलर प्लना एक वितरक या सलाहकार से मिलते हैं। खुद से करने वाले निवेशक सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले फंडों को देखते हैं लेकिन उनकी इनमें से कुछ फंडों से जुड़ी अस्थिरता/जोखिम की सीमित समझ होती है। इनमें से बहुत से फंड विशिष्ट थीमेटिक या सेक्टर रणनीतियां वाले हैं, जिनके बहुत लंबे चक्र होते हैं।
उन्होंने कहा कि म्युचुअल फंड वितरक रेग्युलर प्लान के निवेशकों को 10 से 15 साल तक निवेशित बने रहने के लिए आवश्यक प्रतिबद्धता और अनुशासन विकसित करने में मदद करते हैं। हालांकि शीर्ष 30 शहरों (टी-30) में भी यही रुझान रहा है लेकिन अंतर इतना ज्यादा नहीं था। 5 महीने की अवधि में टी-30 डायरेक्ट खातों में 21 फीसदी की कमी आई जबकि टी-30 रेग्युलर प्लान खाते 9 फीसदी घटे।
कुल मिलाकर, टी-30 की तुलना में बी-30 में खाते बंद होने की दर तुलनात्मक रूप से कम रही। बी-30 एसआईपी खातों में 11 फीसदी की गिरावट आई जबकि टी-30 खातों में 13 फीसदी की कमी आई। बी-30 एसआईपी भी अपनी परिसंपत्ति हिस्सेदारी को 33.8 फीसदी से बढ़ाकर 34.2 फीसदी करने में कामयाब रहे और मई 2025 में एयूएम पहली बार 5 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गई।
यह मान लीजिए कि एसआईपी बंद होने का आंकड़ा केवल निवेशक व्यवहार का संकेत है क्योंकि बंद होने का एक बड़ा हिस्सा 2025 के पहले चार महीनों में एएमसी की तालमेल कवायद का भी नतीजा है।