अमेरिका और उसके बड़े व्यापारिक साझेदारों के बीच छिड़े ट्रेड वॉर (Trade War) के चलते पिछले सप्ताह भारतीय शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में निवेशकों को एसेट एलोकेशन, लॉन्ग टर्म निवेश की सोच (long-term investment mindset) और चरणबद्ध तरीके से निवेश (staggered investments) करने जैसे मंत्रों को अपनाए रखना चाहिए।
भारतीय शेयर बाजार इस समय कई जोखिमों का सामना कर रहा है। कोटक म्युचुअल फंड के प्रेसिडेंट और चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर (CIO) हर्ष उपाध्याय कहते हैं, “सबसे बड़ा जोखिम हाल ही में लगाए गए अमेरिकी टैरिफ से पैदा हुई अनिश्चितता है। इसके साथ ही, घरेलू कॉर्पोरेट कमाई का रुझान भी बीते कुछ तिमाहियों में अनुमान से कमजोर रहा है, जिससे निवेशकों की चिंता और बढ़ गई है।”
एडलवाइस म्युचुअल फंड में इक्विटीज के प्रेसिडेंट और सीईओ त्रिदीप भट्टाचार्य का कहना है कि ग्लोबल ट्रेड वॉर से संभावित मंदी के खतरे के बीच भारत में शहरी खपत में उम्मीद से तेज गिरावट एक और बड़ी चिंता बनकर उभरी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ से जुड़ी स्थिति अभी स्थिर नहीं हुई है, इसलिए फिलहाल बाजारों में स्थिरता की वापसी की उम्मीद नहीं की जा सकती। भट्टाचार्य कहते हैं, “वैश्विक इक्विटी बाजार दो संभावनाओं के बीच झूल रहे हैं—पहली, ‘टैरिफ को एक सौदेबाजी की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करना’ और दूसरी, ‘पूरी तरह से ट्रेड वॉर की स्थिति बन जाना।’”
उनका मानना है कि यदि दूसरी स्थिति यानी ट्रेड वॉर पूरी तरह सामने आती है, तो बाजार लंबे समय तक अस्थिर रह सकते हैं और इसमें भारी गिरावट भी देखी जा सकती है। लेकिन अगर यह केवल सौदेबाजी की रणनीति साबित होती है, तो अस्थिरता थोड़े समय की होगी और बाजार में गिरावट भी सीमित रह सकती है।
अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करने वाले अधिकांश देशों ने जहां बातचीत के जरिए समाधान निकालने का रास्ता चुना है, वहीं चीन ने जवाबी कदम उठाने का रुख अपनाया है। इक्विरस एसेट मैनेजमेंट के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर और फंड मैनेजर साहिल शाह कहते हैं, “जब तक बातचीत और जवाबी कार्रवाई दोनों पूरी तरह सामने नहीं आ जाते, तब तक स्थिति को लेकर स्पष्टता नहीं आएगी। अगर हालात और नहीं बिगड़े, तो बाजार एक महीने के भीतर स्थिर हो सकते हैं। हालांकि निवेशक तब तक सतर्क बने रहेंगे जब तक कोई ठोस समाधान नजर नहीं आता।”
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भारतीय निवेशकों को कुछ अहम बातों से सुकून मिल सकता है। भारत एक बड़ी घरेलू मांग आधारित अर्थव्यवस्था है, इसलिए यह उन देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में रह सकता है जो निर्यात पर ज्यादा निर्भर हैं। अमेरिका पर भारत की निर्यात निर्भरता भी सीमित है। शाह बताते हैं, “भारत का अमेरिका को निर्यात जीडीपी का केवल 2 से 3% के आसपास है, जिससे भारत को टैरिफ वॉर के प्रत्यक्ष असर से काफी हद तक सुरक्षा मिलती है।”
उपाध्याय कहते हैं, “भारत के कुछ प्रतिस्पर्धी देशों पर अपेक्षाकृत ज्यादा टैरिफ लगने से कुछ खास निर्यात श्रेणियों में हमें एक सीमित प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है।”
भट्टाचार्य कच्चे तेल की कीमतों में आई उल्लेखनीय गिरावट को एक सकारात्मक संकेत मानते हैं। उनके अनुसार एक और अच्छा संकेत यह है कि वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में सरकार की ओर से नीतिगत फैसलों की रफ्तार बढ़ी है। वह कहते हैं, “इसका असर 2025-26 की दूसरी छमाही में कॉरपोरेट अर्निंग्स में रिकवरी के रूप में देखने को मिल सकता है।”
भारतीय शेयर बाजार में वैल्यूएशन जो पहले काफी ज्यादा थे, अब एक संतुलित स्तर पर आ गए हैं। शाह के अनुसार, अब लॉन्ग टर्म के निवेशकों के लिए चुनिंदा अच्छे मौके उपलब्ध हैं। उपाध्याय कहते हैं, “लार्ज कैप शेयरों का वैल्यूएशन अब लगभग लॉन्ग टर्म के औसत स्तर पर पहुंच गया है। इस समय लंबी अवधि के निवेशकों के लिए वैल्यूएशन रिस्क बहुत कम है। हालांकि, शॉर्ट टर्म में बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है।” वहीं, भट्टाचार्य के मुताबिक मिड और स्मॉल कैप शेयरों का वैल्यूएशन अभी भी 10 साल के औसत से करीब 10–15% ऊपर बना हुआ है।
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पिछले 45 वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश वर्षों में सेंसेक्स में सालाना 10–20% तक की गिरावट देखी जाती है। FundsIndia.com में रिसर्च प्रमुख अरुण कुमार कहते हैं, “इतिहास गवाह है कि ऐसे वर्षों में लगभग 75% मामलों में सेंसेक्स ने फिर भी पॉजिटिव रिटर्न दिया है।” हालांकि 2000, 2008 और 2020 की कोविड के कारण बाजार में तेज और बड़ी गिरावटें भी आई हैं, लेकिन ये घटनाएं बहुत कम होती हैं और नियमित नहीं होतीं।
कुमार के अनुसार, फिलहाल भारतीय शेयर बाजार किसी बबल जैसी स्थिति में नहीं है, जिसे आमतौर पर बड़ी गिरावट का संकेत माना जाता है। वह कहते हैं, “इस समय वैल्यूएशन न्यूट्रल जोन में है, और अगर बाजार में और 5% की गिरावट आती है, तो यह अट्रैक्टिव जोन में प्रवेश कर सकता है। कॉरपोरेट मुनाफा बनाम जीडीपी, रिटर्न ऑन इक्विटी, क्रेडिट ग्रोथ और प्राइवेट कैपेक्स जैसे संकेतक यह दर्शाते हैं कि हम अब भी मिड-साइकल फेज में हैं, न कि लेट-साइकल के चरम पर। FIIs की बिकवाली के बावजूद घरेलू संस्थागत निवेशक एक्टिव रूप से खरीदारी कर रहे हैं।”
वह आगे कहते हैं कि यह करेक्शन संभवतः 10–20% की सीमा में ही रहेगा। हालांकि, अगर गिरावट 20% से ज्यादा जाती है, तो रिकवरी भी उतनी ही तेज हो सकती है।
निवेशकों को इक्विटी, डेट और गोल्ड जैसी विभिन्न एसेट क्लास में अपने मौजूदा एसेट एलोकेशन पर टिके रहना चाहिए। कुमार कहते हैं, “अगर बाजार में गिरावट 20% से ज्यादा होती है, तो अतिरिक्त बचत का इस्तेमाल डेट और गोल्ड से फंड रीअलोकेट कर धीरे-धीरे इक्विटी में निवेश बढ़ाने पर विचार करें।”
उपाध्याय भी सलाह देते हैं कि बाजार की इस उतार-चढ़ाव वाली अवधि में निवेशकों को एसेट एलोकेशन, नियमित और अनुशासित निवेश, और दीर्घकालिक दृष्टिकोण जैसे आजमाए हुए सिद्धांतों पर टिके रहना चाहिए। वह कहते हैं, “चूंकि लार्ज कैप वैल्यूएशन में फिलहाल अपेक्षाकृत ज्यादा संतुलन है, इसलिए निवेशक अपने कुल इक्विटी एलोकेशन के भीतर लार्ज कैप फंड्स की ओर पोर्टफोलियो का झुकाव बढ़ा सकते हैं।”
बाजार में गिरावट के दौरान निवेशकों को अपने एसेट एलोकेशन में कोई बड़ा बदलाव करने से बचना चाहिए। कुमार कहते हैं, “अगर कोई बदलाव करना भी हो, तो वह बाजार के स्थिर होने या रिकवरी के बाद करना ज्यादा प्रभावी होता है।” निवेशकों को बाजार को टाइम करने की कोशिश से भी बचना चाहिए। वे यह सोचकर अभी बाजार से बाहर न निकलें कि जब बाजार फिर से चढ़ेगा, तब दोबारा निवेश करेंगे। ऐसा करना लंबे समय में नुकसानदेह साबित हो सकता है।
जिन निवेशकों का पोर्टफोलियो पूरी तरह इक्विटी पर आधारित है और जिन्होंने डेट व गोल्ड की अनदेखी की है, उन्हें धीरे-धीरे इस असंतुलन को ठीक करना चाहिए। कुमार कहते हैं, “अगर कोई युवा निवेशक है, जिसकी निवेश अवधि लंबी है और उसकी बचत की मात्रा उसके पोर्टफोलियो के मुकाबले ज्यादा है, तो उसके लिए ऑल-इक्विटी पोर्टफोलियो कुछ हद तक स्वीकार्य हो सकता है। लेकिन जिन निवेशकों का पोर्टफोलियो पहले से बड़ा है, उनके लिए इक्विटी में जरूरत से ज्यादा निवेश एक संभावित गलती हो सकती है।”
इस असंतुलन को ठीक करने के लिए निवेशकों को धीरे-धीरे अपनी अतिरिक्त बचत को डेट और गोल्ड में लगाना चाहिए। साथ ही, हाल ही में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कुछ सेक्टर्स या मार्केट सेगमेंट्स में जरूरत से ज्यादा निवेश भी सुधारने की जरूरत है। इनमें डिफेंस सेक्टर, सार्वजनिक उपक्रम (PSUs), और स्मॉल व माइक्रो कैप शेयर शामिल हैं।