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मारुति-घटती रफ्तार

Last Updated- December 07, 2022 | 7:42 PM IST

देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी को अगस्त महीने में वॉल्यूम में कमी का सामना करना पड़ा। 18,412 करोड़ की इस कंपनी के घरेलू बाजार के वॉल्यूम में करीब 11 फीसदी की कमी देखी गई।


हालांकि स्विफ्ट और स्विफ्ट डिजायर के खरीदने वाले बने रहे लेकिन वैगन-आर, ऑल्टो और जेन को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हुंडई की आई-टेन की बाजार में बिक्री अच्छी हुई और इससे इस कोरियन कंपनी को अपना वॉल्यूम 34 फीसदी बढ़ाने में मदद मिली।

हालांकि यह काफी छोटे बेस पर रहा। जनरल मोटर्स ने भी वॉल्यूम बरकरार रखा और यह सिर्फ 4.4 फीसदी ज्यादा रहा। महिंद्रा एंड महिंद्रा की लोगान की बिक्री भी कम रही और उसका वॉल्यूम भी 35 फीसदी गिरकर 1,464 यूनिट पर रहा।

बहुउपयोगी वाहनों के लिए अगस्त का महीना कुछ राहत देने वाला रहा। अगस्त में इस सेगमेंट के वॉल्यूम में दो फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई जबकि जुलाई में इसमें आठ फीसदी गिरावट आई थी। महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपने बहुपयोगी वाहनों की कीमत जून में बढ़ाई थी और विश्लेषकों का मानना है कि बढ़ती लागत से बेपरवाह होते हुए कीमतें अब नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।

ऊंची ब्याज दरें, क्रेडिट की कमी और महंगाई ग्राहकों को खरीदारी से दूर रख रही है। हालांकि त्योहार के माहौल में खरीदारी बढ़ सकती है। मारुति ए-स्टार को लांच करने जा रही है और अगर मारुति इसकी कीमत प्रतियोगी रूप से तय करती है तो कंपनी का भाग्य बदल सकता है।

इसके अलावा टाटा मोटर्स द्वारा लांच की गई इंडिका विस्टा से स्विफ्ट डिजायर की हिस्सेदारी कम होगी। महिंद्रा एंड महिंद्रा की  इंजेनियो अपना वॉल्यूम बढ़ा सकती है। मारुति के शेयरों ने सोमवार को रिकवर किया और कंपनी का स्टॉक सिर्फ 2.56 फीसदी गिरा। मौजूदा स्तर पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 10.4 गुना के स्तर पर हो रहा है।

एशियाई बाजार-दबाव में

एशियन फंड मैनेजरों द्वारा अपनी नगदी का स्तर बढ़ा देने के बावजूद एशियाई शेयर दबाव में दिखते हैं। एमएससीआई एशिया सूचकांक में सोमवार को दिन भर के कारोबार के दौरान दो फीसदी की गिरावट देखी गई।

हालांकि सत्र खत्म होते समय इसने रिकवर किया। निवेशक चिंतित हैं कि कमजोर होती वैश्विक अर्थव्यवस्था से लाभ पर असर पड़ सकता है। असल में विश्व के सबसे बड़े निर्यातक होते हुए भी यह आश्चर्यजनक है कि एशिया के बाजारों को ज्यादा धक्का नहीं पहुंचा है।

शायद इसकी वजह यह भी है कि वह विश्व भर में सबसे ज्यादा खराब प्रदर्शन करके पहले ही काफी नुकसान उठा चुके हैं। इस कारण वैश्विक फंड इस बाजार की ओर अपना एक्सपोजर बढ़ाने के लिए तैयार हुए। उदाहरणस्वरूप वैश्विक फंड भारत और एशियाई फंड मैनेजरों के पास जो पूंजी रख रहे हैं वह भारत और चीन पर कम अंडरवेट हैं। जबकि कोरिया और ताइवान का वेटेज घटा दिया गया है।

हालांकि यह भारतीय बाजार में बिकवाली का दबाव कम करने में सफल नहीं रहा है और जनवरी से अगस्त के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों नें भारतीय बाजार से सात अरब डॉलर से भी ज्यादा पूंजी का निष्कासन किया है। हालांकि जून और जुलाई की तुलना में अगस्त में आउटफ्लो धीमा रहकर 30 करोड़ डॉलर पर रहा।

सिटी ब्रोकरेज के विश्लेषकों का मानना है कि एशियाई फंड मैनेजर किसी भी तेजी में बेच सकते हैं और किसी चढ़ाव के दौर में फिर निवेश करने से पहले अपनी कैश पोजिशन बढ़ा सकते हैं। इसकी सिर्फ एक वजह है कम आय का अनुमान। कुछ देशों जैसे ताइवान और मलेशिया की आय वित्तीय वर्ष 2008 में वास्तविक रूप से गिर सकती है। भारत के लिए सेंसेक्स की आय 16 से 17 फीसदी के निचले स्तर पर है जबकि पहले यह आय 20 फीसदी थी।

First Published - September 2, 2008 | 10:28 PM IST

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