भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) 18 जून को अपनी आगामी बोर्ड बैठक में कई नियामकीय रियायतों की घोषणा कर सकता है। सेबी अध्यक्ष तुहिन कांत पांडेय की अध्यक्षता में बाजार नियामक की यह दूसरी बैठक होगी।
संभावित परिवर्तनों में भारत सरकार के बॉन्ड (आईजीबी) में निवेश करने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए अधिक छूट, कम सार्वजनिक फ्लोट वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) की स्वैच्छिक डीलिस्टिंग और एक अलग को-इन्वेस्टमेंट व्हीकल के माध्यम से वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) में सह-निवेश की सुविधा देना शामिल हैं।
नियामक की ओर से एफपीआई की नई श्रेणी शुरू किए जाने की भी उम्मीद है, जिसे आईजीबी-एफपीआई कहा जाएगा। यह श्रेणी विशेष रूप से उन लोगों के लिए होगी जो वोलंटरी रिटेंशन रूट (वीआरआर) और फुली एक्सेसिबल रूट (एफएआर) के जरिये घरेलू सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में पैसा लगाते हैं।
प्रस्तावित छूटों में इन एफपीआई के लिए ‘नो यॉर कस्टमर’ (केवाईसी) नियमों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुकूल बनाना शामिल है। अनिवासी भारतीयों (एनआरआई), भारत के विदेशी नागरिकों (ओसीआई) और निवासी भारतीय नागरिकों (आरआई) को बिना किसी प्रतिबंध के आईजीबी-एफपीआई में निवेश की अनुमति दी जाएगी। इसके अलावा, बड़े बदलावों और इक्विटी निवेश सीमाओं से संबंधित रिपोर्टिंग के खुलासे से संबंधित शर्तों में भी नरमी की संभावना है।
सेबी बोर्ड उन पीएसयू के लिए डीलिस्टिंग प्रक्रियाओं को आसान बनाने के प्रस्तावों पर भी विचार कर सकता है, जिनमें सरकार की 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी है। प्रस्तावों में न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानकों पर अमल की जरूरत समाप्त करना और डीलिस्टिंग के लिए दो-तिहाई शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत खत्म करना शामिल है।
इस समय 8 ऐसी सूचीबद्ध पीएसयू हैं जिनमें सरकार की 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है। हरियाणा फाइनैंशियल कॉरपोरेशन और केआईओसीएल जैसे कुछ मामलों में केंद्र की 99 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है जो उचित मूल्य निर्धारण में बाधक है। इससे सरकार के लिए 25 प्रतिशत न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों का पालन करने के लिए हिस्सेदारी घटाना चुनौतीपूर्ण है।
सेबी बोर्ड से एक अलग सह-निवेश उद्यम के माध्यम से एआईएफ में सह-निवेश की सुविधा के लिए कार्य समूह की सिफारिशों की भी समीक्षा की उम्मीद है। सह-निवेशकों के बाहर निकलने की शर्तों पर भी चर्चा की जाएगी।
जिन अन्य क्षेत्रों में मानकों में ढील दी जा सकती है, वे हैं रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (रीट) और इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (इनविट)। सेबी सिर्फ जरूरी जानकारी को शामिल करने के लिए पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) के लिए दस्तावेज देने की आवश्यकता को आसान बना सकता है। बाजार नियामक केवाईसी पंजीकरण एजेंसियों या केआरए को खत्म करने की प्रक्रिया में भी बदलाव कर सकता है। मार्च में सेबी की जिम्मेदारी संभालने के बाद से पांडेय नियमन और नियामकीय सहजता और अधिक पारदर्शिता को लेकर मुखर रहे हैं।